नीरज कुमार/बेगूसराय : बिहार में खेती-किसानी को लोग घाटे का सौदा माना जाता है, क्योंकि किसानों को खेती के लिए सुविधा न के बराबर मिलती है. इसके बावजूद कई ऐसे किसान हैं जो विपरीत परिस्थिति में भी न सिर्फ खेती को नया आयाम देने का काम कर रहे हैं बल्कि भ्रम को भी दूर कर रहे हैं. आज बेगूसराय के एक ऐसे किसान की बात कर रहे हैं जो पहले ट्रक चलाने का काम करते थे, लेकिन अब किसान बनकर खुश हैं और अच्छी कमाई भी कर रहे हैं.
यह किसान बेगूसराय के सांख पंचायत के रहने वाले राजेश कुमार हैं जो पपीता की खेती कर पारंपरिक खेती करने वाले किसानों की अपेक्षा 10 गुना मुनाफा कमा रहे हैं. इन दिनों राजेश की पहचान बेगूसराय जिला में पपीता उत्पादन के क्षेत्र में प्रगतिशील किसान के रुप में हो रही है. हालांकि इस बात का जरूर मलाल है कि उन्हें बागवानी योजना का लाभ नहीं मिला.
पटना मंडी में मिला था पपीता की खेती का आईडिया
बेगूसराय सदर प्रखंड अंतर्गत सांख पंचायत के वार्ड संख्या-9 के रहने वाले राजेश कुमार ने बताया कि 5 साल पहले जब पटना मंदिर घूमने के लिए गए तो इस दौरान पपीता के बाजार में जाकर विक्रेताओं से बात की. यहां पपीता की खेती में अच्छी आमदनी का आईडिया दिया. इसके बाद गांव लौटकर आ गए और 60 हजार सालाना के हिसाब से दो बीघा खेत लीज पर लेकर पपीता की खेती शुरू की.
पिछले 5 वर्षों से पपीता की बागवानी कर रहे हैं. राजेश ने बताया कि सरकारी स्तर पर जहां पपीता का एक टिशू कल्चर मात्र 6 रुपए में मिलता है. वहीं बेगूसराय के बाजारों में 30 रुपए में खरीदना पड़ रहा है. दो बीघा के पपीता बागवानी में तकरीबन डेढ़ लाख रुपए के आस-पास सालाना खर्च आता है.
चार से पांच लाख तक की कर लेते हैं आमदनी
किसान राजेश कुमार ने बताया कि 1.50 लाख रुपए दो बीघा के पपीता की खेती करने में लागत आता है. वहीं अगर सरकारी सहायता मिलती तो महज 30 हजार हीं लागत आता. वहीं जब पपीता का उत्पादन होता है तो गुवाहाटी के कारोबारी को फोन पर सूचना देने के बाद वे आकर अच्छी कीमत देकर ले जाते हैं. राजेश ने बताया कि एक पेड़ में 40 से 45 किलो सालाना पपीते का उत्पादन हो जाता है. अपने कमाई के अनुभव को साझा करते हुए बताया 4 से 5 लाख तक की कमाई हो जाती है. अगर सरकारी सहायता प्राप्त होती तो 8 से 10 लाख कमाई होती.
जमीनी स्तर पर किसानों को नहीं मिल पा रहा मदद
राजेश बेगूसराय जिला में पपीता की खेती के क्षेत्र में अन्य किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. लेकिन जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते किसानों को लाभ नहीं मिल पता है. पपीता की खेती में मिल रहे 75 फीसदी सब्सिडी सरकारी फाइलों तक ही सीमित है. इसका उदाहरण राजेश की बागवानी से सामने आ गया. अब देखना यह हुआ कि जिला उद्यान पदाधिकारी और डीएम रोशन कुशवाहा ऐसे किसानों की मदद के लिए क्या कुछ कार्य योजना तैयार करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 29, 2023, 19:05 IST