दुर्गेश सिंह राजपूत/नर्मदापुरम. हिंदू पंचांग के अनुसार जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है, तो उस दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है. ज्योतिषाचार्य पं अविनाश मिश्रा ने बताया कि हर माह में दो बार यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष पर प्रदोष व्रत किया जाता है. चलिए जानते हैं प्रदोष व्रत की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त.
प्रदोष व्रतमुहूर्त
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, आश्विन माह की शुक्ल त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ 10 नवंबर से शुक्रवार के दिन दोपहर 12:35 मिनट पर हो रहा है. वहीं इसका समापन 11 नवंबर को दोपहर 01:57 मिनट पर होगा. ऐसे में प्रदोष व्रत 10 नवंबर, शुक्रवार के दिन किया जाएगा. शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाएगा. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 05:30 मिनट से रात 08:08 मिनट तक रहेगा.
व्रत की पूजा विधि इस प्रकार
पं अविनाश मिश्रा के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें. इसके बाद भगवान शिव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लीजिए. प्रदोष व्रत की पूजा दो बार की जाती है, पहले सूर्यास्त से पूर्व एवं दूसरी सूर्यास्त के बाद. इस दिन प्रदोष काल में की गई पूजा का विशेष महत्व माना गया है. ऐसे में पूजा स्थल की अच्छे से साफ-सफाई करें और गंगाजल या नर्मदाजल का छिड़काव करें. इसके बाद भगवान शिव की प्रतिमा या मूर्ति को स्थापित कीजिए. अब भोलेनाथ जी की विधि-विधान के साथ पूजा कीजिए एवं शिवलिंग का अभिषेक करें. साथ ही महादेव की कृपा प्राप्ति के लिए इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप जरूर करें. शाम के समय पुनः इसी विधि से भगवान शिव की पूजा कर फलहार से व्रत का पारण कीजिए.
इस व्रत का खास महत्व
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि प्रदोष व्रत पर महादेव की पूजा-अर्चना करने का विधान माना गया है. शास्त्रों में माना गया है कि प्रदोष व्रत करने से साधक को जन्म-जन्मान्तर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही साधक पर भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा बनी रहती है. इसके कारण व्यक्ति के जीवन में चल रही सभी प्रकार की समस्याएं भी दूर हो जाती हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 3, 2023, 14:42 IST