डिस्काउंट पर कॉस्मेटिक की खरीद, कहीं सेहत के लिए खतरा तो नहीं मोल ले रहे?

हाइलाइट्स

कास्मेटिक हमारी सेहत पर असर डालने में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
वे सांस लेने, निगलने या चमड़ी के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं.
इनमें शामिल रसायनों से किडनी, लीवर, एंडोक्राइन सिस्टम, प्रजनन अंगों पर असर.

नई दिल्ली. क्या आपको याद है कि पिछली बार आपने मॉल में लिपस्टिक का वह सुंदर शेड चुनने से पहले उसमें पड़े सामानों की लिस्ट की जांच कब की थी? हो सकता है, आपने कभी ऐसा न किया हो. जब सौंदर्य प्रसाधनों की बात आती है, तो हम अक्सर हाई-लेवल ब्रांड खरीदने पर ध्यान देते हैं या नियमित रूप से ऑनलाइन प्रोडक्ट्स की एक बड़ी सीरिज को देखते हैं. ऐसा करने के हमारे कारण अलग-अलग हो सकते हैं. जिनमें जरूरत से लेकर सिफारिशें या आकर्षक सौदों और छूटों का लाभ लेना शामिल होता है. हालाकि खरीदते समय हम जो चीज सबसे ज्यादा भूल जाते हैं, वह है इन सौंदर्य प्रसाधनों की सामग्री सूची की जांच करना.

चाहे लिपस्टिक, नेल पॉलिश, बॉडी लोशन, परफ्यूम, शैम्पू  या कोई अन्य मेकअप उत्पाद हो, रोजमर्रा की जिंदगी में हम जो सौंदर्य प्रसाधन का इस्तेमाल करते हैं, वह हमारी सेहत पर असर डालने में महती भूमिका निभाते  हैं. वे सांस लेने, निगलने या चमड़ी के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. पिछले कुछ सालों में कई अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि इन उत्पादों में उपयोग किए जाने वाले कई रसायन किडनी, लीवर, एंडोक्राइन सिस्टम और प्रजनन अंगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.

नेल पेंट, लिपस्टिक होशियारी से चुनें
लिपस्टिक को अन्य सौंदर्य प्रसाधनों की तरह हम न केवल त्वचा के जरिये अवशोषित करते हैं, बल्कि जब हम अपने होंठ चाटते हैं या कुछ  खाते या पीते हैं तो भी काफी मात्रा में इसके शरीर के अंदर जाने की आशंका होती है. इसके बारे में सोचें. अगर आप दिन में कई बार लिपस्टिक लगाती हैं, तो इसका कितना हिस्सा आप ग्रहण कर रही हैं? यह एक्सपोजर मिलजुल कर बहुत असर कर सकता है. दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज एंड रिसर्च ने 2015 में एक अध्ययन किया था. इसके साथ और भी कई वैश्विक और भारतीय अध्ययनों से यह पता चला है कि टॉप लिपस्टिक ब्रांडों में सीसा सहित भारी धातुएं मौजूद होती हैं. इसके अलावा हमें ‘रेटिनिल पामिटेट’ युक्त लिपस्टिक की जांच करनी चाहिए और उनसे बचना चाहिए.

सस्ते नेल पेंट से बचें
यूएस एफडीए की ताजा उपलब्ध जानकारी में कहा गया है कि जब रेटिनिल पामिटेट को त्वचा पर लगाया जाता है, तो यह सूरज के संपर्क में आने पर ट्यूमर और घावों के बनने को तेज कर सकता है. इसी तरह सस्ते नेल पेंट में इस्तेमाल होने वाला ‘टोल्यूइन’ नामक सोल्वेंट सेंट्रल नर्वस सिस्टम, मस्तिष्क और तंत्रिकाओं को प्रभावित कर सकता है. इससे किडनी, लीवर और प्रजनन संबंधी विकार भी हो सकते हैं. नेल पॉलिश में इस्तेमाल किया जाने वाला एक अन्य रसायन, ‘डाइब्यूटिल फेलेट’ अंतःस्रावी विकार, श्वसन तंत्र के रोग और अन्य स्त्रीरोग संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है.

