जानिए मां काली क्यों पहनती हैं मुडों की माला, क्या है पूजन की खास विधि, ज्योतिषाचार्य से जानिए पूरा विधान

विनय अग्निहोत्री / भोपाल. देश भर में शारदीय नवरात्रि बड़े ही धूम धाम से मनाया जा रहा है. हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है और हर मां के रूप का अपना एक खास मतलब है. ऐसा ही कुछ मां के काली रूप का भी है जिसे सप्तमी के दिन पूजा जाता है. ज्यादातर लोगों को मां काली का नाम सुनते ही मां दुर्गा का एक भयानक और प्रचण्ड रूप दिखता है, मां काली मूंढों की माला पहनी हुई पर इसके पीछे की क्या कहानी है.

ज्योतिषाचार्य पंडित आनंद मिश्र लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि, श्रीमार्कण्डेय पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली माँ की उत्पत्ति जगत जननी माँ अम्बा के ललाट से हुई थी. दुर्गा के 9 रूपों में 7वां रूप हैं देवी कालरात्रि का इसलिए नवरात्र के 7वें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है. काली नरमुंड की माला पहनती हैं और हाथ में खप्पर और तलवार लेकर चलती हैं.

भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं काली मां
काली माता के हाथ में कटा हुआ सिर है, जिससे रक्त टपकता रहता है. भयंकर रूप होते हुए भी माता भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं. कालरात्रि माता को काली और शुभंकरी भी कहा जाता है. कालरात्रि माता के विषय में कहा जाता है कि यह दुष्टों के बाल पकड़कर खड्ग से उसका सिर काट देती हैं. रक्तबीज से युद्ध करते समय मां काली ने भी इसी प्रकार से रक्तबीज का वध किया था.

ऐसे महाकाली की हुई उत्पति
श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार शुम्भ निशुम्भ दैत्यों के आतंक का प्रकोप इस कदर बढ़ चुका था कि उन्होंने अपने बल, छल एवं महाबली असुरों द्वारा देवराज इन्द्र सहित अन्य समस्त देवतागणों को निष्कासित कर स्वयं उनके स्थान पर आकर उन्हें प्राणरक्षा हेतु भटकने के लिए छोड़ दिया. दैत्यों द्वारा आतंकित देवों को ध्यान आया कि महिषासुर के इन्द्रपुरी पर अधिकार कर लिया है, तब दुर्गा ने ही उनकी मदद की थी. तब वे सभी दुर्गा का आह्वान करने लगे. उनके इस प्रकार आह्वान से देवी प्रकट हुईं एवं शुम्भ- निशुम्भ के अति शक्तिशाली असुर चंड तथा मुंड दोनों का एक घमासान युद्ध में नाश कर दिया.

दुष्ट दैत्यों का प्रतीक माना है मुंडो की माला
चंड-मुंड के इस प्रकार मारे जाने एवं अपनी बहुत सारी सेना का संहार हो जाने पर दैत्यराज शुम्भ ने अत्यधिक क्रोधित होकर अपनी संपूर्ण सेना को युद्ध में जाने की आज्ञा दी. माता दुष्ट दैत्यों संघार करने आई थीं और एक-एक को मार कर वो अपने गले में माला की तरह पहन कर युद्ध में विचरण कर रही थीं. इन्हीं, दुष्ट दैत्यों का प्रतीक माना है मुंडो की माला.

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