भारत और इजराइल को एक दूसरे का दर्द का साथी कहा जाता है। जब भारत को जरुरत थी तब निस्वार्थ होकर इजराइल ने भारत की मदद की और जब-जब इजराइल को जरुरत हुई तो भारत हमेशा इजराइल के साथ खड़ा रहा। इस समय इजराइल और हमास के बीच संघर्ष चल रहा है। ऐसे में जब हमास ने इजराइल पर रॉकेट हमला किया तो भारत ने बिना किसी संकोच के इजराइल का सपोर्ट किया। हमास और इजराइल के युद्ध के दौरान हमने दुनिया को दो विचारों में बटे हुए देखा है। जहां कुछ लोगों मे इजराइल का सपोर्ट किया वहीं कुछ लोगों ने गाजा पट्टी पर किए गये हमले के को लेकर इजराइल का विरोध किया। गाजा में नरसंहार की कई तस्वीरें सामने आयी जो विचलित कर देने वाली थी। मानव हत्या और मानव अधिकारों का भारत ने भी हमेशा समर्थन किया है। ऐसे में इजराइल द्वारा की गयी गाजा पर कार्यवाही की बड़े स्तप पर अलोचना हो रही थी। इजराइल पर अंकुश और दबाव बनाने के लिए कुछ संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव भी लाए गये। ऐसे में यूएन का सदस्य होने के कारण भारत के स्टैंड पर कई देशों की नजरें रही।
यूएनजीए में इजराइल के खिलाफ खड़ा हुआ भारत
भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में एक मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है जिसमें इजरायल के सीरियाई गोलान से पीछे नहीं हटने पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। सीरियाई गोलान दक्षिण पश्चिम सीरिया का एक क्षेत्र है जिस पर 5 जून 1967 को इज़रायली सेना ने कब्ज़ा कर लिया था। 193 सदस्यीय यूएनजीए ने 28 नवंबर को एजेंडा आइटम ‘मध्य पूर्व में स्थिति’ के तहत मसौदा प्रस्ताव ‘द सीरियाई गोलान’ पर मतदान किया।
इजराइल के खिलाफ क्यों खड़ा हुई भारत
भारत ने सीरियाई गोलन से इजराइल के वापस नहीं हटने को लेकर गहरी चिंता जताने वाले ,संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में पेश एक मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है। सीरियाई गोलन दक्षिण पश्चिम सीरिया में एक क्षेत्र है जिस पर पांच जून, 1967 को इजराइली सुरक्षा बलों ने कब्जा कर लिया था। ‘पश्चिम एशिया में स्थिति’ विषय पर आधारित एजेंडा के तहत ‘सीरियाई गोलन’ नामक प्रस्ताव पर मंगलवार को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान हुआ। मिस्र ने प्रस्ताव पेश किया जिसके पक्ष में 91 वोट पड़े और आठ ने इसके विरुद्ध मतदान किया जबकि 62 सदस्य गैर हाजिर रहे।
प्रस्ताव के पक्ष में भारत के अलावा इन देशों ने भी किया प्रस्ताव का समर्थन
भारत के अलावा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने वालों में बांग्लादेश, भूटान, चीन, मलेशिया, मालदीव, नेपाल, रूस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात शामिल थे। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इजराइल, ब्रिटेन और अमेरिका ने मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। प्रस्ताव में इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है कि प्रासंगिक सुरक्षा परिषद और महासभा के प्रस्तावों के विपरीत इजराइल सीरियाई गोलन से पीछे नहीं हटा है, जो 1967 से उसके कब्जे में है। प्रस्ताव में घोषित किया गया कि इजराइल सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 497 (1981) का पालन करने में विफल रहा है। साथ ही इसमें कहा गया कि ‘‘कब्जे वाले सीरियाई गोलन हाइट्स में अपने कानून, अधिकार क्षेत्र और प्रशासन को लागू करने का इजराइल का निर्णय अमान्य और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रभाव के बिना है।’’ मंगलवार के प्रस्ताव में 14 दिसंबर, 1981 के इजराइली फैसले को भी अमान्य घोषित कर दिया गया और कहा गया कि इसकी कोई वैधता नहीं है। इसने इजराइल से अपना निर्णय रद्द करने का आह्वान किया। प्रस्ताव में 1967 से कब्जे वाले सीरियाई गोलन में इजराइली बस्ती निर्माण और अन्य गतिविधियों की अवैधता पर भी जोर दिया गया।