सोनिया मिश्रा/ रुद्रप्रयाग. वैसे तो आपने जल, जंगल जमीन को लेकर कई स्लोगन, भाषण और नारे सुने होंगे, लेकिन देवभूमि उत्तराखंड में एक ऐसे पूर्व फौजी हैं, जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद जंगलों को ही अपना घर बना दिया. इतना ही नहीं, आज देश विदेश से कई छात्र मिश्रित वन मॉडल को समझने के लिए उनके जंगलों में पहुंचते हैं. रुद्रप्रयाग जिले के कोटमल्ला गांव के रहने वाले जगत सिंह (Jagat Singh) ‘जंगली’ उपनाम से जाने जाते हैं. उनके प्रयासों से न सिर्फ सूने पड़े जंगलों में हरियाली लौटी बल्कि सूखे पड़े पानी के स्रोतों में भी पानी लौट आया. इससे बंजर खेतों में फसलें बढ़ी, साथ ही ग्रामीण महिलाओं को चारे के लिए कई किलोमीटर दूर जाने से भी निजात मिली.
जगत सिंह जंगली बताते हैं कि उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी की थी. 1967 में वह बीएसएफ में शामिल हुए. उन्होंने 52वीं बटालियन में शामिल होकर 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध भी लड़ा था. जब वह 1974 में छुट्टी पर घर आए, तो उन्होंने देखा कि गांव की महिलाएं कई किलोमीटर का सफर तय कर पालतू मवेशियों के लिए चारा लेने जाती हैं. महिलाओं की दुर्दशा का आलम तो यह था कि कई महिलाएं तो जंगल में पैर फिसलने के कारण मौत का निवाला बन जाती थी. इसे देखते हुए मैंने सोचा कि अगर महिलाओं को घर के नजदीक ही घास मिल जाए, तो इन्हें दूर नहीं जाना पड़ेगा और इस तरह की घटनाओं पर भी विराम लगेगा.
रिटायरमेंट के बाद बंजर पड़ी जमीन को सींचना किया शुरू
उन्होंने बताया कि गांव की जमीन पूरी बंजर थी. पानी की कमी थी. जमीन में ढलान इतना था कि बरसात का पानी अपने साथ उपजाऊ मिट्टी भी बहा ले जाता था. परेशानियां कई थीं लेकिन वह निरंतर पेड़ लगाते गए. 1980 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने रिटायरमेंट के पैसों का एक बड़ा हिस्सा जल, जंगल, जमीन को बचाने में खर्च किया. उन्होंने गांव में छोटे छोटे बांध बनाने के साथ साथ मिश्रित वन लगाने पर जोर दिया, जिससे पानी का ठहराव हो सके. उन्होंने तारबाड़ आदि भी की, जिससे मवेशियों से भी जंगल बच सकें.
‘जंगली’ उपनाम मिलने की कहानी
जगत सिंह बताते हैं कि 1993 में उन्हें गांव के ही एक हाईस्कूल में पर्यावरण से संबंधित कार्यक्रम में बुलाया गया, जहां उन्हें जंगली उपाधि दी गई. जंगली उपनाम सुन उनकी पत्नी थोड़ा सा नाराज हुईं लेकिन उन्होंने लोगों की भावनाओं को समझकर यह उपनाम सहर्ष स्वीकार किया. वह बताते हैं कि अब तक उन्होंने लगभग तीन हेक्टेयर जमीन पर लगभग 70 प्रजाति के लाखों पेड़ लगा दिए हैं, जिससे आज उनका अपना जंगल बन गया है. वर्तमान में देश विदेश से कई शोध छात्र मिश्रित वन मॉडल को समझने के लिए उनके पास आते हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 30, 2023, 22:46 IST