नमाज पढ़नी है तो मस्जिद है, वहां जाओ…एयरपोर्ट पर अलग कमरे याचिका से HC नाराज

नई दिल्‍ली. गुवाहाटी हाई कोर्ट ने एयरपोर्ट पर नमाज पढ़ने के लिए अलग से कमरा मुहैया कराने की मांग को लेकर लगाई गई जनहित याचिका को खारिज करते हुए इसपर नाराजगी जाहिर की. हाई कोर्ट ने सख्‍त लहजे में कहा कि नमाज पढ़नी है तो उसके लिए मस्जिद है। याची को वहां जाना चाहिए. चीफ जस्टिस की बेंच ने यह सवाल भी पूछा कि इस याचिका में जनहित जैसा क्‍या है? अगर अर्जी को स्‍वीकार कर लिया गया तो इससे जनहित का कौन सा काम हो जाएगा? अगर एयरपोर्ट पर नमाज के लिए अलग से कमरा नहीं बनाया गया तो समाज का कौन सा नुकसान होगा.

पेश मामले में याची की तरफ से कहा गया था कि दिल्‍ली, अगरतला और तिरुवनंतपुरम जैसे बड़े एयरपोर्ट पर नमाज पढ़ने के लिए अलग से कमरा उपलब्‍ध है. इसी तर्ज पर गुवाहाटी एयरपोर्ट पर भी कमरा उपलब्‍ध कराया जाना चाहिए. हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस सुष्मिता खौंद की बेंच ने इसपर कहा कि अगर ऐसा नहीं है तो क्‍या ये मूल अधिकारों का हनन है. यह किसी नागरिक का अधिकार है, जो वो अलग से कमरे की मांग कर रहे हैं? यदि ऐसी मांग एयरपोर्ट पर होगी तो फिर भविष्‍य में अन्‍य सार्वजनिक स्‍थलों पर भी यह मांग होने लगेगी. आपके पास नमाज और पूजा करने के लिए स्‍थान उपलब्‍ध हैं. आप वहां जाकर ऐसा करें.

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एक समुदाय के लिए ऐसी व्‍यवस्‍था नहीं की जा सकती
हाई कोर्ट ने कहा कि हम केवल एक ही समुदाय के बीच में नहीं रहते हैं. हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है. किसी एक समुदाय की याचिका पर ऐसे अलग से व्‍यवस्‍था कैसे की जा सकती है. याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि फ्लाइट्स की टाइमिंग ऐसी है, जिसके चलते वो धर्म स्‍थलों पर जाकर प्रार्थना नहीं कर सकते हैं. इसपर चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि अगर ऐसी स्थिति है तो फिर याचिकाकर्ता को अपनी सुविधा के अनुरूप ही फ्लाइट लेनी चाहिए. ये आपका निर्णय है. प्रार्थना करके ही फ्लाइट लें. हम आपकी बात से संतुष्‍ट नहीं हैं.

याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी अनुरोध किया गया था कि यदि एयरपोर्ट पर अलग से कमरे का इंतजार नहीं किया जा सकता तो वहां किसी स्‍थान को चिन्हित कर दें. जिस तरह स्‍मोकिंग जोन होता है. वैसे ही नमाज पड़ने के लिए अलग जोन बनाया जा सकता है. अदालत ने इसे स्‍वीकार नहीं किया.

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