डाकुओं की शरणस्थली रही चंबल: डॉल्फिन सफारी बनाने की कवायद, चंबल में पहुंच रहे पर्यटक

इटावाएक घंटा पहले

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डॉल्फिन सफारी बनाने की कवायद। - Dainik Bhaskar

डॉल्फिन सफारी बनाने की कवायद।

इटावा का चंबल सभी कुख्यात डाकुओं के आतंक का केंद्र रहा। लेकिन चंबल अब डॉल्फिन का आकर्षण का केंद्र बन रहा है। डॉल्फिन को देखने के लिए दूर दराज से पर्यटक पहुंचते है। राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में एक सैकड़ा के आसपास दुर्लभ प्रजाति की डॉल्फिन मौजूद है।

चंबल नदी के करीब 20 किलोमीटर क्षेत्र को डॉल्फिन सफारी बनाने की कवायद चल रही है। केंद्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद डॉल्फिन सफारी पर काम शुरू किया जायेगा। चिकली टावर, सहंसों और भरेह में सबसे अधिक डॉल्फिन पाई जाती है।

इटावा कभी कुख्यात डाकुओं के आतंक के साए में रही चंबल घाटी में डॉल्फिन सफारी का निर्माण किया जाएगा। यह डॉल्फिन सफारी राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के अधीन इटावा जिले के सहसों इलाके स्थित चंबल नदी में निर्मित की जाएगी।

सहसों क्षेत्र को डॉल्फिन सेंचुरी के लिए चयन

राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी की उप वन संरक्षक (वन्यजीव) आरुषि मिश्रा ने बताया कि राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन के संरक्षण के लिए डॉल्फिन अभयारण्‍य का एक प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इटावा स्थित राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के सहसों क्षेत्र को डॉल्फिन सेंचुरी के लिए चयन किया है। इसमें इटावा के सहसों का 20 किलोमीटर का दायरा चिह्नित किया है। इस स्थान पर 50 से 80 के करीब डॉल्फिन हैं। सैलानी यहां बैठकर डॉल्फिन को देख सकेंगे। ताजा गणना में राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के बाह और इटावा रेंज में 171 डॉल्फिन रिकॉर्ड की गई हैं। जबकि साल 2012 के सर्वे में उनकी संख्‍या महज 78 थी।

आरुषि मिश्रा ने बताया कि साल 1979 में घोषित राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य 635 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है। इसका विस्‍तार मध्य प्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश तक है। इसमें साल 2008 से घड़ियालों की प्राकृतिक हैचिंग हो रही है। परिणाम स्वरूप उनकी संख्‍या भी 2,176 पर पहुंच गई है।

20 किलोमीटर दायरे में बड़ी संख्या में डॉल्फिन
गौरतलब राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के प्रस्ताव को अगर वाकई में स्वीकार कर लिया गया तो चंबल सेंचुरी के लिए डॉल्फिन पर्यटन के लिहाज से यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। इटावा के चंबल सेंचुरी के सहसों के 20 किलोमीटर दायरे में बड़ी संख्या में डॉल्फिन पाई जाती है। चंबल सेंचुरी के अफसर की बात को सच मान जाए तो इस इलाके में डॉल्फिनों की संख्या में खासी तादात में इजाफा भी हो रहा है।

गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉल्फिन भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव है। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 5 अक्टूबर 2009 को डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। इसके बाद से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत हर वर्ष 5 अक्टूबर को गंगा डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है। 2012 में प्रदेश की नदियों में डॉल्फिन की हुई गणना में डॉल्फिन की संख्या 671 थी। जिसमें से 78 चंबल में थीं। इस समय राष्ट्रीय चंबल सेंचुअरी क्षेत्र के बाह रेंज में 24 और इटावा रेंज में 147 डॉल्फिन हैं।

यूपी के हिस्से में डाल्फिनों की मौजूदगी

पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉक्टर राजीव चौहान ने कहा कि सैकड़ों दुर्लभ जलचर का संरक्षण कर रही। चंबल नदी हालांकि तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश मे प्रवाहित हो रही है। लेकिन यूपी के हिस्से में डाल्फिनों की मौजूदगी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है।

उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश मे चंबल नदी का प्रवाह रेहा बरेंडा से शुरू होता है। लेकिन इटावा जिले मे इसकी शुरूआत पुरामुरैंग गांव से होते हुए प्रवाह पंचनदा तक रहता है। पंचनदा से पूर्व चंबल नदी यमुना नदी में विलय हो जाती है। जिसके बाद यमुना नदी कहलाती है। जिले में गढायता, बरौली, खेडा अजब सिंह, ज्ञानपुरा, कसौआ, बरेछा, कुंदौल, पर्थरा महुआसूडा और चिकनी टॉवर पर डाल्फिनों की मौजूदगी होती है। जहां पर उनको देखने के लिए बडी तादाद में स्थानीय और दूर-दराज से पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।

वन विभाग व डब्लूडब्लूएफ के सहयोग से करने का काम शुरू

डॉक्टर चौहान ने बताया कि इटावा जिले में डाल्फिन के संरक्षण के लिए डिभौली, कसौआ, सहसों, पचनदा और इटावा मे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। डाल्फिन की वास्तविक स्थिति का आकंलन करने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने वन विभाग और डब्लूडब्लूएफ के सहयोग से करने का काम शुरू करने की कवायद कर रखी है। चंबल नदी मे 2008 में डाल्फिन के मरने का मामला उस समय सामने आया था। जब बड़े पैमाने पर घड़ियालों की मौत हुई थी। उस समय दो डाल्फिनो की मौत ने चंबल सेंचुरी अफसरों को सकते में ला दिया था। उसके बाद डॉल्फिनो के मरने की खबरें आ जाती है। कहा जाता है कि चंबल नदी मे अवैध शिकार इस जलचर की मौत का बड़ा कारण है। लेकिन चंबल सेंचुरी के अफसर इन मौतों को स्वाभाविक बता करके शिकार से पल्ला झाड़ लेता रहा है।

पंचनदा को डाल्फिनों के लिये महत्वपूर्ण स्थल

डाल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया है। सरकार की ओर से उसे बचाने के दावे-दर-दावे हो रहे हैं। यूं उसके शिकार पर 1972 से ही पाबंदी है। तस्करों की निगाह उस पर बराबर लगी हुई है। डाल्फिन मानव के मित्र के रूप में जाना जाता है। उत्तर भारत की पांच प्रमुख नदियों यमुना, चंबल, सिंध, क्वारी व पहुज के संगम स्थल ‘पंचनदा’ डाल्फिन के लिये सबसे खास पर्यावास है। क्योंकि नदियों का संगम इनका मुख्य प्राकृतिक वास होता है। यहां पर एक साथ 16 से अधिक डाल्फिनों को एक समय में एक साथ पर्यावरण विशेषज्ञों ने देखा, तभी से देश के प्राणी वैज्ञानिक पंचनदा को डाल्फिनों के लिये महत्वपूर्ण स्थल मान रहे हैं। इस स्थान को पूर्णतया सुरक्षित रखने की मांग भी कर रहे हैं। लेकिन आज तक ऐसा हो नहीं सका।

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