2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश किया जाएगा. चुनावी साल है तो लोगों को काफी उम्मीदें भी होंगी. आपने बीते वर्षों में बजट पेश होने के बाद नेताओं को यह कहते सुना होगा कि यह जनता का बजट है. दरअसल, वे कहना चाह रहे होते हैं कि इसमें आम लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश की गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले इस तरह आम लोगों के लिए बजट नहीं आता था. संसदीय लोकतंत्र की इस व्यवस्था में सरकार का हिसाब-किताब तो होता था लेकिन लोग इसे सिर्फ टैक्स लगने वाली प्रक्रिया के तौर पर याद करते थे. ये कहानी है टैक्स वाले बजट के ‘आम बजट’ (India Budget 2024) में तब्दील होने की.
बजट है तो क्या होगा?
तब तक लोग यह मानकर चलते थे कि बजट पेश हो गया तो हमें क्या? इसमें आम लोगों के लिए होता ही क्या है? बजट में तो सब बड़े लोगों के लिए चीजें होती है. यह वो दौर था जब भारत में बरतानिया हुकूमत राज कर रही थी और उनके देश में बजट पर घमासान मच गया.
अमीरों पर लगा टैक्स और…
वक्त था 1900 से 1910 के बीच का. ब्रिटेन में कंजर्वेटिव, लिबरल पार्टी के बाद आंदोलनों से निकलकर लेबर पार्टी आ चुकी थी. ट्रेड यूनियन आंदोलन और महिला अधिकारों की चर्चा शुरू हो गई थी. 1905 में एचएच एस्क्विथ (Herbert Henry Asquith) वित्त मंत्री थे. उन्होंने बजट रखा तो प्रभावशाली अमीरों पर नया टैक्स लगा दिया. ब्रिटेन के उच्च सदन यानी हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य नाराज हो गए.
वृद्धावस्था पेंशन आई
1908 में ब्रिटिश पीएम के इस्तीफा देने के बाद एस्क्विथ पीएम बने और डेविड लॉयड जॉर्ज उनके वित्त मंत्री. दोनों नेता मीडियम क्लास परिवार से आए थे. डेविड का मानना था कि ब्रिटेन के गरीबों के हित में कोई आर्थिक कानून नहीं हैं. उन्होंने देश के उन लोगों की फिक्र की जो 60+ थे और अब काम करके अपने खर्चे नहीं निकाल सकते थे. उन्हें सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिलती थी. इससे पहले जर्मनी में बुजुर्गों की पेंशन वाला प्रयोग शुरू हो चुका था.
1909 में डेविड बजट लेकर आए और ओल्ड एज पेंशन यानी वृद्धावस्था पेंशन का प्रस्ताव रख दिया. इसके तहत 70 साल से ऊपर के बुजुर्गों को हर हफ्ते पांच शिलिंग पेंशन का प्रावधान था. शिलिंग से भ्रमित मत होइए. वास्तव में 1971 से पहले तक ब्रिटिश मुद्रा पाउंड, शिलिंग और पेंस में बंटी हुई थी.
पहला पीपुल्स बजट
ब्रिटेन के लिए यह नियम क्रांतिकारी था. डेविड (लिबरल गर्वनमेंट) ने इनकम टैक्स का सिस्टम भी बदला. उन्होंने 5 हजार पाउंड सालाना से ज्यादा कमाने वालों पर एक सुपर टैक्स लगा दिया. 3,000 पाउंड से ज्यादा कमाने वालों पर भी टैक्स लगा. विरासत पर लगने वाला टैक्स भी बढ़ गया. उन्होंने नियम बनाया जिससे अमीरों की संपत्तियों और बिक्री से होने वाली आय पर भारी-भरकम टैक्स लगाया गया. इतिहास में डेविड के बजट को ही पहला ‘जनता का बजट’ बना दिया. उसे पीपुल्स बजट कहा गया. हालांकि ताकतवर लोग प्रभावित हुए तो देश की राजनीति में खलबली मच गई.
उच्च सदन में बिल लटका
विंस्टन चर्चिल ने डेविड के बजट का समर्थन किया और इसका खूब प्रचार हुआ. वे आम लोगों को ज्यादा सुविधाएं देने के पक्षधर थे. हालांकि यह बजट उच्च सदन में पास नहीं हो पाया क्योंकि वहां विरोधी कंजर्वेटिव पार्टी के पास नंबर था. वित्त मंत्री हाउस ऑफ लॉर्ड्स पर भड़क गए. उनकी तरफ से प्रचारित किया गया कि उच्च सदस्य देश के बुजुर्ग गरीबों से नफरत करते हैं. हालांकि बात नहीं बनी और एस्क्विथ की सरकार गिर गई.
1910 में एस्क्विथ की सरकार फिर आई. वह पूरी तैयारी से आए थे. आते ही उन्होंने हाउस ऑफ लॉर्ड्स के अधिकार सीमित करने वाला बिल सामने रखा. इसमें कहा गया कि अगर निचले सदन ने किसी कानून को तीन बार पारित कर दिया तो उच्च सदन इसे रोक नहीं सकता. बवाल फिर शुरू हो गया. नए राजा बने जॉर्ज पंचम. पीपुल्स बजट पर विवाद नहीं थमा. यह सरकार टैक्स में बढ़ोतरी और पेंशन सुधारों को वापस नहीं ले रही थी. उसी साल दिसंबर में फिर चुनाव कराने पड़े. हालांकि संसद में नंबर बदला नहीं. एस्क्विथ ने इस बार न केवल ऊपरी सदन की ताकत सीमित करने का प्रस्ताव रखा बल्कि लेबर पार्टी की मदद से हाउस ऑफ लॉर्ड्स की संख्या बढ़ाने का प्रपोजल रखा. यहीं से गेम पलट गया.
पीएम एस्क्विथ का कानून 1911 में पारित हो गया. बजट को लेकर उच्च सदन के अधिकार सीमित हो गए. इस तरह तमाम मुश्किलों का सामना करने के बाद दुनिया में पहला आम बजट सामने आया. आगे चलकर सरकारों को पैसेवाले धनाढ्य लोगों पर कर लगाने का रास्ता मिल गया. (Photo- lexica AI)