नैनीताल की वो 3 जगह, जहां देख सकते हैं डायनासोर के समय का ये खास ‘पेड़’

तनुज पाण्डे/ नैनीताल. उत्तराखंड की सरोवर नगरी नैनीताल सिर्फ अपनी सुन्दरता के लिए ही विश्वविख्यात नहीं है बल्कि अपनी प्राकृतिक संपदा के लिए भी यह छोटा सा शहर जाना जाता है. यहां रहने वाले प्रकृति प्रेमी बताते हैं कि यहां पाई जाने वाली कई वनस्पतियां ऐसी भी हैं, जिनका काफी ज्यादा वैज्ञानिक महत्व है. ऐसी ही एक वनस्पति है, जो लगभग 29 करोड़ साल से (डायनासोर काल से) धरती पर मौजूद है. इसका नाम जिंको बाइलोबा (Ginkgo Biloba) है. यह एक फॉसिल प्लांट है, यानी अपनी फैमिली का अंतिम प्लांट जो सबसे ज्यादा समय तक धरती में मौजूद है. इसके 2.5 फीट से लेकर 100 फीट तक की ऊंचाई वाले पेड़ आज भी कुछ जगहों में देखने को मिलते हैं. उत्तराखंड के नैनीताल में भी तीन जगह इसके पेड़ आप देख सकते हैं.

नैनीताल के डीएसबी कैंपस में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर ललित तिवारी ने बताया कि जिंको बाइलोबा को मेडन हेयर ट्री के रूप में जाना जाता है. साथ ही लिविंग फॉसिल भी इस पेड़ को कहा जाता है, यानी इसके सगे संबंधी पौधे अब इस दुनिया में नहीं हैं. 29 करोड़ साल पुराने इस पौधे की उत्पत्ति चीन में हुई थी, जिसे नैनीताल और मसूरी की कुछ जगहों में लगाया गया है.

जिंको बाइलोबा में औषधीय गुण

प्रोफेसर ललित तिवारी ने बताया कि जिंको बाइलोबा चीन का राष्ट्रीय पौधा है. यह कई औषधीय गुणों से युक्त है. इसका उपयोग चीन में दवाइयों में भी किया जाता है. यह चेहरे की चमक को बढ़ाता है. आंखों की बीमारियों को दूर करता है, याददाश्त को बढ़ाता है, स्किन एलर्जी को दूर करता है, जले या कटे में शरीर के उस भाग की जलन को कम करता है, दिमाग के लिए बेहद अच्छा है, ब्रेन फंक्शन को ठीक करता है, रक्त संचार को बेहतर बनाता है, एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है, साथ ही साथ अवसाद और तनाव की स्थिति में रामबाण है. इसके अलावा भी इसके औषधीय गुण हैं.

नैनीताल की इन तीन जगहों पर दिखेगा जिंको बाइलोबा

प्रोफेसर तिवारी ने बताया कि उन्होंने कुछ समय पूर्व UGC की स्कीम के तहत 10 हजार पौधों को वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रयोगशाला में बनाया था और लोगों में बांटा भी था. लेकिन जब इन पौधों को जमीन में लगाया गया, तो सफलता नहीं मिल पाई थी. यहां पूर्व में प्राकृतिक रूप से लगाए गए जिंको बाइलोबा के पौधे सिर्फ तीन जगह देखने को मिलेंगे. नैनीताल स्थित राजभवन, बॉटनिकल गार्डन और डीएसबी कैंपस के वनस्पति विज्ञान विभाग में इस पेड़ को देख सकते हैं.

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