जिस शख्स ने जीवनभर की सारी कमाई कर दी दान, अब उसी पर शोध के लिए मांग रहे चंदा

अनुज गौतम / सागर. बुंदेलखंड समूचे भारत में ऐसी जगह है जहां भगवान ने अनेक क्रीड़ाये की हैं, राजा- महाराजाओं ने इतिहास रचे हैं, स्वतंत्रता सेनानियों ने गाथायें गढ़ी हैं और गौर बब्बा जैसे महापुरुष ने सागर विश्वविद्यालय की स्थापना करके भविष्य-निर्माण की राह प्रशस्त की है. डॉ हरीसिंह गौर ने 18 जुलाई सन 1946 में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना करके ना केवल बुंदेलखंड को वरन् संपूर्ण प्रदेश और देश को आत्मनिर्भरता की एक बड़ी आधार शिला सौगात के रूप में दी.

वही डॉ हरि सिंह गौर के निधन के 74 साल बाद विश्वविद्यालय में गौर पीठ की स्थापना की गई है. जिसमें डॉक्टर गौर के व्यक्तित्व पर उनके जीवन दर्शन को लेकर शोध किए जाएंगे, छात्रों को उनके बारे में पढ़ाया जाएगा, इसके लिए शहर वासियों से दान लिया जा रहा है. पिछले 1 साल में डॉक्टर गौर के लिए 50 लाख से अधिक का दान मिल चुका है.लगातार लोगों के द्वारा गोर बब्बा के लिए दान दिया जा रहा है जो भी दान मिल रहा है उसे डॉक्टर गौर का म्यूजियम बनाया जायेगा. इसमें डॉक्टर के बहूआयामी व्यक्तित्व को लिया जाएगा. शोध किए जाएंगे.

डॉ हरीसिंह गौर की दूरदर्शिता और देशभक्ति अतुलनीय
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता कहती है कि डॉ हरीसिंह गौर की दूरदर्शिता और देशभक्ति अतुलनीय है. भारत की आत्मनिर्भरता के बारे में उन्होंने आज़ादी के पहले से ही ठोस कदम उठाए. अपने ही देश में स्टाम्प पेपर मुद्रण की बात शुरुआत इसका एक बड़ा उदाहरण है. समगतिशील सामाजिक विकास के लिये उन्होंने अनेक कार्य एक साथ शुरू किए जैसे बालिकाओं की विवाह की उम्र में संशोधन, महिलाओं को वकालत के व्यवसाय में स्थान, सुप्रीम कोर्ट की आधारशिला, उच्च शिक्षा के लिए सागर विश्वविद्यालय की स्थापना, संविधान निर्माण में योगदान, विधि पर लेखन और सामाजिक समरसता के संदेश. डॉ हरीसिंह गौर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति, नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति के रूप शैक्षिक जगत को एक नयी दिशा और रचनात्मक गति दी.

शिक्षा ऋषि थे डॉक्टर साहब
गौर पीठ के समन्वयक प्रो दिवाकर सिंह राजपूत कहते हैं कि गौर बब्बा को दानवीर कर्ण कहें या महर्षि दधीचि, जिन्होंने अपने जीवन की सारी कमाई दान करके विश्वविद्यालय की स्थापना की. सरस्वती पुत्र के रूप में ज्ञान-विज्ञान के अनेक आयाम स्थापित किए. साहित्य, संस्कृति, विधि के अनेक ग्रंथों की रचना, श्रेष्ठ नागरिको के लिए व्यक्तित्वों को गढ़ना, लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दिशा देकर विष्णु की तरह पोषण की राह दिखाई.

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