रिपोर्ट-आकाश कुमार
जमशेदपुर. भारत की संस्कृति में मेहमान को भगवान का रूप माना जाता है. मेहमानों के स्वागत में खान-पान से लेकर उनके सत्कार की तमाम कहानियां आपने सुनी होंगी. आजकल जहां मेहमानों के स्वागत में लोग ऑनलाइन खाना मंगाकर काम चला लेते हैं, पुराने दिनों में यह प्रचलन नहीं था. एक घर का मेहमान, पड़ोसियों के लिए भी अपना सरीखा ही माना जाता था. जमशेदपुर में रहने वाली 60 साल की सुचिता देवी बताती हैं कि पुराने जमाने में मेहमानों के स्वागत-सत्कार के लिए घर के अलावा पूरे मोहल्ले के लोग जुट आते थे.
लोकल 18 से बातचीत में सुचिता देवी ने बताया कि 50-60 साल पहले किसी के भी घर में मेहमान आते थे, तो अगल-बगल के लोग या मोहल्ले वाले मेहमान का स्वागत करने में लग जाते थे. किसी के घर से कोई सब्जी बनकर आ रही है, तो कोई मीट-मछली का प्रबंध कर रहा है या फिर किसी घर से मिठाई लाई जा रही है. सुचिता बताती हैं कि दामाद के आने से ज्यादा खुशी होती थी, क्योंकि ऐसे मेहमान कभी-कभार ही घर आते थे.
दामाद जो कहे, बनेगा वही पकवान
सुचिता देवी के मुताबिक दामाद के घर आते ही सबसे पहले उनका पैर धुलवाया जाता था. शुरुआती आवभगत के बाद दामाद के मुंह से जो भी फरमाइश आए, वह पकवान बनाया जाता था. दामाद के खाने की थाली स्पेशल हो, इसके लिए पूरा घर और आसपास के पड़ोसी जुटे रहते थे. खाने की थाली में तरह-तरह के पकवान, स्पेशल सब्जी, मीट-मछली के अलावा विशिष्ट तरह की मिठाइयां जरूर रखी जाती थीं. सुचिता देवी कहती हैं कि इन सबके अलावा तिलकोर के पत्ते (स्थानीय वनस्पति) की पकौड़ी थाली में रहे, इसके लिए हरसंभव प्रयास करते थे, क्योंकि इस एक आइटम के न रहने से दामाद की थाली पूरी नहीं मानी जाती.
लोटा लेकर खड़ा रहता था लड़की का भाई
सुचिता देवी ने एक मजेदार बात यह भी बताई कि लड़के की शादी से पहले उसके घरवाले यह देखते थे कि लड़की का भाई है या नहीं. क्योंकि यह पुराना रिवाज था कि लड़का जिस घर में दामाद बनकर जाएगा, वहां उसकी आवभगत के लिए साला या साली, यानी लड़की के भाई-बहन होने चाहिए. यही नहीं, दामाद जब टॉयलेट जाता था, उसके साथ साला पानी से भरा लोटा लेकर चलता था. दामाद अगर पान का शौकीन है, तो लड़की के भाई की ही ड्यूटी होती थी कि वह पीकदान का प्रबंध करे.
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FIRST PUBLISHED : February 21, 2024, 18:38 IST