दूसरा ‘सेतु पाण्डुलिपि पुरस्कार’ राजू शर्मा को, ‘मतिभ्रम’ के लिए मिलेगा सम्मान

इस वर्ष का ‘सेतु पाण्डुलिपि पुरस्कार’ सुपरिचित कथाकार राजू शर्मा की पाण्डुलिपि ‘मतिभ्रम’ को प्रदान किया जाएगा. यह निर्णय वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया की अध्यक्षता में गठित चयन समिति ने लिया है. चयन समिति के अन्य सदस्यों में प्रख्यात कवि मदन कश्यप, प्रख्यात कथाकार अखिलेश और सेतु प्रकाशन की प्रबंधक अमिता पांडेय शामिल थीं. निर्णायक मंडल ने पुरस्कार के लिए आईं 115 पाण्डुलिपियों में से ‘मतिभ्रम’ का चयन सर्वसम्मति से किया. निर्णायक मंडल ने पुरस्कृत पाण्डुलिपि के साथ ही एक और पाण्डुलिपि ‘भारत से कैसे गया बुद्ध धर्म’ की संस्तुति की है, जिसके लेखक हैं चन्द्रभूषण. पुरस्कार के लिए चयनित पाण्डुलिपि के रचनाकार को 50,000 रुपये की नकद राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा.

‘मतिभ्रम’ पाण्डुलिपि के बारे में निर्णायक मंडल की अध्यक्ष ममता कालिया ने कहा कि फॉर्मूला लेखन के विपरीत “मतिभ्रम” एक मजबूत उपन्यास है, क्योंकि लेखक ने बड़ी निर्भीकता और बेबाकी से ऐसे विषय को उठाया जिस पर लिखने के अपने खतरे हैं. नौकरशाही के स्याह-सफेद पक्षों को पारदर्शी तरीके से हमारे सामने रखता यह उपन्यास दरअसल आज का एक सशक्त दस्तावेज है.

कथाकार और संपादक अखिलेश ने ‘मतिभ्रम’ के बारे में कहा कि यह अनोखी रचना है. आज के समय की जो गहमा-गहमी है, जो पॉवर स्ट्रैक्चर है, उसका एक विखण्डन, ‘मतिभ्रम’ में बहुत ही तीखे तरीके से प्रस्तुत किया गया है. उपन्यास में एक रचनात्मक धैर्य है और कथानक का शिल्प भी अन्त तक हमें बांधे रखता है.

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वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने राजू शर्मा को एक गम्भीर लेखक बताते हुए पुरस्कृत पाण्डुलिपि के बारे में कहा कि आज के सामाजिक हलचलों को गहराई से व्यक्त करता है.

अमिता पांडेय ने ‘मतिभ्रम’ को एक बहुस्तरीय और बहुआयामी रचना बताया. उन्होंने कहा कि गहरी राजनीतिक चेतना, प्रतिबद्धता और नैरेशन के तार्किक परिणति से यह उपन्यास बना है.

राजू शर्मा
समकालीन कहानीकारों में राजू शर्मा चर्चित लेखक हैं. वे एक ऐसे रचनाकार हैं जो प्रचलित परिपाटियों, मुहावरों, आशयों और सुविधाओं से वीतराग दूरी बनाते हुए अभिव्यक्ति के बेपहचाने बीहड़ रास्ते तलाश करते हैं.

राजू शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे हैं. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के उपरांत लोक प्रशासन में पी-एचडी की डिग्री हासिल की. सेवा निवृत्ती के बाद राजू शर्मा स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं. लेखन के अलावा वे रंगकर्म, फिल्म, फिल्म स्क्रिप्ट लेखन में विशेष रुचि रखते हैं.

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हलफनामे, विसर्जन, पीर नवाज़, कत्ल गैर इरादतन (उपन्यास); शब्दों का खाकरोब, समय के शरणार्थी, नहर में बहती लाशें (कहानी संग्रह); भुवनपति, मध्यमवर्ग का आत्मनिवेदन या गुब्बारों की रूहानी उड़ान, जंगलवश (नाटक) आदि उनकी चर्चित रचनाएं हैं. राजू शर्मा को ‘विजय वर्मा कथा सम्मान’ और ‘मुक्तिबोध सम्मान’ से भी सम्मानित किया जा चुका है.

नीलाक्षी सिंह को पहला ‘सेतु पाण्डुलिपि पुरस्कार’
प्रथम ‘सेतु पाण्डुलिपि पुरस्कार’ प्रसिद्ध लेखिका नीलाक्षी सिंह को प्रदान किया गया था. नीलाक्षी सिंह को यह पुरस्कार उनकी कृति ‘हुकूम देश का इक्का खोटा’ की पाण्डुलिपि के लिए दिया गया.

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