धान का कटोरा कहे जाने वाले कैमूर के अन्नदाता हैं परेशान, वैज्ञानिक ने दी सलाह

दिलीप चौबे/कैमूर: अच्छी बारिश होने से किसान लहलहाती धान की फसल देखकर खुश थे, लेकिन इधर धान में रोग लगने लगने लगा है. इसे देख कर किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी है. धान का कटोरा कहे जाने वाले किसान भी इन दिनों खासे परेशान चल रहे हैं.

कैमूर जिला भभुआ प्रखंड के किसान ज्याद परेशान है. इस प्रखंड में 8 हजार हेक्टेयर में किसानों ने धान की खेती है. लेकिन अब धान में बालियां निकलने के समय पौधों की पत्तियां लाल और पीली होने लगी है. कुछ किसान पौष्टिकता की कमी तो कुछ जरूरत के अनुसार बारिश नहीं होने या समय पर सिंचाई नहीं किया जाना कारण मान रहे हैं. किसानों को धान की फसल को बीमारी से बचाने से लिए जरूरी टिप्स के साथ दवा का छिड़काव करने का सुझाव दिया है.

धान की फसल में बीमारी लगने से किसान हैं परेशान

दुमदुम गांव के रहने वाले किसान सुग्रीव चौरसिया ने बताया कि कीड़े लग जाने और पानी की कमी के कारण धान के पौधे का रंग में परिवर्तन हो रहा. वहीं किसान पारस नाथ सिंह ने बताया कि धूप तेज होने से पौधो के जड़ सुख रहे हैं. उन्होंने बताया कि काफी मेहनत कर खेती किए हैं. खेती के लिए ट्रैक्टर से जुताई, बीज, रोपनी कराने में पैसे लगे. लेकिन धान में बीमारी लग जाने की वजह से लग रहा है कि जो पूंजी लगाए हैं वह भी लौट नहीं पाएगा.

धान के पौधे में रोग लगने से किसानों की परेशानी बढ़ गई है. किसान बाजार में उपलब्ध कीटनाशक दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इसका कोई असर नहीं हो रहा है. किसानों की समस्या को लेकर कृषि वैज्ञानिक अमित कुमार सिंह ने बीमारी से निजात पाने के लिए किसानों को आवश्यक सुझाव दिया है. उन्होंने बताया कि अगस्त महीने में वर्षा बहुत कम होने और सितंबर माह में अपेक्षा से अधिक बारिश के चलते पौधों की वृद्धि व विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि धान की फसल को खैरा रोग से बचाने के लिए जिंक सल्फेट और बुझा हुआ चुना का का घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. किसान ढाई किलो जिंक सल्फेट और पांच किलो बुझा हुआ चुना को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव कर सकते है. यह धान की फसल को बीमारी से बचाने के लिए कारगर साबित होगा.

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