नरक चतुर्दशी को की जाती है यम देवता की पूजा, जानें 14 दीए जलाने का महत्व

रामकुमार नायक/रायपुर : सनातन धर्म में दीपावली का विशेष महत्व होता है. दीपावली के ठीक एक दिन पहले नरक चतुर्दशी या रूप चौदस के रूप में मनाया जाता है. नरक चतुर्दशी 11 नवंबर 2023 मनाई जाएगी. इस दिन सुबह अभ्यंग स्नान किया जाता है, स्त्रियां इसमें उबटन लगाकर अपना रूप निखारती हैं. वहीं शाम के समय यमराज के निमित्त दीपदान करने की प्रथा सदियों से चली आ रही है.

ज्योतिषाचार्य मनोज शुक्ला ने बताया कि नरक चतुर्दशी हर बार पांच दिन दीपावली के धनतेरस के दूसरे दिन पड़ता है. इस बार 11 नवंबर को नरक चतुर्दशी पड़ रही है. नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी, काली चतुर्दशी के रूप में भी मनाई जाती है. रूप चतुर्दशी इसलिए क्योंकि इस दिन अपने शरीर में उबटन लगाकर और अच्छे से मल-मल कर स्नान करने के बाद यम देवता यमराज का निमित्त तर्पण इत्यादि करना चाहिए. इसलिए इनको रूप चौदश भी कहा गया है.

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क्यों मनाई जाती है नर्क चतुर्दशी

ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि नरक चौदश इसलिए पड़ा की राक्षस राजा नरकासुर पृथ्वी पर लोगों को पीड़ा दे रहा था. इस यातना सहन करने में असमर्थ लोगों ने मदद के लिए भगवान कृष्ण की प्रार्थना की और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर राक्षस को मारकर उसके जेल खाने से 16 हजार स्त्रियों को छुड़ाया था. उन्हीं नरकासुर को मारने के कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी के नाम से जानी जाती है.

यम देवता को कैसे करें प्रसन्न

उन्होंने बताया कि सतयुग में राजा रंतिदेव ने नरक की यातना से बचने के लिए घोर तपस्या करके यमराज को प्रसन्न किया था. इसलिए इस दिन यमराज के निमित्त आटे की दीया बनाकर दीप दान करना चाहिए. जिससे यमराज प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल की आशीर्वाद देते हैं. पितृ पक्ष में आए हुए पितरगण इस दिन यानी नरक चौदश के दिन पितृ लोक वापस जाते हैं. इसलिए उन पितरों के निमित्त आटे के 14 दीये दरवाजे पर जलाना चाहिए.

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