हिना आज़मी/देहरादून. भारत की कुछ कलाएं विश्वभर में विख्यात हो रही हैं, उनमें से एक मधुबनी कला (Madhubani Art) भी है. आज हम आपको ऐसे परिवार के बारे में बताने वाले हैं, जो जर्मनी-जापान तक मधुबनी कला को पहुंचा रहा है. हाल ही में मधुबनी पेंटिंग बनाने वालीं शांति देवी और उनके पति शिवन पासवान (Shanti Devi and Shivan Paswan) को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.शांति देवी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भी एक बार अपनी पेंटिंग लेकर डेनमार्क प्रतिनिधिमंडल में गई थीं. उनके पति शिवन और उनकी बेटी और दामाद भी मधुबनी कला को दुनिया तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं. इन दिनों उनके दामाद प्रसून कुमार मिथिला की शान इन पेंटिंग को उत्तराखंड की राजधानी देहरादून लेकर पहुंचे हैं, जिनमें 2.5 लाख रुपये तक की पेंटिंग वह लाएं हैं, जिन्हें बनाने में 6 माह का समय लगता है.
प्राचीन कला की धरोहर है मधुबनी पेंटिंग
प्रसून कुमार बताते हैं कि मधुबनी पेंटिंग या मिथिला पेंटिंग काफी पुरानी है. वह पिछले 31 सालों से मधुबनी पेंटिंग पर काम कर रहे हैं. वह चार तरह से मिथिला पेंटिंग बनाते हैं. रामायण, महाभारत, देवी देवता, जीव-जंतु जैसी कई तरह की चीजें मधुबनी पेंटिंग पर बनाई जाती हैं. वह कागज, कपड़े, लकड़ी, दीवारों आदि पर भी पेंटिंग करते हैं. कई पुरानी इमारतों पर मधुबनी पेंटिंग बनाई जाती है. सेम के पत्ते, चुकंदर के रस आदि चीजों के नेचुरल कलर्स से इन्हें बनाया जाता है.
हर साल 100 बच्चों को निःशुल्क ट्रेनिंग
उन्होंने आगे कहा कि मेहनत के हिसाब से पेंटिंग के दाम हैं. उनके पास 2.5 लाख रुपये तक की पेंटिंग है, जिन्हें बनाने में 6 माह का वक्त लग जाता है. साल 1997 से वह हर साल करीब 100 बच्चों को निःशुल्क ट्रेनिंग देते हैं. अपने यूट्यूब चैनल Mithila Painting by Prasun Kumar के जरिए वह लोगों को ऑनलाइन पेंटिंग भी सिखाते हैं. उन्हें पीएमओ द्वारा प्रशस्ति पत्र भी दिया गया है. प्रसून बताते हैं कि उनकी सास और ससुर यानी शांति देवी और शिवन पासवान को 1989 को राज्य पुरस्कार और 1983-84 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. इस बार उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
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FIRST PUBLISHED : February 4, 2024, 16:06 IST