आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में मुख्य रूप से धान, गेहूं और गन्ने की खेती की जाती है. यहां के ज्यादातर किसान इन्हीं फसलों की खेती पर निर्भर हैं. हालांकि, जिले में पाई जाने वाली मिट्टी में कई अन्य फसलों की खेती भी की जाती सकती है. इसमें लागत बहुत कम और इनकम उम्मीद से कई गुना ज्यादा है. लेकिन, जानकारी के अभाव में किसान गिनी-चुनी फसलों की ही खेती मुख्य रूप से कर रहे हैं. लिहाजा सीमित बाजार में संघर्ष की स्थित बनी रहती है. किसानों की इन समस्याओं के समाधान के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने उन्हें कुछ खास मसालों की खेती की सलाह दी है.
जिले के मझौलिया प्रखंड के माधोपुर स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के वस्तु विशेषज्ञ धीरू कुमार तिवारी ने जिले के किसानों की आर्थिक स्थिति बदलने वाली फसलों की खेती की जानकारी दी है. धीरू कुमार ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि यहां के किसान मसालों की खेती बड़े स्तर पर कर सकते हैं. इनमें कलौंजी, धनिया, मेथी, सौंफ, अजवाइन, अदरक और लहसुन मुख्य हैं. अच्छी बात यह है कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इनकी खेती को बेहतर तरीके से परख लिया गया है. फसलों की गुणवत्ता बेहद उच्च दर्जे की है और पैदावार उम्मीद से ज्यादा हुई है. मसालों की खेती की सफलता देख मझौलिया, बगहा और मैनाटांड़ प्रखंड के किसानों ने इसकी सफल पैदावार भी की है. उनका कहना है कि अन्य फसलों की तुलना में मसालों की खेती फायदे का सौदा है.
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लागत से 5 गुना ज्यादा इनकम
नरकटियागंज के मुसहरवा गांव निवासी कमलेश कुमार ने अदरक, लहसुन, सौंफ, अजवाइन सहित कुछ अन्य मसालों की खेती का पूरा गणित बताया है. कमलेश की मानें तो मसाले मुख्य रूप से रबी फसलों की श्रेणी में आते हैं. इसकी कटाई 4 महीने से लेकर साल भर तक की जाती है. यदि कोई किसान 10 कट्ठा में मिश्रित मसाले या फिर किसी एक मसाले की रोपनी करता है, तो बीज और अन्य खर्च लेकर कुल 5 हजार तक की लागत आएगी. जबकि, फसल तैयार होने के बाद लागत की कम से कम 5 गुना कमाई तो तय है.
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FIRST PUBLISHED : March 14, 2024, 13:49 IST