‘तू हां भरे तो तुझे चूम लूं’- हरियाणवी छोरा-छोरी की अनूठी प्रेम कथा

Arun Gemini Hasya Kavita: अरुण जैमिनी देश के बेहद चर्चित हास्य कवि, व्यंग्यकार, लेखक और टीवी पर्सनालिटी हैं. हास्य-व्यंग्य विधा में विशिष्ठ कार्य के लिए उन्हें ‘काका हाथरसी सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा हरियाणा गौरव सम्मान भी प्रदान किया गया है. अरुण जैमिनी का पालन-पोषण कविता के वातावरण में हुआ था, इसलिए उन्होंने भी बहुत जल्द ही कविताएं लिखना और कहना शुरू कर दिया था. ‘फिलहाल इतना ही है’, ‘खून बोलता है’ और ‘हास्य व्यंग्य की शिखर कविताएं’ उनकी चर्चित कृतिया हैं.

चूंकि अरुण जैमिनी का ताल्लुक हरियाणा से है, इसलिए उन्होंने अपनी अधिकांश रचनाओं का आधार हरियाणी पृष्ठभूमि ही रखा है. उनकी कविता, व्यंग्य और चुटिले किस्सों के पात्र हरियाणा से ही रहे हैं. हरियाणा की हर अदा निराली होती है. वहां ही प्रेम कहानी भी अपने अनूठे रंग-ढंग के लिए पहचानी जाती हैं. अरुण जैमिनी ने हरियाणी छोरा-छोरियों के प्रेम के कई किस्से तमाम मंचों पर सुनाए हैं. एक ऐसा ही किस्सा आप यहां भी पढ़ें-

एक लड़की
पंत की कविताओं-सी कोमल कुंतल बिखराती
पद्माकर के छंदों-सी इतराती
बिहारी के दोहों-सी कटिली छबिली
रसखान के सवैयों-सी रसीली
जायसी की पद्मावत का प्रेम ज्ञान पीये
प्रसाद की कामयानी का सौन्दर्य बोध लिये
चेहरे पर दिनकर की कविताओं सा तेज
विद्यापति की राधा को अपने में सहेज
रोडवेज की बस में चढ़ी
अचानक ब्रेक लगी
और एक लड़के की गोद में जा पड़ी
लड़के को आया इतना स्वाद
कि जोर से चिल्लाया..
ड्राइवर साब धन्यवाद!

लड़की बोली फालतू मत चिल्लाओ
उधर को सरको
अजीब बेवकूफ है
तेरे ऊपर गिरी मैं
और धन्यवाद ड्राइवर को

प्रेम के इतिहास में यहां से शुरू हुई एक नई खुराफात
ये थी हमारे हीरो-हीरोइन की पहली मुलाकात
दोनों के दिन थे खेलने-खाने के
और ऊपर से दोनों हरियाणे के

दोनों के नैन मिले
कमल के दो फूल से खिले
नैन मिलते ही मुंह खुले
और बातचीत का सिलसिला निकल पड़ा
बस तो डिपो में खड़ी हो गई
और उनका प्रेम चल पड़ा

नए-नए अनुराग में
और जवानी की आग में
एक दिन दोनों बैठे थे
गांव से दूर एक बाग में

लड़का बोला-
ये जो तेरी झोड़-सी गहरी-गहरी आंख्ये हैं ना
जी करै, इनमें डूब जाऊं
पर मैं के करूं
मैंने ते बापू से पहले ही कही थी
मुझे तैरना मत सिखाओ
तैरना तो एक बला सै
तेरी आंख देखके पता चला
कि डूबना भी एक कला सै

मावस की रात जैसे तेरे गाल
पूर्णमासी की चांदनी बिखरते तेरे बाल

लड़की बोली-
अरे क्यूं आकास में पांव धरिया सै
बाल की जगह गाल और
गाल की जगह बाल करिया सै

लड़का बोला- कै करिया
तेरी सुंदरता देख कै इतना फूल गया
कि उपमाओं का क्रम ही भूल गया

खैर,
हुक्के की चिलम में धरे जलते अंगारे से होंठ
बोले तो विस्फोट
ना बोले तो कलेजा में चोट

