डीमैट खातों की संख्या का तेजी से बढ़ना अर्थव्यवस्था के प्रति बढ़ते विश्वास का परिचायक है

शेयर बाजार में जिस तेजी से नए डीमेट खाते खुल रहे हैं वह स्पष्ट रूप से लोगों के विश्वास का ही परिणाम है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास को आम जन के वित्तीय निवेश को लेकर देखा जा सकता है। देश के शेयर बाजार में लगातार इस मायने में बूम देखा जा रहा है कि चालू कैलेण्डर वर्ष के हर महीने लाखों नए डीमेट खाते खुल रहे हैं। इसी कैलेण्डर वर्ष की बात की जाए तो जनवरी से अब तक दो करोड़ से अधिक नए डीमेट खाते खुले हैं। अकेले सितंबर माह में करीब 30 लाख 60 हजार नए डीमेट खाते अस्तित्व में आये हैं वहीं इससे पहले अगस्त में इस साल के सर्वाधिक 31 लाख नए खाते खुले हैं। इसी तरह से गए महीने 10 आइपीओ बाजार में आए हैं और इनमें निवेशकों ने दिल खोलकर पैसा लगाया है। इन 14 आईपीओ के माध्यम से कंपनियों ने 11868 करोड़ रुपए जुटाये हैं। यदि देखा जाए तो दिसंबर 2010 के बाद सबसे अधिक आईपीओ बाजार में आये हैं। समग्र रूप से देखा जाए तो इस साल जनवरी से सितंबर तक 34 आइपीओ के माध्यम से कंपनियों ने निवेशकों से 26913 करोड़ रुपए जुटाए हैं। सभी आइपीओ ओवर सब्सक्राइब रहे हैं। यह सब तो तब है जब आज दुनिया के देश आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। पर यह साफ हो जाता है कि शेयर बाजार में लगातार नए खाते खुलना और आइपीओ को अच्छा समर्थन मिलना इस बात का संकेत है कि देश की अर्थव्यवस्था को लेकर लोगों में किसी तरह का नकारात्मक विचार नहीं है। बल्कि यह कहा जाना उचित होगा कि लोगों का देश की अर्थव्यवस्था व देश के आर्थिक हालातों के प्रति विश्वास कायम है।

दरअसल कोरोना के बाद जिस तरह के हालात हुए और देश दुनिया की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुईं उससे लोगों में अर्थव्यवस्था को लेकर अनेक आशंकाएं हुईं और इसमें भी कोई दो राय नहीं कि दुनिया के अधिकांश देश आर्थिक संकट के दौर से गुजरे और आज भी गुजर रहे हैं। इसके अलावा पिछले लंबे समय से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध से हालात और खराब हुए हैं। अब इजराइल और हमास के ताजा हमलों से नया संकट सामने आ गया है। इससे सबके साथ ही दुनिया के अधिकांश देशों में हालात अच्छे नहीं चल रहे हैं। चीन की नीतियों से दुनिया के देश त्रस्त हैं सो अलग। इसके अलावा आतंकवादी घटनाएं और जलवायु परिवर्तन के कारण आये दिन आने वाले तूफान, भूकंप आदि घटनाएं दुनिया के देशों में भय का वातावरण बना रही हैं। अनावृष्टि, अतिवृष्टि, मौसम की बेरूखी आदि को किसी भी हालात में ठीक नहीं माना जा सकता है।

इन सब हालातों के बीच देश की अर्थव्यवस्था के प्रति लोगों के रुख को दो दृष्टि से समझना होगा। एक और बैंकों में बचत की भावना में गिरावट दर्ज हो रही है। एक समय था जब हमारी परंपरा में बचत को खास महत्व दिया जाता था, आज हालात ठीक विपरीत हैं। बचत की तुलना में वित्तदायी संस्थाओं से कर्ज लेने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। दूसरी और शेयर बाजार जिसे हमेशा से अस्थिर समझा जाता रहा है और जो राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सर्वाधिक जोखिम भरा निवेश माना जाता रहा है, वहां देश का मध्यम वर्ग खासतौर से युवा पीढ़ी जोखिम भरे शेयर बाजार में बेहिचक निवेश करने को आगे आ रही है। हालांकि इसके पीछे शेयर बाजार में एक कारण आकर्षक रिटर्न को माना जा रहा है तो दूसरी और अन्य क्षेत्रों में अधिक अस्थिरता भी यहां आने का बड़ा कारण है। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि शेयर बाजार सबसे जोखिम भरा है। पर जिस तरह से प्रति माह नित नए डीमेट अकाउंट खोले जा रहे हैं और जिस तरह से आइपीओ को रेस्पांस मिल रहा है, उससे साफ हो जाता है कि आज की पीढ़ी लाख रिस्क होने के बावजूद जोखिम भरे रास्ते को चुन रही है। इससे यह तो माना जा सकता है कि निवेशकों खासतौर से मध्यम वर्ग को शेयर बाजार पर पूरा विश्वास जम रहा है।

हालांकि शेयर बाजार अंतरराष्ट्रीय हालातों से भी प्रभावित होता है। इसके साथ ही मिनट की मिनट की रिस्क भरा होता है फिर भी लोगों द्वारा इस पर विश्वास व्यक्त करना कहीं आने वाले समय में संकट का कारण नहीं बन जाए। सेबी, एनएसडीएल आदि संस्थाओं को इस पर लगातार पैनी नजर रखनी होगी। क्योंकि किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था को सबसे अधिक मध्यम वर्ग प्रभावित करता है और मध्यम वर्ग ही जोखिम में पड़ जाए तो हालात बिगड़ने में देर भी नहीं लगेगी। ऐसे में बाजार पर नजर रखने वाली संस्थाओं को अपनी मॉनिटरिंग व्यवस्था को और अधिक इफेक्टिव बनाना होगा ताकि हालात हाथ से बाहर ना हो सकें इसलिए जहां नए डीमेट खाते खुलना, शेयर बाजार में देशवासियों की हिस्सेदारी बढ़ना, निवेश बढ़ना अच्छी बात है वहीं कंपनियों की गतिविधियों और शेयर बाजार को प्रभावित करने वाली ताकतों व संस्थाओं व गतिविधियों पर पूरा ध्यान रखना होगा ताकि शेयर बाजार के निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखा जा सके।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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