जादूई है यहां लगा इमली का पेड़, इसकी पत्तियां खाते ही बदल जाती है आवाज!

ग्वालियर. ग्वालियर के तानसेन मकबरा के पास लगा इमली का पेड़ संगीत प्रेंमियों के लिए गला सुरीला करने वाली किसी जड़ी बूटी से कम नही है. तानसेन इसी पेड़ के नीचे बैठकर संगीत का रियाज करते थे. वे यहीं ध्रुपद के राग सुनाते थे. कहते हैं कि तानसेन इसी इमली के पत्ते खाकर अपनी आवाज को सुरीला करते थे. बाद में कई गायकों ने इसी इमली के पत्ते खाए और संगीत की दुनिया में नाम कमाया. विख्यात गायक केएल सहगल और गजल गायक पंकज उदास सहित कई गायकों ने तानसेन मकबरे पर लगे इमली के पत्ते खाए हैं.

संगीत सम्राट तानसेन के मकबरे पर लगा ये इमली संगीत प्रेमियों के लिए बड़ी आस्था का विषय माना जाता है. माना जाता है कि इस इमली के पत्ते और छाल खाने से गला सुरीला होता है. यही वजह है कि पहले इस जगह बड़ा पेड़ था, उसकी पत्तियां तो क्या छाल और जड़ों को भी लोग अपने साथ ले गए. कई सौ साल पुराना पेड़ जब सूख कर खत्म हो गया तो यहां आने वाले संगीत प्रेमियों को निराशा होने लगी. लिहाजा इस स्थान पर इमली के पेड़ को फिर से जिंदा किया गया. इतिहास कार मानते है कि इस जगह तानसेन की रूह बसती है. दूर-दूर से संगीतप्रेमी यहां आते हैं और इमली के पत्तों को तानसेन का प्रसाद मानकर साथ ले जाते हैं.

क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहासकार हितेंद्र भदौरिया बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर लगे इमली के इस पेड़ में उनकी रूह बसती है. जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है. यही वजह है कि तानसेन की समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड़ की पत्तियां खाते हैं. संगीत प्रेमियों का मानना है कि लोगों की इस पेड़ को लेकर गहरी आस्था है. पुराना पेड़ कई सौ साल पुराना होने के बाद गिर गया था. अब नए पेड़ में पत्तियां आ गई हैं, तो संगीतप्रेमी यहां आकर पत्तियां ले जाने लगे हैं.

Tags: Gwalior news, Mp news

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