दीपावली पर इस विधि से करें मां लक्ष्मी की पूजा, इन मंत्रों के जाप से मिलेगा फल

दुर्गेश सिंह राजपूत/नर्मदापुरम. इस दीपावली पर माता लक्ष्मी जी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होनी चाहिए. ज्योतिषाचार्य पं अविनाश मिश्रा ने बताया कि इसमें माता लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएं विशेष प्रिय हैं. उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं. हमें इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए. वस्त्र में माता का प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र होता है. माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है. फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं. सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें.

इसके अलावा अनाज में चावल और मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है. प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है. अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए.

 इस प्रकार करें तैयारी
पं अविनाश मिस्र के अनुसार, चौकी पर माँ लक्ष्मी व गणेशजी की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे. लक्ष्मीजी को गणेशजी की दाहिनी ओर रखें. पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें. कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों ( अक्षत ) पर रखें. नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे और इसे कलश पर रखें. यह कलश वरुण का प्रतीक माना जाता है. इसके बाद दो बड़े दीपक रखें. एक में घी भरें व दूसरे में तेल भरे. एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में रखें. इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें. मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं. कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं.

गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं. इन्हें सोलह मातृका की प्रतीक माना गया हैं. नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं. इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी. सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें. छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश को रखें. थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें. ग्यारह दीपक, खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक रखें.इन थालियों के सामने यजमान बैठे. आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें. कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठें.

पूजा की विधि जानें
आप सबसे पहले पवित्रीकरण करें. आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल लें और अब उसे सामने रखी मूर्तियों के ऊपर छिड़कें. इसके साथ में मंत्र का जाप करें. अब इसी मंत्र एवं जल को छिड़ककर आप अपने आपको और पूजा की सामग्री को एवं अपने आसन को भी पवित्र कर लें.

1. पवित्रीकरण/ ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दःकूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥अब जिस स्थान पर आपने आसन बिछाया है. उस जगह को पवित्र करें एवं मां पृथ्वी को प्रणाम करके ये मंत्र बोलें
2. ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

फिर आचमन करेंगे. पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए एवं बोले(ॐ केशवाय नम:) इसके बाद फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए एवं बोले(ॐ नारायणाय नमः) इसके बाद फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए एवं बोले(ॐ वासुदेवाय नमः)अब इसके बाद( ॐ हृषिकेशाय नमः ) कहते हुए हाथों को खोलें एवं अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लीजिए. फिर पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें. आचमन करने से विद्या आत्मा तत्व एवं बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है. आचमन के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए एवं तीन बार लंबी सांस लीजिए. मतलब प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह जरूरी है, फिर पूजा के पसुरुआत में स्वस्तिवाचन किया जाता है. उसके लिए हाथ में पुष्प, चावल (अक्षत) एवं थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम करें. इसके बाद पूजा का संकल्प लिया जाता है. संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है.

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ऐसे लें संकल्प
सबसे पहले आप हाथ में अक्षत (चावल) लें, पुष्प और जल ले लीजिए. कुछ द्रव्य ले लें इस का अर्थ है कुछ धन पैसे. यह सभी हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प लीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं. जिससे हमें शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों. सबसे पहले गणेशजी एवं माता गौरी का पूजन करें. फिर उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करना है. अब हाथ में थोड़ा सा जल ले लें एवं आह्वान व पूजन मंत्र बोलें एवं पूजान सामग्री चढ़ाइए. इसके बाद फिर नवग्रहों का पूजन करें. हाथ में अक्षत और पुष्प ले एवं नवग्रह स्तोत्र बोलिए. इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन करें. हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लें और सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए.

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