अभिनव कुमार/दरभंगा: शारदीय नवरात्र के 9 दिन विशेष तौर पर पूजा-पाठ करने के लिए शुभ माने जाते है. हर दिन एक विशेष पूजन विधि की जाती है और कही शुभ संकेत को भी यह दर्शाता है. इन शुभ दिनों के दौरान, आज हम बात करेंगे दसवीं की यात्रा को लेकर. दसवीं की यात्रा इतनी प्रसिद्ध क्यों है? और क्या इसका फलाफल है. यात्रा के दौरान नीलकंठ का क्या महत्व है. इसके दर्शन मात्र से मनवांछित फल की प्राप्ति कैसे होती है. इस पर विस्तृत जानकारी कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग के विभागा अध्यक्ष डॉ कुणाल कुमार झा ने दी. आइए जानते हैं इसका महत्त्व.
दसवीं की यात्रा, शारदीय नवरात्र में एक महत्वपूर्ण त्योहार है और इसका महत्व भारतीय सांस्कृतिक धर्म में गहरी मान्यता रखता है. इस पावन यात्रा के दौरान भगवान शिव को नीलकंठ (जिसका अर्थ है ‘नीली कंठ’ यानी गले का नीला रंग) के रूप में पूजा जाता है. यह परंपरागत यात्रा कई कारणों से प्रसिद्ध है:
महत्व: दसवीं की यात्रा का महत्व इसमें है कि इस दिन मां दुर्गा ने अपने असुरी शक्ति को नीचे दबाया और उन्होंने भगवान शिव का साथ दिया. यह दिन शक्ति और शिव के साथ एकत्र आने का प्रतीक है.
फलाफल: इस यात्रा को करने से ऐसा माना जाता है कि भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें सफलता मिलती है. यह भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक सुख-शांति की प्राप्ति का अवसर प्रदान करता है.
नीलकंठ का महत्व: यात्रा के दौरान भगवान शिव के नीलकंठ स्वरूप की पूजा करने से भक्तों को अपने पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें दिव्य आशीर्वाद मिलता है.
नीलकंठ, शारदीय नवरात्र के दौरान महत्वपूर्ण भाग होता है. इस दौरान नीलकंठ शिव का एक प्रमुख रूप है, और भगवान शिव की पूजा करने के लिए यह यात्रा कायम की जाती है. नीलकंठ का अर्थ होता है ‘नीला कंठ’ या ‘ब्लू थ्रोट’ जिसे शिव के गले के रंग के रूप में देखा जाता है.
भगवान शिव का माना जाता है रूप
नीलकंठ का महत्व है क्योंकि इसे मां दुर्गा के असुरी शक्तियों को नीचे दबाने और उन्हें विनाश करने के बाद भगवान शिव द्वारा प्राप्त किया गया था. इसके दर्शन से मानव आत्मा को शांति और मनवांछित फल की प्राप्ति की आशा होती है. नीलकंठ की पूजा करने से भक्तों को पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस तरह, नीलकंठ यात्रा नवरात्र के इस महत्वपूर्ण दौरान भगवान शिव की पूजा का माध्यम बनती है, जिससे भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक सुख की प्राप्ति होती है.
इस दिन कही न कहीं की यात्रा अवश्य करनी चाहिए
डॉ कुणाल कुमार झा ने बताया कि 24 अक्टूबर को अपराजिता पूजा, विजयादशमी, देवी विसर्जन, सरस्वती विसर्जन, जयंती धरणाम और नवरात्र व्रत के दिनों में कहीं ना कहीं यात्रा जरूर करनी चाहिए. यात्रा के लिए यह दिन विशेष माना गया है. यात्रा के समय खंजन अर्थात नीलकंठ पक्षी अगर दिख जाए, उस पक्षी के दर्शन अगर हो जाते है, तो वह शुभकारक माना गया है. इसी यात्रा को विजयादशमी यात्रा कहते हैं, इस दिन विजय यात्रा होती है, कहीं जगहों पर रावण वध की भी प्रथा है, इन शारदीय नवरात्रों का विशेष महत्व है.
नोट:- चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, फेंग शुई आदि विषयों पर आलेख अथवा वीडियो समाचार सिर्फ पाठकों की जानकारी के लिए है. इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूरी है. हमारा उद्देश्य पाठकों तक महज सूचना पहुंचाना है, अतः इसे महज सूचना समझकर ही लें. इसके अलावा, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की होगी, Local 18 इन तथ्यों की कहीं से भी पुष्टि नहीं करता.
.
Tags: Bihar News, Darbhanga news, Latest hindi news, Local18, Navratri
FIRST PUBLISHED : October 17, 2023, 10:08 IST