अस्सी क्षेत्र के भागवत विद्यालय के समिप सैन करते भगवान विष्णु
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भगवान विष्णु गुरुवार को देवउठनी एकादशी पर योगनिद्रा से जग जाएंगे। काशी में विराजमान उनके स्वरूपों का मोहक शृंगार होगा। अस्सी के भगवान विष्णु के योगनिद्रा की मुद्रा वाली मूर्ति, बिंदू माधव का शेष शैय्या, भगवान बृहस्पति का पंचमुखी में विशेष शृंगार पूजन होगा। भक्त दर्शन पूजन करेंगे और उनके सुख-समृद्धि की कामना करेंगे। वहीं, 147 दिनों के बाद मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे।
काशी में है पंच माधव के पहले स्वरूप हैं बिंदु माधव
काशी में पंच माधव के पहले स्वरूप बिंदु माधव का मंदिर पंचगंगा घाट पर है। यहां एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु के विविध रूपों में शृंगार होगा। मंदिर के प्रधान अर्चक आचार्य मुरलीधर गणेश पट्टवर्धन ने बताया कि एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं तो उनका शेष शैय्या पर लक्ष्मी जी के साथ बैठने की मुद्रा में शृंगार होगा। द्वादशी को पालकी पर उनको विराजमान कराया जाएगा। इसी दिन तुलसी विवाह होगा। त्रयोदशी को झूला, चतुर्दशी को हरि और हर रूप में शृंगार होगा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन हाथी पर शृंगार के साथ अन्नकूट भोग लगेगा। उन्होंने बताया कि 500 साल पुराने इस मंदिर में भगवान शालीग्राम विहार मुद्रा में विराजमान हैं। पंचमाधव के दूसरे स्वरूप वेणि माधव प्रयागराज में है। जबकि सेतु माधव रामेश्वर, कुंती माधव आंध्रप्रदेश और श्रीसुंदर माधव तमिलनाडु में हैं।
शयन मुद्रा में होगा दर्शन, खीर का लगेगा भोग
काशी में भगवान विष्णु शयन मुद्रा में भी विराजमान हैं। इस मुद्रा में मंदिर अस्सी (भागवत मंदिर के पास) में है। देवोत्थनी एकादशी पर दर्शन पूजन और तुलसी-शालीग्राम विवाह के लिए भीड़ होती है। मंदिर के प्रधान पुजारी सत्येंद्र मिश्रा ने बताया कि प्रभु के चार माह जगने के उत्सव को मनाया जाता है। शृंगार होता है और दीप जलाए जाते हैं। उनको फलाहारी खीर का विशेष भोग लगता है। बताया, इस मंदिर में रामानुचार्य ने गंगा स्नान के बाद दर्शन किए थे।