दशहरे पर यहां धूमधाम से होती है रावण की पूजा, नहीं होता दहन, जानें मान्यता

विकाश पाण्डेय/सतना: आज विजयदशमी का पावन पर्व है इस दिन को देशभर में बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता. आज रावण के पुतले का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर विजयदशमी मनाई जाती हैं. लेकिन देश के कई हिस्सों में रावण का दहन नहीं बल्कि पूजा की जाती है सतना के कोठी कस्बे में विधिविधान से ढोल नगाड़ों के साथ रावण का पूजन किया जाता हैं. लंकेश की जय-जय कार की जाती है. यहां के लोगों का मानना है कि रावण महान ज्ञानी थे उनकी एक भूल की वजह से उनको सारी अक्षाइयों को भुलाया नहीं जा सकता इसी लिए हम उन्हे अपना वशांज मानते हैं और उनका पूजन करते हैं.

पुजारी रमेश मिश्रा ने कहा कि यह प्रतिमा वर्षों पुरानी है. 15 वर्ष पहले जब नए थाना भवन का निर्माण होना था तब उन्हें रात में स्वप्न आया कि कोई प्रतिमा तोड़ रहा है. सुबह वे पहुंचे तो जेसीबी लगी थी. जेसीबी ऑपरेटर ने रावण की प्रतिमा पर प्रहार किया तो वहां एक सांप निकल आया. ऑपरेटर काम छोड़ कर हट गया, मजदूरों में भी भगदड़ मच गई. बाद में थाना भवन का निर्माण स्थल परिवर्तित किया गया.

यहां के लोग रावण को मानते है रिश्तेदार
रावण का पूजन करने वाले रमेश मिश्रा ने कहा कि रावण महाविद्वान थे. तीन लोक के स्वामी रावण संपूर्ण विधाओं में पारंगत थे. उन्होंने वैदिक पूजा सहित भगवान भोलेनाथ की स्तुति में कई कृतियां लिखीं वह ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनों को अपनी साधना से प्रसन्न किया, वह भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. महान पंडित थे इसीलिए हम उन्हे अपना रिश्तेदार मानते हैं उनकी एक बुराई की वजह से हम उनके अंदर की लाखों, करोड़ों अक्षाइयों, ज्ञान, तप, को भूला नहीं सकते.पुजारी रमेश मिश्रा ने कहा कि भगवान ब्रह्मा ने 4 वेद और 6 पुराणों के बखान के लिए लंकेश को चुना क्यों कि इस धरती, आकाश, पाताल, सभी में कोई विद्वान था तो वह महापंडित रावण थे.

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