खरीदने से पहले करे पैराबेन फ्री प्रोडक्ट की जांच
कास्मेटिक खरीदने से पहले हमेशा जांच लें कि आप जो उत्पाद खरीद रहे हैं वह ‘पैराबेन-फ्री’ हैं या नहीं. मसलन उत्पादों में प्रोपाइलपैराबेन या ब्यूटाइलपैराबेन या एथिलपैराबेन या ‘पैराबेन’ से खत्म होने वाला ऐसा कोई नाम नहीं होना चाहिए. पैराबेन्स का उपयोग अन्य सौंदर्य प्रसाधनों के अलावा लोशन, सनस्क्रीन, एंटीपर्सपिरेंट्स और शैंपू में एक घटक के तौर पर किया जाता है. अब तो कई कंपनियों ने पैकेजिंग पर ही उल्लेख करना शुरू कर दिया है कि उत्पाद ‘पैराबेन-फ्री’ है.

किसी ब्रांड के यूज से पहले जांच जरूरी
फिर भी हमें किसी भी नए ब्रांड को आजमाने से पहले जांच करनी चाहिए. ये एस्ट्रोजन हार्मोन की नकल करने के लिए जाने जाते हैं. जिससे हार्मोनल असंतुलन हो जाता है. जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है. अध्ययनों से पता चला है कि वे स्तन में कोशिकाओं के कामकाज पर असर डालते हैं, जिससे असामान्य वृद्धि होती है और स्तन कैंसर की आशंका बन जाती है. 2021 में प्रकाशित एक व्यापक अध्ययन में यह भी पुष्टि की गई है कि ये थायरॉयड अंतःस्रावी स्तर में व्यवधान पैदा करते हैं.

फैलेट-फ्री उत्पाद
यह रसायनों का एक समूह है जिसका उपयोग प्लास्टिक को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए किया जाता है. सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल के वेल वूमेन सेंटर की निदेशक डॉ. फिरोजा आर पारिख का कहना है कि ‘फैलेट को ‘हर जगह रसायन’ के रूप में जाना जाता है. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मानव ऊतकों और शारीरिक तरल पदार्थों तक में मिल रहा है. इसे प्रजनन स्वास्थ्य के लिए सदी की प्लेग के रूप में बताया गया है.’ उन्होंने 2022 में प्रकाशित अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे संकेत मिले हैं कि त्वचीय अवशोषण (संभवतः पीसीपी के उपयोग के दौरान) के जरिये खून के प्रवाह में प्रवेश करने वाले फेलेट डायस्टर सीधे अंडाशय तक पहुंच सकते हैं.

युवा भारतीय महिलाओं की प्रजनन क्षमता में गिरावट
डॉ. पारिख एफ एंड एस साइंस में प्रकाशित अध्ययन के लेखकों में से एक हैं. डॉक्टर ने कहा कि इससे पता चल सकता है कि क्यों, हाल के सालों में युवा भारतीय महिलाओं में कम डिम्बग्रंथि रिजर्व, कम एंटी-मुलरियन हार्मोन मूल्यों और खराब प्रजनन क्षमता नजर आ रही हैं. डॉ. पारिख के मुताबिक सौंदर्य प्रसाधन और सुगंध देने निजी देखभाल उत्पादों (पीसीपी) में कम आणविक भार वाले थैलेट्स जैसे डिब्यूटाइल थैलेट (डीबीपी) और डायइथाइल थैलेट (डीईपी) मिलाए जाते हैं. डॉक्टर ने कहा कि जो महिलाएं अधिक पीसीपी जैसे परफ्यूम, डिओडोरेंट, नेल पॉलिश, साथ ही त्वचा और बालों की देखभाल करने वाले उत्पादों का उपयोग करती हैं, उन्हें डीबीपी और डीईपी के संपर्क में आने का अधिक खतरा होता है.

ट्रायक्लोसेन-मुक्त उत्पाद
ट्राइक्लोसन को साबुन, बॉडी वॉश, टूथपेस्ट और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों में मिलाया जाता है. लेकिन इससे हार्मोन में दिक्कते पैदा होने के सबूत मिले हैं. यूएस एफडीए के अनुसार कम वक्त के लिए पशु अध्ययनों से पता चला है कि ट्राईक्लोसेन की उच्च खुराक के संपर्क में आने से कुछ थायराइड हार्मोन के स्तर में कमी आती है. ट्राइक्लोसेन से सुरक्षा को लेकर ऐसे कई अध्ययन चल रहे हैं, एक अध्ययन जानवरों में ट्राइक्लोसेन के लंबे समय तक संपर्क में रहने के बाद त्वचा कैंसर विकसित होने की आशंका पर जांच कर रहा है. एफडीए वेबसाइट में कहा गया है कि ट्राइक्लोसन के पराबैंगनी (यूवी) किरणों के संपर्क में आने के बाद मानव त्वचा पर ट्राइक्लोसन के अन्य संभावित रसायनों में टूटने पर एक अध्ययन किया गया है. चूंकि ये अध्ययन अभी पूरे नहीं हुए हैं, इसलिए, सुरक्षा संबंधी निर्णय आने तक ऐसे उत्पादों के उपयोग से बचना बेहतर है.

