नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बेटे निशांत कुमार सियासत से दूर रहते हैं. उनका बचपन बहुत भागम-भाग भरा रहा है. नीतीश कुमार ने जब 1985 का विधानसभा चुनाव जीता तो उन्हें पटना के एमएलए क्लब में रहने की जगह मिली. यह दो कमरे का आवास था, लेकिन पर्याप्त नहीं था. नीतीश से मिलने वालों की भीड़ लगी रहती थी. उदय कांत, राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में लिखते हैं कि जब नीतीश पटना आए तो विजय चौधरी की मदद से उनकी पत्नी मंजू का तबादला बोरिंग रोड स्थित जेडी बालिका उच्च विद्यालय में हो गया.
पत्नी को खुद स्कूल छोड़ते थे नीतीश
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) खुद पत्नी मंजू को छोड़ने स्कूल जाया करते थे. उनकी सादगी और सौम्य व्यवहार के चलते करीब डेढ़ माह तक किसी को पता ही नहीं लगा कि वह विधायक हैं या मंजू किसी विधायक की पत्नी हैं. पटना आने के बाद नीतीश के घर हमेशा मिलने वालों का तांता लगा रहता. कई बार तो हालत यह हो जाती कि नीतीश को अपने घर में बाहर से ताला लगवाना पड़ता. इसी दौर में पारिवारिक मित्र की सलाह पर उन्होंने अपने बेटे निशांत का दाखिला सेंट केरन्स स्कूल में दूसरी कक्षा में करा दिया.
किसने की थी नीतीश के बेटे की पिटाई?
उदय कांत लिखते हैं कि निशांत बहुत सीधे स्वभाव के थे और स्कूल के सबसे शरीफ बच्चों में उनकी गिनती होती थी. एक दिन किसी शिक्षक ने निशांत की छड़ी से पिटाई कर दी. चोट इतनी गहरी थी कि उसके माथे पर गूमड़ निकल आया औ र बुखार हो गया.
नीतीश कुमार को जब अपने बेटे की पिटाई की खबर मिली तो गुस्से से आग बबूला हो गए. हालांकि उन्होंने अपने करीबी लोगों से बहुत सभ्य भाषा में इसकी चर्चा की और जब तक उनके दोस्त स्कूल के प्रिंसिपल से इसकी शिकायत करते, तब तक उन्होंने निशांत का नाम ही उस स्कूल से कटवा दिया. कलेजे पर पत्थर रखकर मसूरी के गैर अंग्रेजी स्कूल मानव भारती में एडमिशन करा दिया.
टीचर छीन लेती थी खिलौने
बकौल उदय कांत, निशांत कहते हैं कि पापा के दोस्तों सरयू राय अंकल और अरविंद अंकल की सलाह पर मसूरी स्थित मानव भारती नाम के नए स्कूल में मेरा एडमिशन करा दिया गया और वहां मुझे हॉस्टल दिलाया गया. मेरे कमरे से हॉस्टल का बाथरूम बहुत दूर था और वहां जाने में मुझे डर लगता था. मेरे मम्मी-पापा ने मुझे ढेर सारे खिलौने दिलवाए थे. स्कूल की एक टीचर ने मुझसे सारे खिलौने छीन लिए और अपने बेटे को गिफ्ट कर दिया. मैं बहुत दुखी हुआ लेकिन किसी से कुछ कह नहीं पता था.
इन सब के बावजूद मैं भरसक मन लगाकर पढ़ने का प्रयास करने लगा, लेकिन वहां मेरी तबीयत अक्सर खराब रहने लगी. कुछ दिनों बाद मम्मी ने मुझे पटना वापस बुला लिया. इस बार केंद्रीय विद्यालय में एडमिशन कराया.
जब नीतीश ने बेटे को लटका दिया
निशांत अपने बचपन को याद करते हुए कहते हैं कि एक बार को छोड़कर पिताजी ने मुझे ना तो कभी जोर से डांटा या ना तो पीटा. घटना तब की है जब मैं स्कूल में था. उन दिनों स्कूल से जल्दी छुट्टी हो जाया करती थी. मैं जब तक घर लौटता, तब तक मां घर नहीं लौट पाती थीं. कभी कभार मैं नीचे जाकर अशोक अंकल (अशोक चौधरी) के पास भी रहता.
एक दिन मां घर में नहीं थीं और मैं स्कूल से आकर खेलने में बिजी हो गया. पापा ने कई बार होमवर्क करने को कहा पर मैंने अनसुना कर दिया और बाद में जिद करने लगा. इसके बाद उन्हें बहुत गुस्सा आया. अपने दोनों हाथों से मेरी बांह को पकड़ कर मुझे उठा लिया और छत से नीचे छज्जे पर लटका दिया.
मैंने अपने पापा को इतना गुस्सा करते कभी नहीं देखा था. इससे अच्छा होता कि वो मेरी पिटाई कर देते. बाद में उन्हें भी अपनी गलती का एहसास हुआ और मुझे भी अपनी गलती समझ में आई. इसके बाद मुझे मनाने के लिए पापा मेरे लिए क्रिकेट किट लेकर आए.
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FIRST PUBLISHED : January 27, 2024, 08:55 IST