गुलशन सिंह/बक्सर. कम बारिश के बावजूद बक्सर जिला में इस बार 98088 हेक्टेयर में धान की रोपाई हुई है. वहीं धान की रोपाई के तीस दिनों बाद से हीं पौधे में गलका रोग लगने लगा है. धान के पौधे में रोग लगने से किसानों की परेशानी बढ़ गई है. किसान बाजार में उपलब्ध कीटनाशक दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसका कोई असर नहीं हो रहा है. किसानों की समस्या को लेकर बक्सर के लालगंज स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम केवल ने इस बीमारी से निजात पाने के लिए किसानों को आवश्यक सुझाव दिया है. उन्होंने बताया कि अगस्त महीने में वर्षा बहुत कम होने से पौधों की वृद्धि व विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.
पत्तियों पर दिखता है गलका रोग के लक्षण
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम केवल ने बताया कि सितंबर महीने में अच्छी वर्षा होने से कुछ राहत मिली है. इसके बावजूद तापमान में हो रहे उतार-चढ़ाव से फसलों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. एक सप्ताह पूर्व तापमान में अधिक वृद्धि होने से धान के पौधों में पर्णच्छद झुलसा रोग जिसे अंग्रेजी में शीथ ब्लाइट और आम बोलचाल की भाषा में गलका रोग के नाम से जाना जाता है. यह एक फफूंद जनक बीमारी है. इस रोग के लक्षण मुख्यतः पत्तियों एवं तनों को घेरे हुए दिखाई देता है. पानी की सतह के ऊपर दो से तीन सेंटीमीटर लंबे हरे और भूरे या पुआल के रंग के छत स्थल बन जाता है. यही छत स्थल बाद में बढ़कर तनों को चारों ओर से घेर लेता है. जिससे पत्ती झुलसकर सूख जाती है. पौधा पत्ती विहीन होने लगता है. ऐसे में इन पौधों से धान की बाली नहीं निकलती है. जिसका उपज पर अधिक प्रभाव पड़ता है. हजारों खर्च के बाद भी किसानों को अपना खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता है.
गलका रोग से बचाव के लिए इन दवाओं का करें छिड़काव
कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामकेवल सिंह ने बताया कि इस बीमारी का सबसे अधिक प्रभाव मिनी या नाटी मंसूरी में अधिक होता है. यदि खेत के मेड़ पर केना जैसा घास का प्रकोप होता है, तो नाइट्रोजन का अधिक प्रयोग भी इसको फैलाने में सहायक होता है. इसके प्रबंधन के लिए खेत की मेड़ को साफ रखें. नाइट्रोजन का प्रयोग संतुलित मात्रा में करें. रासायनिक नियंत्रण के लिए फफूंदनाशी रसायन थाइफ्लूजामाइड 24% ईसी नामक रसायन (पल्सर) की 150 एमएल मात्रा को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या कासुगामाइसिन 6% एवं थाईफ्लूजामाइड 26% ईसी 150 एमएल मात्रा या प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी की 200 एमएल मात्रा या हेक्साकोनाजोल पांच ईसी की 400 एमएल मात्रा या एजोक्सीस्ट्रोबिन एवं डिफेनोकोनाजोल की 200 एमएल मात्रा प्रति एकड़ की दर से 150 से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें.
धान की पैदावार को 25 प्रतिशत तक हो सकता है नुकसान
कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामकेवल सिंह ने सलाह दी है कि बीमारी से बचाव के लिए खेत में लगातार पानी नहीं करनी चाहिए और किसानों को यदि गलका रोग के निवारण में किसी प्रकार की समस्या आ रही है तो वे तुरंत कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेने की सलाह देते हैं. बीमारी के उपचार और प्रबंधन के लिए सही सलाह और सावधानी के साथ कृषि कार्यों को समय पर करना किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उनकी फसलों की उपज पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा. धान की फसल में होने वाली गलका रोग के स्थितिगत अनुसंधान और उपचार के लिए स्थानीय कृषि विभाग के साथ सहयोग करना भी महत्वपूर्ण हो सकता है.
.
Tags: Bihar News, Buxar news, Latest hindi news, Local18
FIRST PUBLISHED : September 12, 2023, 22:03 IST