जानना जरूरी है! बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी हासिल करना पैरंट का अधिकार

हाइलाइट्स

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत यदि कोई बच्चा खतरे में है तो जानकारी दी जानी चाहिए.
क्रिमिनल रिकॉर्ड की जानकारी निजी नहीं हो सकती है. अपराध की जानकारी समाज को होनी चाहिए.

भोपाल. अपने बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी सरकार से हासिल की जा सकती है. यह पैरंट का अधिकार है. मध्यप्रदेश सूचना आयोग में एक मामले की सुनवाई करते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने यह फैसला दिया.

आयोग के मुताबिक, राजस्थान के कोटा शहर के उमेश नागर ने अपने ससुराल वालों के क्रिमिनल रिकार्ड की जानकारी के लिए ग्वालियर एसपी कार्यालय में आरटीआई (RTI) लगाई थी. पर ग्वालियर पुलिस ने क्रिमिनल रिकार्ड की जानकारी को व्यक्तिगत जानकारी बताते हुए नागर को जानकारी देने से मना कर दिया. नागर ने सुनवाई के दौरान सूचना आयोग को बताया कि यह जानकारी उनके लिए बेहद जरूरी है क्योंकि उनकी बेटी की कस्टडी उनके ससुराल वालों के पास है. कोटा निवासी नागर की शादी ग्वालियर में हुई थी. शादी के बाद पारिवारिक मतभेद होने पर उनकी पत्नी अपनी बेटी को लेकर ग्वालियर में अपने परिवार वालों के साथ रहने लगी. तलाक और चाइल्ड कस्टडी के लिए भी मामला अदालत में चल रहा है.

जानना जरूरी है! बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी हासिल करना पैरंट का अधिकार

आयोग ने पूछा – क्राइम की जानकारी निजी?
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सुनवाई के दौरान ग्वालियर पुलिस से यह पूछा किसी व्यक्ति का क्रिमिनल रिकॉर्ड व्यक्तिगत जानकारी कैसे हो सकती है? सिंह ने स्पष्ट किया कि कोई भी अपराध समाज के विरुद्ध किया जाता है और समाज में रहने वाले व्यक्तियों को जानने का अधिकार है कि अपराध किनके द्वारा किया जा रहा है ताकि वह अपने आप को सजग और सुरक्षित रख पाए. पुलिस के जानकारी रोकने पर सवाल उठाते हुए सिंह ने कहा कि अगर अपराध को निजी जानकारी की श्रेणी में रखा जाए तो हर अपराधी अपराध करने के बाद यह रहेगा कि उसके द्वारा किया गया अपराध उसका निजी विषय है और इसकी जानकारी किसी को न दी जाए.
बच्चे से अलग रहे पिता को संविधान देता है यह अधिकार?
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में लिखा कि ये मामला डाइवोर्स प्रकरण के चलते चाइल्ड कस्टडी और बच्चों के वेलफेयर से जुड़ा हुआ विषय है. पिता को शक है कि उनके ससुराल पक्ष के सदस्यों का क्रिमिनल रिकॉर्ड है जो कि उनके बच्चे की सुरक्षा के एवं नैसर्गिक विकास के लिए उपयुक्त नहीं है. इस जानकारी को RTI में लेकर वे अपने बच्चे के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते हैं. सिंह ने कहा कि इस आरटीआई को लेकर सवाल ये उठना है कि अपने बच्चों से अलग रह रहे पिता को क्या बच्चे के गार्जियन के क्रिमिनल रिकॉर्ड को लेने का अधिकार है या नहीं?

 बच्चों की सुरक्षा की जानकारी है अहम
सिंह ने कहा कि भारतीय संविधान की व्यवस्था में बच्चों के प्रति दोनों ही पेरेंट्स की सामान जवाबदेही और जिम्मेदारी बनती है. वही इस देश का संविधान बच्चों की सुरक्षा एवं उनके नैसर्गिक विकास और उनके अधिकारों की गारंटी देता है. आरटीआई में मांगी जानकारी को पिता के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए राहुल सिंह ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के करीब ढाई सौ से अधिक विभिन्न कानून लागू है जो बच्चों की सुरक्षा और वेलफेयर के लिए बने हुए हैं.

बच्चा खतरे में है तो उसकी जानकारी को जानने का हक सबको
बच्चों के सुरक्षा से जुड़े मामलों की व्याख्या करते हुए सिंह ने बताया कि संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत परित सूचना का अधिकार कानून जीवन और स्वतंत्रता जैसे मूलभूत अधिकारों से भी सीधे तौर से जुड़ा हुआ है. सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुरूप अगर कोई बच्चा खतरे में है या उसकी स्वतंत्रता या जीवन को लेकर सवाल है तो इस देश का नागरिक बच्चों से जुड़ी हुई जानकारी को जानने का अधिकार रखता है ताकि संविधान के अनुरूप बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाए.

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