पटना. बिहार में जातीय गणना सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी होने के साथ ही सियासत ने अचानक करवट ली और अब सीएम नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव का कॉन्फिडेंस हाई हो गया है. आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा से दो-दो हाथ करने के लिए मानो ‘अचूक हथियार’ मिल गया हो. दरअसल, इसके पीछे बिहार की राजनीति की वो सच्चाई है जिसके चक्रजाल में प्रदेश के वासी दशकों से उलझे हुए हैं और राजनीति अक्सर इसे सुलझाने का दावा करते हुए जातीय कार्ड खेलती रही है. एक बार फिर वर्तमान जातीय जनगणना सर्वे रिपोर्ट में जिस प्रकार से जातिगत आंकड़े सामने लाए गए हैं इसकी पृष्ठभूमि पहले से तैयार की गई है और इसकी शुरुआत ‘ठाकुर का कुआं’ से होती है.
दरअसल, पिछले दिनों संसद में महिला बिल पर अपनी बात रखते हुए आरजेडी सांसद मनोज झा ने ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविता- ‘ठाकुर का कुंआ’ पढ़ी, जिस पर विवाद बढ़ता गया. ठाकुर बनाम ब्राह्मण की सियासी दीवार का निर्माण होने लगा, और इसी बीच नीतीश सरकार ने वह दांव चल दिया जो अगड़े बनाम अगड़े की राजनीति के बाद पिछड़ा वर्ग में आने वाली दबंग जातियों के लिए सत्ता का एक और सुनहरा अवसर लेकर आ जाए.
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की।
कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गाँव?
शहर?
देश?
राजनीति के जानकारों की दृष्टि में इस कविता ‘ठाकुर का कुआं’ (प्रतीक के तौर पर दबंग जातियां) के ‘पानी’ (प्रतीक के तौर पर पिछड़ी-दलित जातियां) में इतनी ‘आग’ ( वोटों के समीकरण) थी कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार सरीखे नेताओं ने इस अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया और कथित तौर पर आनन-फानन में इस ‘आग’ को हवा देने के उद्देश्य से ही जातीय गणना सर्वेक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक कर दिया.
इस समीकरण पर नजर डालिए
दरअसल, लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राजद के पास मुसलमानों और यादवों का एक बड़ा वोट बैंक है. जिसकी आबादी इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार मुसलमान 17.70 %+14.27% यादव की कुल आबादी 32 प्रतिशत हो जाती है. वहीं, नीतीश कुमार की जद-यू के पास लव-कुश समीकरण (कुर्मी 2.87%-4.21% कुशवाहा) है, जबकि बिहार में भाजपा के पास उच्च जातियों और बनिया (व्यापारी समुदाय) का मुख्य वोट बैंक है जो महज 16 प्रतिशत के आसपास बताई गई है.
ब्राह्मण की आग को राजपूत ने लहकाया
वोट बैंक की राजनीति मनोज झा (ब्राह्मण) की एक कविता से शुरू होकर आनंद मोहन (क्षत्रियों) से जुड़ गया. कहा तो यह भी जाता है कि सांकेतिक तौर पर इसकी रूपरेखा पहले से तैयार की गई थी, जिसमें लालू यादव द्वारा आनंद मोहन की अवहेलना (लालू ने आनंद मोहन से मिलने से इनकार कर दिया था) को हवा देकर और सवर्णों में ब्राह्मण और ठाकुरों का आमने-सामने होने से भाजपा के वोट बैंक को कमजोर करने की योजना बनाई गई. इसी जातिगत जनगणना के आधार पर पिछड़ों को सब्जबाग दिखाकर एक करने की कवायद शुरू हुई और 85-15 का नारा देकर जातीय गोलबंदी की कवायद शुरू कर दी गई.
![जातिगत गणना सर्वे रिपोर्ट: 'ठाकुर का कुआं' के 'पानी' से 'आग' कौन बुझा पाएगा? जातिगत गणना सर्वे रिपोर्ट: 'ठाकुर का कुआं' के 'पानी' से 'आग' कौन बुझा पाएगा?](https://images.news18.com/ibnkhabar/uploads/assests/images/placeholder.jpg?impolicy=website&width=560)
इन आंकड़ों पर भी गौर करिये
दरअसल, जातिगत गणना सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत, अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) 27 प्रतिशत है. आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की आबादी में अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत है. मुस्लिमों की आबादी 17.70 प्रतिशत है. वहीं, सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 प्रतिशत है. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में अगर 85-15 के नारे ने अपना कमाल दिखाया तो भाजपा नीत एनडीए के लिए कम से कम बिहार में तो लोकसभा चुनाव के लिहाज से मुश्किल हो सकती है.
समय रहते भाजपा भी चल चुकी है दांव
लेकिन, राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह इतना आसान भी नहीं है क्योंकि जिस टारगेट को साधने की कवायद में लालू-नीतीश लगे हैं, उसकी रहनुमाई करने का दावा तो अब के दौर की भाजपा भी करती है. पीएम नरेंद्र मोदी को पिछड़ा चेहरा बताते हुए प्रदेश में सम्राट चौधरी (कुशवाहा) को नेतृत्व की कमान सौंप देना भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा है. ऐसे ही चिराग पासवान, पशुपति कुमार पारस, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी सरीखे नेताओं को अपने पाले में रखकर पहले से ही इसकी काट ढूंढ रखी है.
‘ठाकुर का कुआं’ किसकी प्यास बुझाएगा?
राजनीति के जानकारों की नजर में इसके साथ ही रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट के तौर पर भाजपा ने भी ‘अचूक हथियार’ तैयार कर रखा है जो यह बताएगा कि लालू यादव और नीतीश कुमार सरीखे नेताओं की पार्टी ने कैसे ईबीसी समाज, यानी अत्यंत पिछड़ा समाज की हकमारी की है. जाहिर है एक पक्ष की ओर से ‘ठाकुर का कुआं’ में ‘पानी’ निकालने के लिए ‘बाल्टी’ गिरा दी गई है, वहीं दूसरा पक्ष अभी अपनी बाल्टी में रस्सी बांध रहा है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि ‘ठाकुर का कुआं’ का ‘पानी’ निकाल पाने में कौन सा पक्ष सफल होता है?
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FIRST PUBLISHED : October 3, 2023, 13:37 IST