नीतीश कुमार की पाला बदली पर भारी तेजस्वी यादव की राजनीति, क्या बदल रही लालू की आरजेडी?

पटना. बिहार की राजनीति गठबंधन में बदलाव के साथ-साथ एक और बड़ा बदलाव देखने को रहा है. खास तौर पर राजद की राजनीति बिल्कुल ही बदली-बदली लग रही है. ऐसे संकेत मिल रहे हैं की पुरानी आरजेडी अपनी छवि बिल्कुल ही बदल लेना चाहती है. नीतीश कुमार की सत्ता बदली की खबरों के बी शनिवार को राजद विधायकों की गोलबंदी हुई, बावजूद सभी ने अनुशासनप्रियता को आत्मसात किया. रविवार को नीतीश कुमार की पाला बदली के बाद राबड़ी आवास पर सन्नाटा पसरा रहा, और यह बिल्कुल ही आश्चर्यचकित करने वाला रहा.

दरअसल, जो राजद कभी ‘तेल पिलावन और लाठी घुमावन’ पार्टी के नाम से जानी जाती थी, उसका कैरेक्टर बिल्कुल ही बदला हुआ लग रहा है. एक दौर (लालू-राबड़ी शासनकाल) वह भी था जब छोटी-छोटी बातों पर राजद कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ पड़ता था. लेकिन, इस बार ऐसा कुछ नहीं दिखा. इसी क्रम में अगर पिछली बार जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़कर एनडीए में जाने का फैसला किया था तो वह दृश्य भी याद आ जाता है जब राजद के कई नेताओं ने राजभवन के आगे धरना तक दे दिया था.

लेकिन, खास बात यह कि तेजस्वी यादव ने पाला बदली की संभावनाओं के बीच सहज भाव से साफ-साफ कह दिया कि सत्ता जाए तो जाए, हम जनता के बीच में जाएंगे. साफ है कि तेजस्वी के नेतृत्व में राजद नेताओं और कार्यकर्ताओं का संयमित व्यवहार सच महीने में यह जबरदस्त बदलाव है और इसके कर्ताधर्ता लालू प्रसाद यादव नहीं, तेजस्वी यादव हैं. जी हां, यह का जा सकता है कि नई आरजेडी तेजस्वी यादव के रास्ते चल पड़ी है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव अभी 33 साल के हैं, और अभी उनकी पूरी राजनीति पड़ी हुई है और उन्होंने इस बात को समझ भी लिया है.

तेल पिलावन-लाठी घुमावन से आगे निकलता राजद
दरअसल, सत्ता के शीर्ष पर बैठ जाना अलग बात है और सत्ता छिन जाने पर संयमित रह जाना, यह बिल्कुल अलग है. खासतौर पर राजद जैसी पार्टी ऐसा करे तो हैरत तो होगी ही. हालांकि, शनिवार को तेजस्वी यादव ने विधायकों की मीटिंग के बाद या कहा था कि अभी खेल बाकी है. शायद थोड़ी देर के लिए वह अपने पिता लालू प्रसाद यादव के प्रभाव में थे. संभवत: वह यह सोच रहे थे कि मांझी जी मान जाएं और शायद बहुमत मिल जाए और हम सरकार बना लें. लेकिन, थोड़ी ही देर के बाद तस्वीर साफ होने के बाद तेजस्वी यादव बिल्कुल ही अलग-अलग अंदाज में दिखे और वह लगातार अपने बयानों में संतुलित रहे.

युवाओं के जोर पर सत्ता की डोर पकड़ने की कवायद
दरअसल, तेजस्वी यादव की प्रोग्रेसिव राजनीति को लेकर आगे बढ़ने की रणनीति पर चलना चाहते हैं. रविवार की सुबह राष्ट्रीय जनता दल की ओर से अखबारों में दिए गए विज्ञापन में लिखा है… धन्यवाद तेजस्वी, आपने कहा, आपने किया, आप ही करेंगे. राजद ने तेजस्वी को लेकर बिहार भर में मुहिम शुरू की है और इसमें आगे लिखा है- धन्यवाद तेजस्वी 4 लाख नौकरियां देने के लिए, देश में पहली बार जातीय गणना कराने के लिए, 75 फीसदी आरक्षण बढ़ाने के लिए, शिक्षक कर्मियों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए, गुणवतापूर्ण चिकित्सा सुविधा देने के लिए, खेलों में मेडल लाओ, नौकरी पाओ योजना लागू करनेके लिए.

जंगल राज को लेकर बार-बार क्षमा प्रार्थी
यही कारण है कि इस बार लालू प्रसाद यादव की राजनीति पीछे छूटती जा रही है और तेजस्वी यादव की नए दौर की राजद की राजनीति सामने दिख रही है. 23 फरवरी 2020 को तेजस्वी यादव की वह बात याद कीजिए जब उन्होंने पटना के वेटनरी कॉलेज मैदान में कहा था कि लालू-राबड़ी सरकार के समय कुछ गलतियां हुई होंगी, मैं उसे स्वीकार करता हूं. उसके लिए आप सबसे माफी भी मांगता हूं. किंतु अब नया जमाना है और पुरानी बातों को भूलकर हमें नया बिहार बनाना है. बिल्कुल यही बात यही बात 5 जुलाई 2020 को राष्ट्रीय जनता दल के स्थापना दिवस पर भी दोहराई थी.

