उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक अहम फैसले के तहत सभी उच्च न्यायालयों को जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों की निगरानी के लिए एक विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दिया, ताकि उनका शीघ्र निपटारा सुनिश्चित किया जा सके।
इस आदेश का मकसद नेताओं के खिलाफ 5,000 से अधिक आपराधिक मामलों में त्वरित सुनवाई है।
शीर्ष अदालत ने विशेष अदालतों से यह भी कहा कि वे दुर्लभ और बाध्यकारी कारणों को छोड़कर ऐसे मामलों की सुनवाई स्थगित न करें।
उच्च न्यायालयों, जिला न्यायाधीशों और सांसदों-विधायकों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालतों को कई निर्देश जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को प्राथमिकता दी जाए।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय के विद्वान मुख्य न्यायाधीश संसद, विधान सभाओं और विधान परिषदों के सदस्यों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे की निगरानी के लिए सांसदों/विधायकों के लिए पुनः नामित अदालतें शीर्षक से स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज करेंगे।
पीठ ने कहा कि कई स्थानीय कारकों ने उच्चतम न्यायालय के लिए देश की सभी सुनवाई अदालतों के वास्ते एक समान या मानक दिशा-निर्देश तैयार करना मुश्किल बना दिया है। उसने कहा कि इन कारकों ने त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने का मुद्दा उच्च न्यायालयों पर छोड़ दिया है, क्योंकि उन्हें सुनवाई अदालतों पर अधीक्षण की शक्ति हासिल है।
पीठ ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालयों को अधीनस्थ न्यायपालिका पर अधीक्षण की शक्ति दी गई है।
हम इस बात को उच्च न्यायालयों पर छोड़ना उचित समझते हैं कि वे ऐसी पद्धति विकसित करें या ऐसे उपाय लागू करें, जिन्हें वे विषयगत मामलों की प्रभावी निगरानी के लिए उचित समझें।
पीठ ने कहा कि स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज किए गए मामले की सुनवाई (उच्च न्यायालय के) मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक विशेष पीठ द्वारा या उनके (मुख्य न्यायाधीश) द्वारा विशेष पीठ में नियुक्त न्यायाधीशों द्वारा की जा सकती है, जो आवश्यक समझे जाने पर नियमित अंतराल पर मामलों को सूचीबद्ध कर सकते हैं।
पीठ ने निर्देश दिया, उच्च न्यायालय मामलों के शीघ्र एवं प्रभावी निस्तारण के लिए सभी दिशाओं में ऐसे आवश्यक आदेश जारी कर सकता है। विशेष पीठ अदालत की सहायता के लिए महाधिवक्ता या सरकारी वकील को बुलाने पर विचार कर सकती है।
उसने कहा कि उच्च न्यायालय प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश से ऐसी अदालतों को विषयगत मामलों को आवंटित करने की जिम्मेदारी वहन करने के लिए कह सकता है, जैसा कि उचित और प्रभावी माना जाता है।
पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश से उस अंतराल पर रिपोर्ट भेजने के लिए कह सकता है, जिसे उचित समझा जाए। नामित अदालत इन चीजों को प्राथमिकता देगी, पहले : सांसदों और विधायकों के खिलाफ मौत या आजीवन कारावास की सजा वाले आपराधिक मामलों को और फिर पांच साल या उससे अधिक की सजा वाले मामलों को।
उसने स्पष्ट किया कि विशेष अदालतें दुर्लभ और बाध्यकारी कारणों को छोड़कर ऐसे मामलों की सुनवाई स्थगित नहीं करेंगी।
फैसले के अनुसार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उन मामलों को विशेष पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर सकते हैं, जिनमें मुकदमे पर रोक के आदेश पारित किए गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुकदमे की शुरुआत और निस्तारण सुनिश्चित करने के लिए स्थगन आदेशों को हटाने सहित उचित आदेश पारित किए जाएं।
इसमें कहा गया है, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश नामित अदालतों के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुविधा सुनिश्चित करेंगे और उन्हें ऐसी तकनीक अपनाने में भी सक्षम बनाएंगे, जो प्रभावी और कुशल कामकाज के लिए जरूरी हो।
पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय वेबसाइट पर एक अलग ‘टैब’ बनाएगा, जिसके तहत मुकदमा दाखिल करने के वर्ष, लंबित मामलों की संख्या और कार्यवाही के चरण के विवरण के बारे में जिलेवार जानकारी प्रदान की जाएगी।
उसने स्पष्ट किया कि, विषयगत मामलों की निगरानी करते समय, विशेष पीठ ऐसे आदेश या निर्देश पारित कर सकती है, जो शीघ्र निपटान के लिए जरूरी हों।
पीठ ने जन प्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के अनुरोध वाली अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों को ये निर्देश जारी किए।
‘एमिकस क्यूरी’ की 14 नवंबर 2022 को जारी रिपोर्ट में से एक के मुताबिक, भारत में नेताओं के खिलाफ 5,175 मामले लंबित हैं। इनमें से 2,116 आपराधिक मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं।
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