हाइलाइट्स
नीतीश कुमार के स्टैंड से बैकफुट पर राजद और कांग्रेस.
लालू-तेजस्वी समेत RJD नेताओं की चुप्पी, कांग्रेस भी मौन.
पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ में जदयू की कमान आने के बाद से लालू प्रसाद की चुप्पी एवं तेजस्वी यादव की रद्द विदेश यात्रा यह बताने को काफी है कि जदयू में जो हुआ है या फिर आगे जो कुछभी हो सकता है, उससे राजद अंजान नहीं है. लालू को राजनीति का बड़ा पुरोधा माना जाता है, लेकिन नीतीश कुमार की चाल साबित करती रही है कि केवल विधायकों और सांसदों की संख्या के आधार पर ही जदयू की ताकत का अंदाजा करना सौ प्रतिशत सही नहीं होगा.
दरअसल, जदयू के पास नेता के रूप में नीतीश कुमार भी हैं, जिन्हें राजनीतिक के सभी मानकों से ऊपर माना जाता है. यही कारण भी है कि 45 विधायकों वाला जदयू बिहार की सत्ता के शीर्ष पर है, और 79 विधायकों वाला राजद उसकी सहयोगी है. जानकारी के मुताबिक, राजद के लोगों को भी विशेष तौर पर यह हिदायत दी गई है कि गठबंधन की लाइन से अलग एक शब्द भी नहीं बोलना है.
बताया जा रहा है कि शायद यही कारण है की राजद से बिहार विधान परिषद सदस्य सुनील कुमार सिंह का सोशल मीडिया पर दिया जानेवाला ज्ञान पिछले एक सप्ताह से बंद दिख रहा है. इसके पहले वह प्रत्येक दिन इशारों ही इशारों में नीतीश कुमार को निशाना बनाते हुए ट्वीट किया करते थे. सुनील सिंह द्वारा किंया जानेवालाअंतिम ट्वीट 23 दिसंबर का है. उसके बाद से उन्होंने लंबी चुप्पी साध रखी है.
इतना ही नही अपनी ही सरकार के खिलाफ दिए गए बयानों के कारण मंत्रिमंडल से हटाए गए राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह भी मुंह नहीं खोल रहे हैं. और तो और, सतर्कता और आशंका को लेकर ही सावधानी इस कदर बरती जा रही कि लालू यादव ने भी पिछले तीन चार दिनों से कोई ट्वीट नहीं किया है. कोई ऐसा बयान भी उनकी तरफ से नहीं आया है. उनका आखिरी ट्वीट दिल्ली में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दो दिन पहले यानी 27 दिसंबर का है, जिसमें उन्होंने पूर्व पीएम वीपी सिंह की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी है.
राजद की ओर से ललन सिंह के संदर्भ में भी सफाई आने लगी है कि गठबंधन के लिए जो नेता आगे बढ़कर पहल करता है, उसपर तोहमत लगने का यह कोई पहला मामला नहीं है. इसे लेकर स्वर्गीय शरद यादव का उदाहरण दिया जा रहा है कि उन्होंने 2015 में राजद-जदयू के मिलन में बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन बाद में उनपर लालू खेमा के नेता होने का आरोप लगा.
राजद सूत्रों का कहना है कि जदयू के महागठबंधन में आकर बिहार में सरकार बनाने के पहले कोई शर्त नहीं लगाई गई थी. सिर्फ लोकसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि 2025 के विधानसभा चुनाव तक नेतृत्व परिवर्तन की कोई बात ही नहीं हुई है, जो भी चल रहा है वह सब का सब भाजपा द्वारा फैलाई गई अनर्गल बातें और मीडिया ट्रायल है. बहरहाल, दावे कुछ भी हों, लेकिन राजद और कांग्रेस की खामोशी जरूर सवालों में है.
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FIRST PUBLISHED : December 31, 2023, 09:46 IST