तेजस्वी यादव भी जानते हैं, बदल गया जमाना
जाहिर है तेजस्वी यादव की लाइन बिल्कुल ही सीधी है. इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि तेजस्वी बार-बार इसलिए माफी मांग रहे हैं कि बीते लोकसभा चुनाव में उन्होंने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया. मुस्लिम-यादव गठजोड़ की भी राजनीति की, पर हाथ तो सिफर ही लगा. वे यह भी समझते हैं कि वे लालू नहीं हैं जो जनता किसी भी स्थिति में उनके पीछे लाठी उठाकर चल देगी, जमाना अब बदल गया है.

यूथ की नब्ज पकड़ आगे बढ़ेंगे तेजस्वी
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि दरअसल, तेजस्वी ये जानते हैं कि वे खुद नए हैं और यूथ को अब जाति-जमात की राजनीति में बांधना कठिन काम है. सिर्फ मुस्लिम और यादव की राजनीति नहीं चलेगी क्योंकि इसमें भी अब पढ़ा लिखा वर्ग सही-गलत का भेद सोचता और समझता है. वह नौकरी की बात करता है. तभी तो तेजस्वी यादव का पूरा जोर युवाओं को रोजगार देने का है. ऐसे में अब तीन दशक पहले जिस रास्ते पर चलते हुए लालू प्रसाद यादव को मंजिल मिली थी, वह रास्ता अब घिस-पिट गया है और तेजस्वी नौकरी और विकास की बात करते नजर आते हैं.

सर्वसमाज की पार्टी बनने की भी कवायद
दरअसल, तेजस्वी यादव के हाथों में जब से पार्टी संचालन की कमान आई है तब से ही उन्होंने आरजेडी को यादव-मुस्लिम टैग से बाहर निकालकर सर्वसमाज की पार्टी बनाने की कवायद की है. पहले आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी राजपूत बिरादरी के जगदानंद सिंह को सौंपी और ब्राह्मण चेहरा मनोज झा को राज्यसभा भेजा. वहीं, पार्टी ने अपने कोर वोटबैंक की जगह भूमिहार तबके से आने वाले अमरेंद्र धारी सिंह को राज्यसभा भेजकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की.

माफी मांगते तेजस्वी और विकास की बात
असल में आरजेडी अब नौकरी की बात करती है, विकास की बात करती है. सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक न्याय के नारे के साथ आगे बढ़ रही है. साथ ही आरजेडी ‘जंगलराज’ के ठप्पे से पार्टी को छुटकारा दिलाने की कवायद में लगी हुई है. इसी क्रम में हाल के दिनों में तेजस्वी यादव ने कई बार कहा है कि अगर 15 वर्षों के आरजेडी के शासनकाल में कुछ गलतियां हुई हैं तो वे इसके लिए बिहार की जनता से माफी मांगते हैं. अभी हाल में उनके चचेरे भाई के बेटों ने पटना में एक अधिकारी के साथ तो मारपीट की उसपर तेजस्वी ने तत्काल एक्शन लेने की बात की.

वोट प्रतिशत का गिरता ग्राफ, राजद की चिंता
इसके पीछे एक बड़ी वजह वोट प्रतिशत से भी जुड़ता है. जिस माय समीकरण के बूते राजद लड़ाई लड़ती रही है उसमें भी सेंधमारी हो चुकी है. बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी का वोट प्रतिशत तो गिरा ही, साथ ही ऐतिहासिक हार भी हुई और उसके खाते में एक भी सीट नहीं आई. वहीं वोट प्रतिशत भी लगातार गिरता चला गया. 2004 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी को कुल वोटों का 30.7 प्रतिशत मत मिला था. 2005 विधानसभा चुनाव में 23.45, 2009 लोकसभा चुनाव में 19.3, 2010 विधानसभा चुनाव में 18.8, 2014 लोकसभा में 20.5, 2015 विधानसभा में 18.3 और 2019 के लोकसभा चुनाव में 15.4 प्रतिशत वोट ही आरजेडी को मिले.

विधान सभा चुनाव में तेजस्वी की नैतिक जीत
हालांकि, 2020 के विधान सभा चुनाव में राजद का प्रदर्शन बेहतरीन रहा और सबसे बड़े वोट प्रतिशत के साथ ही सबसे बड़ी पार्टी बननकर उभरी. यह युवा तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ही लड़ा गया था. भले ही सरकार एनडीए की बनी थी, लेकिन नैतिक जीत तेजस्वी यादव की हुई थी. इस उपलब्धि को भांपते हुए ही तेजस्वी यादव ने अपने आपको अब तक संयमित रखा है. आज भी जब नई सरकार के शपथ ग्रहण से पहले उन्होंने मीडिया से बात की तो नीतीश कुमार के विरुद्ध कुछ अपमानजनक बातें नहीं कीं, लेकिन इतना जरूर कह दिया कि अभी खेल बाकी है.

मोदी युग’ में टूटते मिथक और सभी समीकरण
राजनीतिक विश्लेषक रवि उपाध्याय बताते हैं कि बदले समय की राजनीति और केंद्र में मोदी युग आने के कारण बिहार के सियासी समीकरण में भी बड़ा बदलाव आया है. जातियों की दीवारें काफी हद तक टूटी हैं. लालू यादव का माय समीकरण भी दरका है. दूसरा असदुद्दीन फैक्टर भी बिहार में अब कारगर होता जा रहा है जिससे उनके वोटों के आधार में सेंध लगी है. अब ऐसे में राजद के सामने बड़ी चुनौती सर्वसमाज में अपनी पैठ बनाने की है. ऐसे में आरजेडी तेजस्वी के नेतृत्व में बदलता हुआ दिखना चाहती है, या यूं कहें कि इसकी शुरुआत भी हो चुकी है.

Tags: CM Nitish Kumar

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