दीपक पाण्डेय/खरगोन. पूरे विश्व में नर्मदा ही एकमात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है. मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगाने से जो पुण्य मिलता है, वैसा ही पुण्य मां नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है. खरगोन में नर्मदा के दर्शन करने और नाव की सवारी का लुत्फ उठाने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन निमाड़ अंचल के 36 घाट ऐसे हैं, जहां सिर्फ केवट समाज के लोग ही नाव चलाते हैं. दूसरे समाज के लोगों को यहां नाव चलाने की इजाजत नहीं.
बता दें कि जीवनदायिनी मां नर्मदा मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलकर निमाड़ अंचल होते हुए महाराष्ट्र, गुजरात और फिर खम्बात की खाड़ी में जाकर मिलती हैं. इस बीच निमाड़ के 36 घाट ऐसे हैं, जहां सिर्फ भगवान श्रीराम को नदी पार करने वाले केवट समाज के लोग ही नाव चलाते हैं. यह घाट उन्हें मुगल बादशाह अकबर ने इनाम में दिए थे. मोड़ी भाषा में लिखा सनद पत्र, जिस पर बादशाह अकबर ने उर्दू और मराठी में हस्ताक्षर किए हैं, आज भी समाज के पास सुरक्षित है.
निमाड़ के इन जिलों के घाट दिए थे
खरगोन के मंडलेश्वर निवासी नाविक राधेश्याम केवट और परमानंद केवट ने बताया कि संवत 1634 में मुगल सम्राट बादशाह अकबर ने केवट समाज को निमाड़ क्षेत्र के खरगोन, खंडवा, बड़वानी, धार जिले में ओंकारेश्वर से बड़वानी के राजघाट तक के 36 घाट इनाम में दिए थे. उनके द्वारा जारी सनद पत्र में लिखा है कि जब नर्मदा नदी पूरे उफान पर हो तब दोनों किनारों से साठ हाथ की नाड़ी से नाप सके इतनी जमीन का उपयोग कर सकते हैं.
इसलिए दान में मिले घाट
नाविकों ने बताया कि अकबर की सेना में दो नावड़ा समाज के सैनिक थे. जब अकबर की पत्नी का मूंदड़ा ओंकारेश्वर में नहाने के दौरान नर्मदा नदी में गुम गया था तब ढूंढने पर वह मूंदड़ा नावड़ों को मिला था. दिल्ली से लौटकर जब अकबर मांडवगढ़ आए तो उन्होंने केवट समाज के लोगों को बुलाया और रोजगार के लिए 36 घाट दान में दिए. तब गंगा किनारे से 30 परिवार बुलाए गए, जिन्होंने यहां नाव संचालन का कार्य किया.
इन्होंने ने भी दिया अधिकार
अकबर के बाद होलकर रियासत, बड़वानी रियासत, सिंधिया रियासत और ब्रिटिश शासन ने भी मान्यता दी है. आजादी के बाद 1950 में मध्य भारत फेरी एक्ट अधिनियम के तहत भी केवट समाज को नौका संचालन का मालिकाना अधिकार दिया गया है.
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FIRST PUBLISHED : December 17, 2023, 19:34 IST