नहीं मिलेगा इससे सस्ता! सिल्क-लिनन और खादी के कपड़ों के लिए बेस्ट है ये मार्केट, नोट कर लें पता

दीपक कुमार/ बांका: हस्तकरघा उद्योग से बांका का वर्षो पुराना नाता है. यहां कई ऐसे गांव में जहां हर घर में हस्तकरघा का काम किया जाता है. और इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है. यह उनके पुस्तैनी कारोबार का हिस्सा है. बांका तसर और सिल्क के कपड़ों की बुनाई के लिए प्रसिद्ध है. हालांकि अब हस्तकरघा की जगह हैंडलूम और पॉपरलूम ने ले लिया है. हालांकि पुराने तौर-तरीके से कपड़े तैयार का काम अब सुस्त पड़ गया है. इसका स्थान पॉवरलूम ने लिया है. पॉवरलूम पर कम समय में कपड़े तैयार हो जाता है. इससे डिजानर साड़ी या अन्य परिधान बनाने में आसानी होती है.

बांका जिला के अमरपुर प्रखंड अंतर्गत कटोरिया एक ऐसा गांव है जहां हर घर में वस्त्र निर्माण का काम सालोभर चलता है. यहां सिल्क, लीनन और खादी के परिधान तैयार किए जाते हैं. क्वालिटी बेहतर रहने की वजह से बाजार में डिमांड भी अधिक है. इसी गांव के मो. एजाज हैंडलूम की मदद से परिधान तैयार कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. मो. एजाज सिल्क, लीनन और खादी तीनों प्रकार के कपड़े तैयार करते हैं.

कटोरिया गांव में मिल जाएगा प्योर सिल्क का परिधान
मो. एजाज ने बताया कि सिल्क, लीलन, मधुबनी प्रिंट साड़ी, सूट, खादी वाला कुर्ता तैयार करते हैं. अगर आपको साड़ी या अन्य परिधान लेना है तो कटोरिया गांव आना होगा. यह गांव अमरपुर प्रखंड मुख्यालय से सटा हुआ है. यहां केजीएन सिल्क फैब्रिक इंडस्ट्रीज चालते हैं और हर प्रकार का कपड़ा तैयार करते है. खास बात यह है कि बाजार से सस्ते रेट पर आपको मनपसंद परिधान मिल जाएगा. उन्होंने बताया कि यहां आपको प्योर सिल्क का कपड़ा कम रेट पर मिल जाएगा.

एजाज ने बताया कि सिल्क परिधान को तैयार करने के लिए सबसे पहले कोकून को लाया जाता है. जिसे हीट वेव या कुकर में उबालते हैं. इसके बाद 12 कोकून मिलाकर धागा तैयार कर रिलिंग और कलरिंग करते हैं. तब जाकर मशीन पर परिधान तैयार होता है. तैयार होने के बाद अलग-अलग प्रकार का प्रिंट किया जाता है. फिलहाल मधुबनी प्रिंट का चलन अधिक है और इसकी सर्वाधिक डिमांड आ रही है.

पुस्तैनी धंधे से मुंह फेरते जा रहे हैं युवा
एजाज ने बताया कि परिधान तैयार का यह काम कई पीढ़ियों से चला रहा है. यह हमारे पूर्वजों का दिया हुआ धंधा है, जिस नई पीढी आगे बढ़ाने का काम कर रहा है. हालांकि अधिकांश युवा पीढ़ी पुस्तैनी धंधे से अब मुंह फेरते जा रहे हैं. इसके पीछे की मुख्य वजह है कि बाजार में नकली सिक्ल के बने परिधान की भरमार है और सस्ते में उपलब्ध हो जाता है. कटोरिया गांव में बनने वाला परिधान मंहगा एवं प्योग सिल्क का बना होता है. लोग फर्क नहीं समझ पाते हैं और सस्ते के चक्कर में नकली सिल्क का परिधान खरीद लेते हैं. जिससे यह धंधा मंदा होते जा रहा है और युवा पीढ़ी कुछ और कार्य करने में लग गए.

चार लाख से अधिक की हो जाती है कमाई
एजाज ने बताया कि सरकार से 7 लाख की अनुदान राशि लेकर चार पॉवरलूम मशीन, दो हैंडलूम मशनी लगाया है. बुनियादी बुनियादी रेलिंग सीलिंग कैलेंडर मशीन, यार्न रोलिंग सामग्री भी उपलब्ध है. जिससे करीबन 150 मीटर रोजाना फैब्रिक तैयार की जाती है. यहां से लोकल बाजार के अलावा बिहार और बिहार के अलावा देश के अन्य हिस्सों में जाता है. वहीं अंतराष्ट्रीय बाजार में बिक्री की जाती है. यहां 25 से 30 लोग काम करते हैं. सालाना चार लाख से अधिक का मुनाफा हो जाता है.

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