जयंती विशेष: राहुल सांकृत्यायन ने नहीं इस शख्स ने भिखारी ठाकुर को कहा था भोजपुरी का शेक्सपियर

छपरा. भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है. सोमवार को उनकी जयंती मनाई जा रही है. भोजपुरी के विकास में उनके अतुलनीय योगदान के लिए भिखारी ठाकुर पूरे भोजपुरिया क्षेत्र के कुल देवता माने जाते हैं. भोजपुरी भाषा के गीत का नाटककार और लोक कलाकार के रूप में भिखारी ठाकुर ने पूरे विश्व में भोजपुरी का सम्मान बढ़ाया. कुछ लोगों का कहना है कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर और अनगढ़ हीरा कहा था लेकिन सारण जिले के इतिहासकार इस दावे से इत्तेफाक नहीं रखते.

सेवानिवृत शिक्षक व इतिहास की जानकारी रखने वाले डॉक्टर लालबाबू यादव का कहना है कि राजेंद्र कॉलेज के 1940 से 1962 तक प्राचार्य रहे मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने एक कार्यक्रम के दौरान भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर बताया था और तब से उन्हें इस नाम से भी पुकारा जाता रहा है. भिखारी ठाकुर को राय बहादुर का सम्मान भी मिला था जिस नाम से भी लोग उन्हें बुलाते थे. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को सारण जिले के सदर प्रखंड स्थित कुतुबपुर दियारा में हुआ था जो उसे वक्त भोजपुर जिले का हिस्सा हुआ करता था.

जानकार लोग बताते हैं कि भिखारी ठाकुर बचपन से ही नृत्य मंडलियों में शामिल होने लगे थे. हालांकि भिखारी ठाकुर के मां-बाप को यह कतई पसंद नहीं था और इसके लिए उन्हें समय-समय पर सजा भी मिलती थी. एक दिन वह गांव से भाग कर खड़गपुर जा पहुंचे जहां इधर-उधर घूमते हुए वह मेदनीपुर जिले में पहुंचे जहां रामलीला और जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा देखकर उनका कलाकार फिर जाग उठा. भिखारी ठाकुर जब गांव पहुंचे तो उन्होंने परिवार के विरोध के बावजूद नृत्य मंडली का गठन किया और 30 साल की उम्र में विदेशिया नाटक की रचना की और उसके बाद उनकी प्रसिद्धि पूरे देश में फैलने लगी और जगह-जगह से उनका कार्यक्रम के लिए बुलावा आने लगा.

भिखारी ठाकुर की मां शिवकली देवी और पिता दालसिंगार ठाकुर हमेशा से उनके इस कला का विरोध करते रहे थे. इस विरोध के बीच 1938 से 1962 के बीच भिखारी ठाकुर ने लगभग तीन दर्जन किताबें भी लिख डालीं, जिसका प्रकाशन प्रकाशक ने किया और यह किताबें लोगों को काफी पसंद हैं. भिखारी ठाकुर को बिहार के साथ ही झारखंड के लोग भी काफी पसंद करते हैं. वहां के कार्यक्रमों में भिखारी ठाकुर को जरूर याद किया जाता है.

भिखारी ठाकुर ने लौंडा नाच की शुरुआत की थी क्योंकि उस वक्त नाच कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए लड़कियां उपलब्ध नहीं थी, जिसके कारण उन्होंने लड़कों को लड़कियों का ड्रेस पहनाकर मंच पर उतारा. जिसे बाद में लोगों ने इसे काफी पसंद किया और यह उनके नाट्य शैली की विशेष पहचान बन गई.

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