न्यायालय ने दिवाला और दिवालियापन संहिता के प्रमुख प्रावधानों की वैधता बरकरार रखी

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के कुछ प्रमुख प्रावधानों को बरकरार रखा, जिन्हें उन लोगों के समानता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने के आधार पर चुनौती दी गई थी, जिनके खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू की गई थी।
शीर्ष अदालत ने पर्सनल गारंटर के दिवाला समाधान के संबंध में 2019 में आईबीसी में किये गये कुछ संशोधनों की संवैधानिकता को कायम रखा।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आईबीसी में उन प्रावधानों को वैध करार दिया जो बकाया या ऋण के पुनर्भुगतान में चूक की स्थिति में लेनदारों की दिवालिया याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार करने से पहले व्यक्तिगत गारंटर को सुनवाई का अवसर नहीं देते हैं।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘आईबीसी को संविधान का उल्लंघन करने के लिए पूर्वव्यापी तरीके से संचालित नहीं किया जा सकता। इस प्रकार, हम मानते हैं कि कानून स्पष्ट मनमानी के दोषों से ग्रस्त नहीं है।’’
पीठ ने आईबीसी के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली 391 याचिकाओं पर फैसला सुनाया। कई याचिकाओं में संहिता की धारा 95(1), 96(1), 97(5), 99(1), 99(2), 99(4), 99(5), 99(6) और 100 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई।

ये प्रावधान किसी चूककर्ता फर्म या व्यक्तियों के खिलाफ दिवाला कार्यवाही के विभिन्न चरणों से संबंधित हैं।
प्रावधानों को संवैधानिक रूप से वैध ठहराते हुए, पीठ ने कहा कि वे मनमाने नहीं हैं, जैसा कि तर्क दिया गया है।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने अलग-अलग तारीखों पर विभिन्न आधारों पर आईबीसी प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किए थे।
सुरेंद्र बी जीवराजका द्वारा दायर मुख्य याचिका सहित सभी 391 याचिकाओं को बाद में एक साथ नत्थी कर दिया गया था।

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