झारखंड की पारंपरिक सोहराई और कोहबर आर्ट की यहां मिल रही ट्रेनिंग

 रूपांशु चौधरी/हजारीबाग. कहा जाता है चित्रकार अपनी कलाजन्म से लेकर आता है. लेकिन बदलते वक्त के साथ कई आर्ट स्कूलों में चित्रकला को निखारने का प्रशिक्षण दिया जाता है. वैसे तो आर्ट स्कूल में बहुत कम ही पारम्परिक क्षेत्रीय चित्रकला को सिखायी जाती है. लेकिन अगर आप झारखंड की क्षेत्रीय चित्रकला सोहराय और कोहबर पेंटिंग को सीखना चाहते हैं तो हजारीबाग स्थित संस्कृति आर्ट एंड कल्चर म्यूजियम एक बेहतरीन ऑप्शन हो सकता है.

संस्कृति आर्ट एंड कल्चर म्यूजियम में सोहराई और कोहबर कला की शिक्षिका अलका इमाम ने कहा कि यहां पर विगत 2 सालों से झारखंड की पारंपरिक चित्रकला सोहराय और कोहबर आर्ट को सिखाया जाता है. अभी तक संस्थान से लगभग 200 से अधिक लोग इस कला को पूर्ण रूप से सीख चुके है. इसमें छात्रों को सोहराई के 14 फोर्म्स, ढेरों स्टाइल, दीवाल में पेंटिग, फैब्रिक में पेंटिग, मिट्टी के दीवाल में पेंटिंग, नेचुरल और आर्टिफिशियल रंगों से पेंटिंग यदि सिखाया जाता है.अलका ने कहा कि है कि वैसे तो इस कोर्स की कोई अवधि नहीं है कोई छात्र इसे 6 महीने में ही सीख जातेहैं याफिर किसी छात्र इसमें 1 से 2 साल तक भी समय लग सकता है. क्लास छात्र अपनी पसंद से साप्ताहिक या रोजाना के लिए ज्वाइन कर सकता है. कोर्स में छात्र को एक बार 2000 रुपए के शुल्क देना होता है.

सोहराई में बना सकते है करियर
अलका का  बताती है कि वैसे तो सोहराय शिक्षा प्रणाली में नही होने के कारण इसमें सरकारी विभाग में नियुक्तियां नही आती है लेकिन छात्र इसे सीख कर होम डेकोर, वॉल पेंटिग, टेक्सटाइल इंडस्ट्री, सोहराई डिजाइनर की भूमिका में काम कर सकते है. कोर्स में रजिस्ट्रेशन करने के लिए छात्रों को हजारीबाग दिपुगढा स्तिथ संस्कृति आर्ट एंड कल्चर म्यूजियम गैलरी आना होगा.

क्या है सोहराई पेंटिग
सोहराई कला भारत की प्राचीनतम कला में से एक है. इसके 5 हज़ार साल से अधिक पुराने पेंटिग हजारीबाग के इस्को गुफा में अभी भी मौजुद है. यह आदिवासी लोगों पारंपरिक कला है जिसे वो अपने खुशी के मौके जैसे विवाह, बच्चे का जन्म, फसल की कटाई यदि पर घर के दीवालो में बनाया करते है. साल 2021 में इसे जीआई टैग भी मिल चुका है. यह पेंटिग मुख्यता: झारखंड के हजारीबाग, चतरा और रामगढ़ जिले के क्षेत्रों में बनाया जाता है. सोहराई कला को मुख्यता: महिलाएं तैयार करती है.

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