तलाक के लिए राजी होकर मुकरी पत्‍नी, दिल्‍ली हाई कोर्ट ने यूं सिखाया सबक!

नई दिल्‍ली. दिल्ली हाई कोर्ट ने एक पारिवारिक अदालत की ओर से पति को दिए गए तलाक को बरकरार रखते हुए कहा है कि असफल विवाह में आपसी सहमति के बावजूद तलाक के लिए राजी न होना या ऐसी सहमति को एकतरफा वापस लेना एक दूसरे पक्ष के प्रति क्रूरता है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ उस पत्नी की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने समझौते के बावजूद तलाक के लिए अपनी सहमति वापस ले ली थी.

मौजूदा मामले में, दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमत हुए थे और उनके बीच एक समझौता हुआ था, जिसके अनुसार पति द्वारा पत्नी को पांच लाख रुपये का एक डिमांड ड्राफ्ट (डीडी) दिया गया था, लेकिन आंशिक भुगतान के बाद, पत्नी ने तलाक संबंधी सहमति एकतरफा वापस ले ली और रकम वापस कर दिए.

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दोनों के बीच अहंकार की लड़ाई
न्यायमूर्ति कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने अपने हाल के आदेश में कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि पक्षकारों के बीच की लड़ाई किसी उचित आधार पर नहीं थी, बल्कि यह अहंकार के कारण थी, जो जीवनसाथी के खिलाफ प्रतिशोध लेने की इच्छा से प्रेरित थी. इस प्रकार, ऐसी (तलाक की) सहमति को एकतरफा वापस लेना क्रूरता के समान है.’’

तलाक के लिए राजी होकर मुकरी पत्‍नी, समझौते की रकम भी लौटाई, हाई कोर्ट ने यूं सिखाया सबक!

2003 में हुई शादी 13 महीने भी नहीं टिकी
अदालत ने कहा, ‘‘असफल विवाह में आपसी सहमति के बावजूद तलाक देने से इनकार करना क्रूरता के अलावा और कुछ नहीं है.’’ दोनों की शादी 2001 में हुई थी, लेकिन यह मुश्किल से लगभग 13 महीने ही चल पाई, क्योंकि जनवरी 2003 में वे अलग हो गए और बाद में पति ने क्रूरता के कारण तलाक के लिए अर्जी दायर की. पत्नी ने सभी आरोपों से इनकार किया है. अदालत ने पारिवारिक अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा, ‘‘हमें मौजूदा अपील में कोई दम नजर नहीं आता और इसे खारिज किया जाता है.’’

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