ज़िंदा मजदूरों को मुर्दा बताकर अधिकारियों ने हड़पे करोड़ों रुपये, MP में ऐसे हुआ घोटाला

मध्य प्रदेश के प्रत्येक नगर निकाय में रजिस्टर्ड श्रमिक इस वित्तीय सहायता के लिए पात्र हैं. फर्जीवाड़े के कुल 118 मामलों में 11 मामले जिंदा मजदूरों के थे. कुछ अधिकारियों ने इन श्रमिकों के नाम पर फर्जी बैंक खाते खोले और खुद को नॉमिनी बनाया. इसके बाद 2 लाख रुपये की सहायता राशि ट्रांसफर की गई.

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कागजों में मुर्दा लेकिन नहीं मिली मदद

भोपाल के चांडबड़ इलाके की रहने वाली उर्मिला बाई रैकवार का 12 लोगों का परिवार है. कागजों में उनकी मौत हो चुकी है. पिछले साल जुलाई में जिंदा रहते हुए ‘मुर्दा’ करार दिए गए उर्मिला के नाम पर 2 लाख रुपये की सहायता राशि मिल गई. पूछने पर उर्मिला ने NDTV से कहा, “मैं मरी नहीं हूं, जिंदा हूं. मैं चौका-बर्तन करती थी. हार्ट अटैक आया तो काम छोड़ा. कागज पर मेरी मौत के बाद भी मेरे बच्चों को पैसे मिलने चाहिए थे, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला.”

न सहायता राशि मिली और न श्रमिक कार्ड से मदद

चांडबड़ इलाके से 2-3 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले मोहम्मद कमर की भी यही कहानी है. वो भी कागजों में मृत घोषित किए जा चुके हैं. पिछले साल सरकारी कागज में मोहम्मद कमर की मौत हुई. 21 जून को उनके नाम पर कागजों में 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि ट्रांसफर हुई. ये रकम मोहम्मद कमर को मिली ही नहीं.” 

मोहम्मद कमर ने NDTV से कहा, “मुझे जिंदा रहते मार डाला. हैरान हूं. मैं अर्जी लगाऊंगा, ताकि पता चल सके कि किसने गड़बड़ी की है.” गौर करने वाली बात ये है कि मोहम्मद कमर के लिए श्रमिक कार्ड बना था. इस कार्ड के तहत बेटी की शादी के लिए 51000 रुपये मिलने थे, जो अब तक नहीं मिले. मोहम्मद कमर कहते हैं, “मैं अब किसी पर भरोसा नहीं कर सकता. किसी को कोई कागजात नहीं दूंगा.”

बेटी की मौत के बाद निकाले गए पैसे

भोपाल के जहांगीराबाद इलाके की निवासी लीलाबाई ने बताया, “दो साल पहले मेरी बेटी की मौत हो गई. वो एक रजिस्टर्ड श्रमिक थी. उसकी मौत के बाद किसी ने उसके नाम के 2 लाख रुपये निकाल लिए.” वह कहती हैं, “दो साल पहले मेरी बेटी मुमोबाई की मौत के बाद अचानक नगर निगम के कुछ लोग घर आए और पूछने लगे कि क्या मैंने योजना से 2 लाख रुपये लिए हैं. हमें किसी से कोई पैसा नहीं मिला है.”

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लीलाबाई ने NDTV से कहा, “नगर निगम का कहना है कि हमारी बेटी के नाम पर पैसा निकाला गया है. वे हमें हर दिन फोन करके परेशान कर रहे हैं. अगर हमने किसी योजना में अपना नाम दिया होता, तो हमारे दस्तावेज़ और साइन वहां होते.” लीलाबाई कहती हैं, “हमें बिना किसी कारण के क्यों परेशान किया जा रहा है? हमारी बेटी की मौत के बाद हम पहले से ही टूट गए हैं.”

देर रात जारी हुआ ई-पेमेंट ऑर्डर

जांच में पता चला है कि ज्यादातर मामलों में ‘E-पेमेंट ऑर्डर’ रात 11 बजे के बाद जारी किए गए. डेथ सर्टिफिकेट की कॉपी भी  धुंधली (ब्लर) थीं. किसी भी पहचान को अपडेटेड आधार (Aadhaar) डिटेल से नहीं जोड़ा गया है. यहां तक ​​कि आईडी भी मजदूरों की कथित तौर पर मौत से ठीक पहले बनाई गई थी. इससे ऐसा लगता है कि अधिकारियों ने सिर्फ उन्हीं मजदूरों को टारगेट किया है, जिनकी वेतन डायरी (पेमेंट को ट्रैक करने वाली डायरी) इनएक्टिव थी.

अब तक 775 करोड़ रुपये किए जारी

बता दें कि वर्कर्स बोर्ड ने ऐसे मौत के मामलों में अब तक 61,200 से अधिक लाभार्थियों की मदद की है. उन्हें अंतिम संस्कार और अनुग्रह सहायता के लिए 775 करोड़ जारी किए हैं.

दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा- डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला

उधर, इस पूरे मामले में मध्य प्रदेश सरकार ने जांच कराने की बात कही है. डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने कहा, “अगर कहीं भी ऐसा फर्जीवाड़ा हुआ है, तो उसकी जांच कराई जाएगी. जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. हमारी सरकार में किसी को भी ऐसा काम करने का अधिकार नहीं है. दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.”

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