लड़की बोली-
इन बातों में तो कोई भी खो सके सै
इतना मीठा मत बोल
मेरे सुगर भी हो सके सै

और कवियों के प्रेमी-प्रेमिका
बैठते होंगे सागर किनारे रेत में
हमारे तो हरियाणा के थे
इसलिए बैठे थे गन्ने के खेत में

प्रेमी बोला-
आज तो जी करे कै मैं भी थोड़ा-सा झूम लूं
तू हां भरे तो तुझे चूम लूं

उसने यही सवाल पूछा आठ-दस बार
पर बेकार
प्रेमी गुस्से में बोला-
भैरी है के
प्रेमिका बोली-
तूम मेरे ऊपर गुस्सा क्यों उतार रिया सै
मैं तो भैरी क्यो ना पर तेरे कै लकुवा मार रिया सै

खेत में जब उनके विचार हो गए रंगीले से
तो उन्होंने अपने आप को रोका

बोले- कल यहां नहीं मिलेंगे, अब मिलेंगे टीले पे

अगले दिन लाठी खड़खड़ाता हुआ
प्रेमी आया लंगड़ाता हुआ
प्रेमिका देखकर मुस्कुराई
बोली-आज तो बहुत लहरारिया सै
मने लगे मां से हमारे ब्याह की बात करके आ रिया सै
प्रेमी बोला- हां,
मने मां से बात करी थी
पर के करूं मां ने बापू से बात कर ली
और बापू ने दो-चार पहलवानों से बात कर ली
और उन्होंने मेरी हालत ये कर दी
कि मां ने मेरी हाथ में ये लाठी धर दी
मने लगे कि ये गुल तेरे घर में भी खिलेंगे

प्रेमिका बोली-
फिर तो टीला भी छोड़
अगली बार अस्पताल में ही मिलेंगे
क्योंकि मेरा भाई भी तेरे से बात करेगा

प्रेम कथा और परवान चढ़ी
कुछ इस तरह से आगे बढ़ी
प्लास्टर चढ़े थे पांव पे, पट्टी ललाट पे
दोनों पड़े थे अस्पताल की टूटी खाट पे

आगे के दृश्य घनघोर प्रेम से भरपूर रहे थे
एक-एक आंख पे पट्टी बंधी थी
फिर भी एक-दूसरे को घूर रहे थे

तभी आ धमके दोनों के मा-बाप और रिश्तेदार
बोले- मानोगे नहीं
अभी भी कर रहे हो आंखें चार

प्रेमी बोला- किस ख्याल में गुम हो
चार कहां, अब तो रह गई हैं दो

लड़के की मां बोली-
ये तो ना मानें
तुम्हीं मान जाओ
ये तो पता नहीं क्या कर जाएंगे
जो अब भी बाज नहीं आ रहे
इन्हें दूर मत करो ये बालक मर जाएंगे

लड़की के रिश्तेदार बोले-
ये क्लेश फाटफट निपटाओ
खत्म करें इनका राग
बाहर चौकीदार ताप रिया सै आग
इन दोनों के वहीं फेरे करवाओ
हम अपनी छोरी उठा रहे
तुम अपना छोरा उठाओ

उनके फेरे कैसे पड़े, आंखों देखा हाल बतता हूं
ध्यान से सुनो कहानी उस रोज की
दोनों के मामाओं ने पकड़ रखी थी बोतल ग्लुकोज की
औरतें शनिचर के दिन मंगल गीत गाने के लिए हो गईं इकट्ठी
गठजोड़ की जगह आपस में बांधी दोनों की पट्टी
चौकीदार दूर खड़ा ठंडे से कांपता हुआ बड़बड़ा रहा था
एक रिश्तेदार बड़बड़ाहट के बीच-बीच में स्वाह बोलता जा रहा था
दुल्हा-दुल्हन भी बिल्कुल नहीं शर्माये
दोनों एक-एक टांग से फेरे ले रहे थे
इसलिए सात की जगह चौदह चक्कर लगाए
इस तरह दोनों को जिंदगी भर की जेल हो गई
और ये प्रेम कहानी भी
अन्य प्रेम कहानियों की तरह फेल हो गई।

Tags: Government of Haryana, Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poet

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