पंचों का तुगलकी फरमान, 8 महीने ‘अछूत’ रहे 3 परिवार, अब टूटा सब्र का बांध

दीपक पाण्डेय/खरगोन. देश को आजाद हुए 75 साल बीत गए, लेकिन आज भी कुछ गांव ऐसे हैं, जहां की पंचायतें ना तो संविधान को मानती हैं और ना ही कानून को मानती हैं. इन पंचायतों में पंचों का फैसला ही सर्वमान्य है. ताजा मामला मध्य प्रदेश के खरगोन जिला मुख्यालय से लगभग 100 km दूर ग्राम मलगांव का है.

इस गांव में जायसवाल (कलाल) समाज के तीन परिवार विगत 8 महीनों से अछूतों की तरह जिंदगी जी रहे हैं. वजह है यहां की पंचायत, जिसने इन परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया है. परिवार के सदस्य गांव में किसी से बात नहीं कर सकते और ना ही गांव के लोग इन्हें कोई सामान दे सकते हैं. पंचायत के फरमान के अनुसार, अगर गांव के किसी व्यक्ति ने इन परिवारों से बात की या कोई सामान दिया तो उन्हें 5100 रुपए का जुर्माना चुकाना पड़ेगा.

क्या है पूरा मामला
दरअसल, यह पूरा मामला गांव में गुर्जर समाज एवं जायसवाल समाज के दो युवकों के बीच हुए विवाद से शुरू हुआ था, जो बाद में सामाजिक स्तर पर पहुंच गया और ग्रामीणों ने पंचायत बुला ली. ग्रामीणों के कहने पर पंचायत ने भी परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया. परिवारों ने प्रशासन से भी न्याय की गुहार लगाई, पुलिस अधिकारी भी पंचायत के फैसले के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएं. आखिर में परिवार ने समाज की शरण ली है.

क्या कहते हैं पीड़ित परिवार के सदस्य
पीड़ित परिवार के महेश जायसवाल, बलराज जायसवाल, राजेश जायसवाल, विजय जायसवाल ने बताया कि छोटे से विवाद के कारण पंचायत ने उनके परिवारों का बहिष्कार कर दिया है. वे किसी के घर नहीं जा सकते. ना ही गांव का कोई व्यक्ति उनके घर आ सकता है. किसी से कोई मदद नहीं ले सकते. उनके खेतों में कोई मजदूर काम करने नहीं आते हैं. घर में किराने की दुकान है, लेकिन फैसले के बाद से एक भी व्यक्ति सामान खरीदने नहीं आया. करीब 70 हजार की खाद्य सामग्री पड़ें-पड़ें खराब हो गई, जिसे फेंकना पड़ा. कोई उनसे बात करता है या मदद करने आता है तो पंचायत के लोग उन्हे धमकाते हैं.

सामान लेने दूसरे गांव जाना पड़ता है
परिवार की राधा बाई ने बताया कि घर में छोटे बच्चे हैं. तबियत खराब होने पर गांव में इलाज नहीं मिलता. पंचायत के डर से गांव की दाईं मां इलाज करने नहीं आती. रोजमर्रा में उपयोगी दूध, साख सब्जी या अन्य किसी भी सामान के लिए भी 3 km दूर दूसरे गांव धनगांव जाना पड़ता है.

अब करेंगे अछूत आंदोलन
फैसले से तंग आकर परिवार ने सोमवार को बड़वाह में जायसवाल समाज के बड़े पदाधिकारियों के सामने अपनी बात रखी. निर्णय लिया कि आगामी 17 मार्च को जायसवाल समाज गांव में अछूत आंदोलन करेगा. पैरों में चप्पल नहीं पहनेंगे, मंदिर के सामने से नहीं गुजरेंगे, कमर के पीछे झाड़ू बांधेंगे, आगे हंडी लटकाएंगे. इस आंदोलन में गांव के अनुसूचित जाति के लोग भी शामिल होंगे. क्योंकि इस समाज के लोगों का कहना है कि उनके साथ भी गांव में छुआछूत होती है. मंदिरों में जानें नहीं देते. रामजी की प्रभात फेरी में जानें पर भगाते हैं. पंगतों या मीटिंग में अलग बैठाते हैं.

क्या कहते हैं पंचायत के सरपंच
सरपंच ओम पटेल ने कहा कि विवाद के बाद गांव में शांति कायम करने के उद्देश्य से ग्रामीणों की मांग पर केवल तीन परिवारों के लिए ये फैसला लिया था. जबकि गांव में जायसवाल समाज के कुल 8 परिवार हैं. बाकी परिवारों पर कोई पाबंदी नहीं है. सभी समाज मिलजुलकर रहते हैं. छुआछूत की बात गलत है. जुर्माने की बात पर कहा कि किसी व्यक्ति से जुर्माना नहीं लिया है. ना ही किसी व्यक्ति को परिवार से बात करने पर रोका जा रहा है.

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