तेज खुशबू वाले उत्पादों से बचें
सुगंधित सौंदर्य प्रसाधनों के अत्यधिक उपयोग से दूर रहें. भले ही आपको लगता हो कि अच्छी सुगंध आपको तरोताजा और ऊर्जावान महसूस कराती है. इत्र में कई रसायनों का मिश्रण होता है, जो बोतलों में अलग-अलग बेचे जाते हैं या सौंदर्य प्रसाधनों में जोड़े जाते हैं. इनसे हार्मोनल असंतुलन होने का खतरा बना रहता है, इन सामानों को ‘परफ्यूम’ के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है. ‘द गार्जियन’ के एक लेख के मुताबिक वर्तमान में उत्पादों को सुगंधित बनाने के लिए करीब 4,000 रसायनों का उपयोग किया जाता है, लेकिन आपको उनमें से कोई भी लेबल पर सूचीबद्ध नहीं मिलेगा. ऐसा कहा जाता है कि सुगंध फॉर्मूलेशन एक सीक्रेट रेसिपी की तरह होती है, जिसमें मसाले की जानकारी नहीं दी जाती है.

प्राकृतिक विकल्प चुनना बेहतर
अनगिनत सौंदर्य प्रसाधनों, निजी देखभाल और सफाई उत्पादों के लिए घटक सूची में इसके बजाय एक शब्द खुशबू दिखाई देता है. लेख में कहा गया है कि एक ही गंध में 50 से 300 तक अलग-अलग रसायन हो सकते हैं. डॉ. पारिख कहती हैं कि अब तक क्या आपको कभी एहसास हुआ है कि हर बार जब आप सौंदर्य प्रसाधन घर लाते हैं, तो आप पैकेट खोलने की इतनी जल्दी में होते हैं कि आप लेबल कभी नहीं पढ़ते हैं? उन सौंदर्य प्रसाधनों से बचें जिनमें ये सामग्रियां शामिल हैं या जिनमें सामग्रियों की सूची नहीं दी गई है या फिर बेहतर है कि प्राकृतिक विकल्प चुनें.

अब क्या करना है
जितनी कम सामग्री, उतना बेहतर उत्पाद. यह सीधी लेकिन अत्यधिक मूल्यवान सलाह कई त्वचा विशेषज्ञों ने दी है. चूंकि ये रसायन हैं, इसलिए जितना कम हमेशा उतना अच्छा होता है. दक्षिण दिल्ली की चर्चित त्वचा विशेषज्ञ डॉ. दीपाली भारद्वाज कहती हैं कि अगर किसी महिला को किसी उत्पाद के बाद एलर्जी की शिकायत होती है तो कम सामग्री होने से आसानी से पता लगा सकता है. डॉ. भारद्वाज एक एलर्जी-विरोधी विशेषज्ञ और लेजर सर्जन भी हैं. उन्होंने कहा कि लोगों को एक ही ब्रांड या किसी विशेष उत्पाद का बहुत लंबे समय तक उपयोग करने से बचना चाहिए.

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सुंदरता या डिस्काउंट के बजाए सेहत जरूरी
डॉ. दीपाली भारद्वाज ने कहा कि ‘जॉनसन एंड जॉनसन की नाकामी के बाद मैं आमतौर पर अपने ग्राहकों को हर तीन से चार महीने में उत्पाद बदलने की सलाह देती हूं.’ मसलन अगर आप अमुक ब्रांड का उपयोग कर रहे हैं, तो इसे कुछ महीनों तक उपयोग करें और फिर दूसरे से उसे बदल लें. फिर इसे दो से तीन महीने तक इस्तेमाल करें और आप फिर से अमुक पर वापस आ सकते हैं. किसी भी उत्पाद का लंबे समय तक उपयोग न करें. हम अक्सर त्वचा की देखभाल और सौंदर्य उत्पादों को खुद की परवाह, लाड़-प्यार और खुशी से जोड़ते हैं, लेकिन हम इस बात पर ध्यान ही नहीं देते हैं कि हमारे मेकअप बैग में जोखिम हो सकते हैं, जो संभावित रूप से हमारे जीवन को उलट-पलट सकते हैं. सुंदरता या डिस्काउंट के बजाए जरूरी है कि हम अपनी सेहत को काउंट करें.

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