दीपक पाण्डेय/खरगोन. दीपावली पर्व के दौरान रूप चौदस के दिन आपने हर जगह महिलाओं को सजते और संवरते देखा ही होगा, लेकिन एक ऐसी जगह है जहां दिवाली के बाद पड़वा के दिन सारे पशु श्रृंगार करते है और पूरे गांव के भ्रमण पर निकलते है. इस दिन पशु कोई काम नहीं करते है. उनकी पूजा करते है.नए पकवान खिलाते है. दरअसल, यह अनोखी परंपरा मध्य प्रदेश के निमाड़ अंचल सहित खरगोन जिले में निभाई जाती है. इसके पीछे की वजह भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है, क्यूंकि श्रीकृष्ण को पशुओं से काफी लगाव था.
इस दिन वह प्रत्येक व्यक्ति जिसके घर गाय, बैल, बकरी या अन्य कोई भी पशु है, उन्हें खास तरह के आभूषण पहना कर श्रृंगार करते है. बाजारों में दुकानों पर यह आभूषण अलग-अलग डिजाइन में उपलब्ध है. दुकानदार हरचरण सिंह मुच्छाल बताते है कि पशुओं की श्रृंगार सामग्री में मुख्यताः तीन आभूषण विशेष कर शामिल रहते है, जिन्हें हर पशुपालक अपने पशुओं के लिए खरीदता है.
ऐसे करते है पशुओं का श्रृंगार
इन आभूषणों में पहला है मछवंडी, जो अलग-अलग रंगों में हाथों से बुना हुआ होकर धुंगरू लगे हुए रहता है. इसे पशु के सिर पर बांधा जाता है. दूसरा होता है कांडा घुंघरू – यह भी विभिन्न डिजाइनों में घंटियां लगे होते है. इसे पशु के गले में हार की तहत पहनाया जाता है. वहीं तीसरा होता है मोरकी, इसे भी हाथो से बनाया जाता है. जालीनुमा यह मोरकी पशु के मुंह पर बंधी जाती है. इसके अलावा उनके सींगो को रंगते है. शरीर पर रंगो से डिजाइन बनाते है.
परंपरा का यह है धार्मिक महत्व
वहीं ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश मोयदे ने कहा कि पड़वा के दिन पशुओं का श्रृंगार और घरों के बाहर गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है. निमाड़ अंचल में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह परंपरा भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी हुई है. बाल्य अवस्था में श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठाएं रखा था और इसके नीचे पूरा गांव बारिश से बचने के लिए सहारा लिए हुए था. तभी से दिवाली के बाद गोवर्धन की पूजा की जाने लगी. श्रीकृष्ण को पशुओं से लगाव होने और पुराने जमाने में पशुओं को धन स्वरूप मानने से इस दिन किसी भी पशु से काम नहीं करवाया जाता, बल्कि उनका श्रृंगार किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : November 13, 2023, 18:27 IST