जज्बा : पारुल ने खूब सहे ताने पर नहीं डगमगाया हौसला, साइकिल से जाती थीं स्टेडियम, पढ़िए संघर्ष की पूरी कहानी

चीन के हांगझोऊ में आयोजित एशियन गेम्स में स्टीपल चेज में रजत और दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने वाली एथलीट बेटी पारुल चौधरी का सफर गांव की चकरोड से शुरू हुआ था। यहां तक पहुंचने के लिए पारुल ने कड़ा संघर्ष किया। 24 घंटे में चांदी के बाद सोना जीतकर देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।

दौराला के इकलौता गांव निवासी कृष्णपाल सिंह ने बताया कि उनकी बेटी पारुल साइकिल से सिवाया टोल प्लाजा तक जाती थी, वहां पार्किंग में साइकिल खड़ी करके टेंपो से कैलाश प्रकाश स्टेडियम पहुंचती थीं। लोगों के ताने भी सहने पड़ते थे। बेटी ने देश का नाम रोशन करते हुए हमारा सीना चौड़ा कर दिया है। पारुल ने इसी वर्ष केरल में आयोजित स्टीपल चेज में गोल्ड मेडल जीता था।



एशियन चैंपियनशिप में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। एशियन गेम्स से पहले वह पेरिस ओलंपिक 2024 का कोटा भी ले चुकी हैं। पारुल चौधरी प्राथमिक प्रशिक्षण कैलाश प्रकाश स्टेडियम में लिया है। 


उनके कोच रहे कोच गौरव त्यागी ने बताया कि पारुल ने दो माह पहले ही थाइलैंड के बैंकाक में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। 2018 एशियन गेम्स में भी पारुल पदक जीत चुकी हैं। पारुल दो बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। 


बता दें कि मंगलवार को चीन में आयोजित एशियन गेम्स में पारुल चौधरी के स्वर्ण पदक जीतने की खबर जैसे ही स्टेडियम पहुंची तो वहां अभ्यास कर रहे खिलाड़ियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। पारुल के साथ अभ्यास करने वाले साथी खिलाड़ियों ने स्टेडियम में मिठाई बांटकर अपनी खुशी जाहिर की। 


दौराला के गांव इकलौता में उनके घर पर खुशी मनाई, मिठाई बांटी। ग्रामीण ढोल नगाड़े लेकर पारुल के पिता कृष्णपाल व परिजनों को बधाई देने पहुंचे। प्रधान जान धनकड़ का कहना है कि पारुल ने गांव, जिले, प्रदेश व देश का नाम रोशन किया है। देर रात तक पारुल के घर जश्न का माहौल था।


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