जम्मू-कश्मीर से 370 हटाना सही या गलत… सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

हाइलाइट्स

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को चुनौती देने के लिए 23 याचिकाएं दायर की गई थीं.
इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

नई दिल्लीः जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले पर चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का संविधान पीठ 11 दिसंबर को फैसला सुनाएगा. इन सबी याचिकाओं पर 16 दिन तक मैराथन सुनवाई हुई थी. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला संवैधानिक है या नहीं. बता दें कि संविधान पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले का किया बचाव
याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, दुष्यंत दवे, राजीव धवन, दिनेश द्विवेदी, गोपाल शंकरनारायण समेत 18 वकीलों ने दलील रखी. जबकि केंद्र और दूसरे पक्ष की ओर से AG आर वेंकटरमणी, SG तुषार मेहता, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी, मनिंदर सिंह, राकेश द्विवेदी ने दलीलें रखी. सुनवाई के दौरान सरकार ने मुख्य तौर पर राज्य के विभाजन और अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को शिथिल करने के लिए अपनाई गई संसदीय प्रक्रिया को पूरी तरह तर्क संगत और उचित बताया.

याचिकाकर्ताओं ने संविधान की अनदेखी का लगाया आरोप
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा कि राज्य की संविधान सभा के विघटन के साथ ही विधान सभा सृजित की गई. जब विधान सभा स्थगित हो तो राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र को संसद की सम्मति से निर्णय लेने का अधिकार है. इसमें कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ हो और केंद्र राज्य के बीच संघीय ढांचे का उल्लंघन करता हो. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील थी कि केंद्र ने मनमानी करते हुए राज्य विधान सभा के विशेष अधिकार और यहां के विशिष्ट स्वरूप यानी संविधान की अनदेखी की है.

याचिकाकर्ताओं ने चुनाव कराने को लेकर कही ये बात
साथ ही यह भी कहा गया कि राज्य के बंटवारे पर राज्य की जनता यानी उनके नुमाइंदों यानी विधान सभा की अनुमति या सम्मति लेनी जरूरी थी. केंद्र सरकार ने ऐसा ना करके केंद्र राज्य संबंधों के नजरिए से राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण किया है. चार सालों से जम्मू कश्मीर के लोग अपने चुने हुए नुमाइंदों की विधान सभा से और लोक सभा में अपनी नुमाइंदगी से वंचित हैं. ये लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र से पूछे गए सवाल
16 दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने भी कई टिप्पणियां की, जिनमें केंद्र से पूछा गया कि उसने किस कानून के तहत ये कदम उठाया?
राज्य का बंटवारा मनमाने ढंग से करने के आरोपों पर उसका क्या कहना है?
इसकी शक्ति उसे किस कानून से मिली?
सरकार जम्मू कश्मीर को उसका पूर्ण राज्य का दर्जा कब देगी और सरकार वहां चुनाव कब कराएगी?
जम्मू- कश्मीर को लेकर केंद्र का रोडमैप क्या है ?

जम्मू-कश्मीर से 370 हटाना सही या गलत... सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला, 23 याचिकाओं पर पूरी हुई सुनवाई

केंद्र ने दिया जवाब
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लद्दाख स्थाई रूप से केंद्र शासित प्रदेश रहेगा. वहां चुनाव हो रहे हैं. जम्मू कश्मीर में मतदाता सूची अपडेट हो रही है. हम तो चुनाव के लिए तैयार हैं. अब आगे चुनाव कार्यक्रम तो निर्वाचन आयोग को ही तय करना है. जम्मू- कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा कब मिलेगा, समय सीमा नहीं बता सकते.

Tags: Article 370, Jammu kashmir, Supreme Court

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