मुंबई12 घंटे पहले
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मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से देश की टॉप-10 कंपनियों में से 4 का मार्केट कैप पिछले हफ्ते 2.18 लाख करोड़ रुपए बढ़ा है। इस दौरान सबसे ज्यादा कैपिटल जुटाने वाली कंपनी लाइफ इंश्योरेशन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (LIC) रही।
इसके मार्केट कैप में ₹86,146 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। पिछले हफ्ते कंपनी के शेयर में 6% की तेजी रही थी। इस दौरान शेयरों ने पहली बार 1,000 के आंकड़े को भी पार किया था। LIC के साथ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), टाटा कंस्ल्टेंसी सर्विसेज (TCS) और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड मार्केट के टॉप गेनर रही हैं।
टॉप 6 कंपनियों की वैल्यू ₹1.07 लाख करोड़ गिरी
जबकि, टॉप की 6 कंपनियों का कंबाइन मार्केट कैप करीब 1.07 लाख करोड़ रुपए गिरा है। इसमें ₹32,964 करोड़ गिरावट के साथ HDFC बैंक टॉप लूजर रही है। वहीं ITC ₹30,699 करोड़ की गिरावट के साथ दूसरी सबसे बड़ी लूजर रही है।
बीते हफ्ते सेंसेक्स में 490.14 अंक की गिरावट रही
शेयर बाजार में शुक्रवार (9 फरवरी) को बढ़त देखने को मिली थी। सेंसेक्स 167 अंक की बढ़त के साथ 71,595 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी में 64 अंक की बढ़त रही, ये 21,782 के स्तर पर बंद हुआ। सेंसेक्स के 30 शेयरों में से 16 में तेजी और 14 में गिरावट देखने को मिली है। बीते हफ्ते सेंसेक्स में 490.14 अंक या 0.67% की गिरावट रही थी।
मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है?
मार्केट कैप किसी भी कंपनी के टोटल आउटस्टैंडिंग शेयरों यानी वे सभी शेयर, जो फिलहाल उसके शेयरहोल्डर्स के पास हैं, की वैल्यू है। इसका कैलकुलेशन कंपनी के जारी शेयरों की टोटल नंबर को स्टॉक की प्राइस से गुणा करके किया जाता है। मार्केट कैप का इस्तेमाल कंपनियों के शेयरों को कैटेगराइज करने के लिए किया जाता है।
मार्केट कैप = (आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या) x (शेयरों की कीमत)
मार्केट कैप कैसे घटता-बढ़ता है?
मार्केट कैप के फॉर्मूले से साफ है कि कंपनी की जारी शेयरों की कुल संख्या को स्टॉक की कीमत से गुणा करके इसे निकाला जाता है। यानी अगर शेयर का भाव बढ़ेगा तो मार्केट कैप भी बढ़ेगा और शेयर का भाव घटेगा तो मार्केट कैप भी घटेगा।
मार्केट-कैप कैसे काम आता है?
किसी कंपनी के शेयर में मुनाफा मिलेगा या नहीं इसका अनुमान कई फैक्टर्स को देख कर लगाया जाता है। इनमें से एक फैक्टर मार्केट कैप भी होता है। निवेशक मार्केट कैप को देखकर पता लगा सकते हैं कि कंपनी कितनी बड़ी है। कंपनी का मार्केट कैप जितना ज्यादा होता है, उसमे निवेश करना उतना ही सुरक्षित माना जाता है। डिमांड और सप्लाई के अनुसार स्टॉक की कीमतें बढ़ती और घटती हैं। इसलिए मार्केट कैप उस कंपनी की पब्लिक पर्सीवड वैल्यू होती है।