दिवाली के दूसरे दिन क्यों करते हैं गोवर्धन पूजा? जानें इसके पीछे की पूरी कहानी

भरत तिवारी/जबलपुर. दिवाली खुशियों का त्यौहार माना जाता है. हम सब बहुत ही धूमधाम से अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी इसे मनाते हैं, इसी खुशियों के त्योहार के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. आखिर में सवाल यह उठता है कि दीपावली के एक दिन बाद ही क्यों गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है.

गोवर्धन पूजा के पीछे की कहानी
माना जाता है कि वृंदावन में ब्रज में जब माता यशोदा इंद्रदेव की पूजा की तैयारी कर रही थी तब भगवान श्री कृष्ण ने उनसे एक सवाल किया था जिसमें उन्होंने पूछा था कि भगवान इंद्र की पूजा क्यों की जाती है तब माता यशोदा ने उन्हें बताया था कि हम इंद्रदेव की पूजा इसलिए करते हैं ताकि इंद्रदेव वर्षा करें और ब्रज में फसल अच्छी हो. यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने माता यशोदा को कहा कि आप इंद्रदेव की पूजा करने की जगह गिरिराज पर्वत की पूजा कीजिए. गिरिराज पर्वत पर स्थित औषधीय हमें बीमारियों से दूर रखती हैं वहां पर लगे वृक्षों के फल हमारी भूख शांत करते हैं. वह कई वर्षों से हमारी रक्षा करते आ रहे हैं, इसलिए भगवान इंद्र देव की पूजा अर्चना की जगह हमें गिरिराज पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वर्षा के लिए हमें इंद्रदेव की अर्चना की जरूरत नहीं है. यह इंद्रदेव का कार्य है जो उन्हें करना होगा.

7 दिनों तक श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली में थामा था गिरिराज पर्वत
भगवान श्री कृष्ण की बात मानकर बृजवासियों ने गिरिराज पर्वत की पूजा अर्चना करना शुरू कर दिया, जिसे देखकर इंद्रदेव क्रोधित हुए और उन्होंने वृंदावन पर मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी, इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर बृजवासियों की रक्षा हेतु गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और लगातार 7 दिन तक इंद्रदेव के प्रकोप से बृजवासियों की रक्षा करने श्री कृष्णा गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली रखें तब से आज तक हर साल दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है.

श्री कृष्ण को चढ़ाया जाता है 56 भोग
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने एक दिन में आठ बार भोजन ग्रहण करते थे और इंद्रदेव के प्रकोप से बृजवासियों की रक्षा करने के दौरान श्री कृष्ण ने 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत को बिना कुछ खाए पिए पकड़े खड़े रहे, इसके बाद इंद्रदेव को यह एहसास हो गया कि श्री कृष्णा कोई और नहीं स्वयं नारायण के अवतार हैं. जिसके बाद उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी और श्री कृष्णा ने गोवर्धन पर्वत को वापस उनके स्थान पर रख दिया. इस चमत्कारिक घटना के बाद जब दिनचर्या वापस आम हुई तो बृजवासियों ने यह माना कि श्री कृष्ण ने 7 दिन से बिना कुछ खाए पिए उनकी रक्षा की है तो प्रेम और स्नेह में उन्होंने श्री कृष्ण को छप्पन भोग बनाकर खिलाएं, तब से लेकर आज तक जन्माष्टमी के अवसर पर श्री कृष्ण को छप्पन भोग बनाकर खिलाया जाता है.

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