जंगल में अजीब आवाज सुन फॉरेस्ट रेंजर के उड़ गए होश, जानें ऐसा क्या हुआ…

अनूप पासवान/कोरबाः अपने फॉरेस्ट दफ्तर में बैठे टीम से जरूरी चर्चा करते रेंज ऑफिसर उस वक्त खामोश हो गए, जब बाहर जरा अजीब सी आवाज सुनाई दी. कौतूहल वश उन्होंने खिड़की के करीब जाकर बाहर नजर दौड़ाई, तो एक पेड़ पर बड़ा खूबसूरत नजारा था. वहां पंछियों का एक ऐसा जोड़ा बैठे बातें कर रहा था, जो यूं दिखाई दे जाना काफी दुर्लभ है. खुली हवा में गूंज रहा यह कलरव किसी टिपिकल इंडियन फैमिली की तरह का व्यवहार पेश करने वाले इंडियन ग्रे हॉर्नबिल का था जिसकी पहचान होते ही रेंज ऑफिसर ने कैमरा मंगाया और उस दुर्लभ नजारे को हमेशा के लिए कैद कर लिया.

बालको वन परिक्षेत्र कार्यालय के पीछे बुधवार दोपहर करीब दो बजे इंडियन हॉर्नबिल को देखा गया. इस दुर्लभ प्रजाति को अपने कैमरे पर कैद करने वाले रेंज अधिकारी जयंत सरकार ने बताया कि यह पक्षी मूल रूप से हिमालय क्षेत्र से ताल्लुक रखता है. इसकी संख्या यहां काफी कम है, लेकिन इन्हें कोरबा क्षेत्र के जंगलों में देखा जा सकता है. इस प्रजाति की विशेषता इसमें एक टिपिकल इंडियन फैमिली के व्यवहार की तुलना करने के लिए है.

इंडियन ग्रे हॉर्नबिल के नर पक्षी ही अपने परिवार के लिए भोजन या चारे की जुगत करते हैं, जबकि मादा घर संभालती है. जब ये सैर पर निकलते हैं, तो नर हमेशा सुरक्षा के लिए चौकन्ना रहता है और मादा पीछे रहती है. प्रजननकाल में, अंडे देने की बारी आती है, तो नर किसी पेड़ के कोटर में जरूरी जुगत करता है और मादा उसमें अंडे देने के बाद पूरे वक्त वहीं बिताती है. इस बीच मादा के लिए चारे के इंतजाम में भी नर जुटा रहता है. हालांकि, कभी-कभी अंडे या चूजे के लिए संकट होने पर, मादा काफी आक्रामक हो जाती है, जो एक टिपिकल इंडियन फैमिली के व्यवहार की झलक दिखाता है.

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इंडियन हॉर्नबिल नाम कैसे पड़ा
इंडियन हॉर्नबिल की सामान्य विशेषताएं शामिल हैं कि इन्हें अमूर्त रूप से जोड़े में देखा जा सकता है. इनके पूरे शरीर पर ग्रे रंग के रोएं होते हैं और इनके पेट का हिस्सा हल्का ग्रे या फीके सफेद रंग का होता है. इनकी चोंच लंबी होती है और नीचे की ओर घूमी होती है, अमूमन ऊपर वाली चोंच के ऊपर एक लंबा उभार होता है, जिससे इनका अंग्रेजी नाम हॉर्नबिल (हॉर्न यानि सींग, बिल यानि चोंच) आया है. भारत में इसकी 9 प्रजातियां पाई जाती हैं. यह पक्षी बरगद, पीपल, और फलदार पेड़ पर रहता है और इसका मुख्य भोजन फल, कीड़े, मकोड़े, छिपकली, और चूहा होता है.

पेड़ की खोखल में घोंसला ऐसाइस
प्रजाति की विशेषता में एक और रोचक बात यह है कि इसका घर देखने में जितना सुंदर है, उससे कहीं अधिक उसका घर भी अद्वितीय है. नर एक बीट, गीली मिट्टी, और ताजे फलों के गूदे से किसी पेड़ की खोखल (कोटर) को पूरी तरह से ढंक देता है, जिससे एक प्राकृतिक एसी की तरह की राहत मिलती है. इस घर के भीतर, मादा बंद होकर अंडे देती है और नर उसके लिए चारा लेकर देता है.

चूजे निकलने तक मादा वहीं रहती है. घर में सिर्फ एक छेद छोड़ दिया जाता है, जिसे चूजे आने के बाद मादा अपनी चोंच से खुरच-खुरच कर बाहर निकलती है. इन दुर्लभ पंछियों का घर भी बड़ा कमाल का होता है. किसी बरगद, पीपल, या किसी अन्य ऊंचे फलदार पेड़ के सूखे तने या शाख के खोखले हिस्से में, यह अपना खास घर सजाते हैं.

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