दो भाईयों का कमाल! सिर पर टोकरी रख बेचते थे पौधे, आज हैं पांच नर्सरी के मालिक

कुंदन कुमार/गया. कभी सिर पर टोकरी रखकर गली मोहल्ले में घूम-घूम कर पौधे बेचा करते थे. लेकिन आज 5 नर्सरी के मालिक हैं. जी हां यह कहानी बिहार के गया जिले के रहने वाले ओमप्रकाश की है. गया शहर के एपी कॉलोनी के रहने वाले ओमप्रकाश के पिताजी ने साल 1996 में घर की छत पर पौधे लगाकर नर्सरी की शुरुआत की थी. उन दिनों पौधों की उतनी डिमांड नहीं थी. जिस कारण उनके पुत्र सिर पर टोकरी रखकर घूम-घूम कर बेचा करते थे. लेकिन समय बदला और अब वह पांच नर्सरी के मालिक बन चुके हैं. पहले जहां से पौधे मंगाकर बिक्री करते थे आज वही इनके पौधों के खूब डिमांड है.

ओम प्रकाश और उनके भाई 2001 से इस व्यवसाय को संभाला और उन दिनों घूम कर बेचते थे. पौधे बेचने के लिए बनारस तक चले जाते थे. अधिक बिक्री होने पर कोलकाता से पौधा मंगवाया करते थे. लेकिन दोनों भाइयों ने सोचा कि क्यों ना खुद से पौधे को उगाया जाए. उसके बाद इन्होंने छोटे स्तर पर नर्सरी की शुरुआत की. फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरे करने के बाद 2015 से ओमप्रकाश ने नर्सरी के व्यवसाय को बड़े स्तर पर कर दिया. आज गया जिले में लगभग 8 बीघा में नर्सरी तैयार करते हैं. नर्सरी की तकनीक सीखने के लिए ओमप्रकाश देश के विभिन्न राज्यों में गए.

आज गया में हैं पांच ब्रांच
नर्सरी की तकनीक सीखने के बाद उन्होंने विभिन्न वैरायटी के फूल और पौधे लगाना शुरू कर दिया. आज गया में इनके पांच ब्रांच है. जिसमें एक मानपुर प्रखंड के एस एस कॉलोनी, बोधगया प्रखंड के बगदाहा गांव, केंदुई गांव में दो ब्रांच जबकि नरकटिया गांव में एक ब्रांच मौजूद है. इतना ही नहीं आज ओमप्रकाश ने 18 से 20 लोगों को रोजगार दे रखा है. जिसमें 6 से 8 रेगुलर मजदूर हैं. इनके पौधों की डिमांड बिहार के लगभग सभी जिलों के अलावे प्रयागराज, इलाहाबाद, देवघर, वाराणसी, कोलकाता जैसे बड़े शहरों में होती है. नर्सरी के व्यवसाय से ओमप्रकाश को सालाना 7 से 8 लाख रुपये की बचत हो जाती है.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई बाद सीखा काम
लोकल 18 से बात करते हुए ओमप्रकाश बताते हैं कि इंजीनियरिंग के पढ़ाई के बाद इसके तकनीक सीखने के लिए पुणे और बेंगलुरु गया और उसके बाद बड़े स्तर पर इसे शुरू कर दिया. पौधों की इतनी डिमांड है कि लोगों की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहे हैं. पिताजी माली का काम करते थे और कटिंग करके उस दौरान पौधों को छत पर लगाते थे. हम दोनों भाई घूम-घूम कर पौधे बेचते थे. फिर बाहर से पौधे मंगवाते थे, तो उसमें फायदा नहीं होता था. उसके बाद हम लोगों ने इसे खुद से तैयार करने की सोची.

जानिए क्या है खासियत
इनके नर्सरी के व्यवसाय में सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्होंने कहीं भी अपना बोर्ड या बैनर नहीं लगाया है. उनके नाम से ही लोग पौधे के खरीदारी करते हैं. इन पर लोगों का इतना विश्वास है कि पैसा भेजने के बाद यह फ्रेश पौधे डिलीवर कर देते हैं. इनके नर्सरी में मुख्य रूप से डच वैरायटी का गुलाब का फूल, जरवेरा, गुलदाउदी, ऑरनामेंटल में फाइकस, पाॅम और 63 वेरायटी के हिबिस्कस के पौधे उपलब्ध है.

Tags: Agriculture, Bihar News, Gaya news, Local18

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