भरत तिवारी/जबलपुर. सनातन धर्म में सदियों से एक परंपरा चली आ रही है, जिसमें हम माता नर्मदा नदी की गहराइयों में मिले हुए कंकड़ों को भगवान भोलेनाथ का एक अंश मानकर अपने घर लाकर उन्हीं पूजा करते है. यह भक्तों और श्रद्धा है जिसमें माता नर्मदा की गहराइयों में मिले कंकड़ों को हम भोलेनाथ का स्वरूप मानकर उनकी पूजा शुरू करते हैं. अगर पौराणिक कथाओं की हम बात करें तो मां नर्मदा को भोलेनाथ की ही पुत्री कहा गया है. इसलिए कहा जाता है की माता गंगा के हर कंकर में भोलेनाथ का वास होता है.
माता नर्मदा में मिले हर कंकर को हम भोलेनाथ का रूप समझ कर उसे क्यों पूजते है, माता नर्मदा में मिले कंकड़ को हम भोलेनाथ का अंश मानते हैं. इसके पीछे एक बड़ी कहानी छुपी हुई है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भोलेनाथ की पुत्री होने के बाद भी माता गंगा ने काफी लंबे समय तक भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें वरदान दिया और कहा कि कलयुग में मैं तुम्हारे हर कंकर में वास करूंगा तब से लेकर आज तक माता नर्मदा के हर कंकर में भोलेनाथ वास करते हैं.
नर्मदेश्वर भोलेनाथ के नाम से जाने जाते हैं यह शिवलिंग
माता नर्मदा सिमीले हर एक कंकड़ को लोग नर्मदेश्वर शिवलिंग बोलते हैं कहते हैं कि यह भोलेनाथ के ही शिवलिंग है जो भोलेनाथ ने माता नर्मदा को प्रदान किए हैं जिसकी बिना प्राण प्रतिष्ठा के हम घर ले जाकर इनकी पूजा करते हैं. इन छोटे-छोटे शिवलिंगों को हम नर्मदेश्वर शिवलिंग के नाम से जानते हैं.नर्मदेश्वर शिवलिंगों का शास्त्रों में भी काफी महत्व माना गया है, कहते हैं कि इन शिवलिंगों को घर ले जाकर जो भी श्रद्धा भाव के साथ उनकी पूजा करता है, उनकी मनोकामना आवश्य ही पूरी होती है. माता नर्मदा भोलेनाथ की पुत्री है और उनकी कोख से मिले भोलेनाथ के यह शिवलिंग माता नर्मदा के जल से स्वतः ही प्रतिष्ठित होते हैं. भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए माता नर्मदा का जल हम चढ़ते हैं, इसलिए इन नर्मदेश्वर शिवलिंगों को जो घर ले जाकर उनकी श्रद्धा भाव से पूजा करता है उनकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है.
.
FIRST PUBLISHED : November 27, 2023, 23:44 IST