जब परीक्षा लेने आए त्रिदेव को सती ने शिशु बनाया! जानें दत्तात्रेय जन्म की कथा

अनुज गौतम/सागर. जिले में करीब 300 साल पहले महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण आए थे, जिनके वंशज आज भी लक्ष्मीपुरा, बरियाघाट, चकराघाट, रामपुरा में निवास करते हैं. इन्हीं लोगों के द्वारा लक्ष्मीपुरा में भगवान दत्तात्रेय का मंदिर बनवाया गया और फिर जयपुर से मूर्ति मंगवा कर स्थापित की गई थी.

26 दिसंबर को अगहन मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय भगवान का जन्मोत्सव जयंती के रूप में मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, दत्तात्रेय भगवान त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का एकात्मक रूप हैं. हिंदू धर्म में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था.

सती अनुसुइया की परीक्षा लेने पहुंचे भगवान
लक्ष्मीपुरा निवासी महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार के सुयश बाखले बताते हैं कि भगवान दत्तात्रेय के जन्म को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार, प्राचीन काल में अत्रि ऋषि और अनुसुइया देवी आश्रम में सुख पूर्वक निवास करते थे. देवी अनुसुइया का सतीत्व पूरे विश्व में विख्यात था. देवी अनुसुइया के सतीत्व की ख्याति देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती तक पहुंची तो देवीयों को ये सहन नहीं हुआ. तीनों देवियों ने अपने-अपने पतियों से इस बात का हठ किया कि वो अनुसुइया के सतीत्व की परीक्षा लें. ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही जानते थे कि अनुसुइया महासती हैं, लेकिन देवियों के हठ के आगे विवश हो गए.

परीक्षा लेने आए भगवान बने बालक
आगे बताया, अगहन माह की पूर्णिमा को त्रिदेव अनुसुइया देवी के आश्रम में पहुंचे. उस समय अत्रि ऋषि वन में गए थे. ब्राह्मणों ने देवी अनुसूया से भिक्षा मांगी. देवी ने तीनों के लिए ही भोजन बनाया, लेकिन ब्राह्मणों ने कहा कि ये भोजन विकारों से युक्त है. हमें केवल ऐसी चीज चाहिए जिसकी उत्पत्ति तो हुई हो, लेकिन स्पर्श नहीं हुआ हो. जैसे मां का ममतामयी दूध, देवों की ये बात सुनते ही अनुसुइया जान गईं कि मेरी परीक्षा ली जा रही है. देवी ने मुस्कुराते हुए कमंडल से जल लेकर तीनों ही देवों पर छिड़क दिया. उसी समय ही तीनों देवता नवजात शिशु बन गए. उसके बाद देवी अनुसुइया ने उन्हें दुग्धपान कराया. अत्रि ऋषि जब आश्रम लौटे तो तीन शिशुओं को देखकर सारी बात समझ गए. सती अनुसुइया की परीक्षा लेने आए जब तीनों देवता अपने घर नहीं लौटे तो देवियों को उनकी चिंता सताने लगी.

पालने में झूल रहे थे भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश
तब देवियां ऋषि अत्रि के आश्रम में पहुंची और सती अनुसुइया से प्रार्थना की और पूछा कि उनके पति परीक्षा लेने के लिए आए थे, लेकिन घर नहीं लौटे. तब माता अनुसुइया इशारा करती हैं कि जो पालने में झूल रहे हैं, वही भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं. आप अपने-अपने पति को पहचान कर साथ ले जाइए. तीनों नवजात शिशु के रूप में थे तब फिर माता से प्रार्थना की कि हमें इस रूप में हमारे पति वापस कर दो, तब माता ने जल छिड़का तो वह त्रिदेव अपने मूल रूप में आ गए.

दत्त भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश का एकात्मक रूप
साथ ही देवी ने उनसे वर मांगा कि पुनः तीनों भगवान एक रूप में धरती पर अवतरित होंगे और अगहन माह की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय ने धरती पर जन्म लिया और तभी से ही दत्तात्रेय जयंती मनाई जाने लगी. दत्तात्रेय भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश का एकात्मक रूप हैं. उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है. हिंदू धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है.

दत्त भगवान के 24 गुरु थे
सुयश बाखले आगे बताते हैं कि भगवान दत्त के साथ हमेशा एक गाय और आगे चार कुत्ते रहते हैं. औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है. भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली. दत्तात्रेय ने अन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की. दत्तात्रेय कहते हैं कि जिससे जितना-जितना गुण मिला है, उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है. उन्होंने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, सिंधु, पतंग, भंवरा, मधुमक्खी, हाथी, हिरण, मछली, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी जैसे 24 गुरु बनाए हैं.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. NEWS18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

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