आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. पश्चिम चम्पारण जिला जंगल से घिरा हुआ है. यहां का वाल्मिकी टाइगर रिजर्व अकेले 900 वर्ग किलोमीटर का है. खास बात यह है कि यहां बाघों के साथ अनगिनत जानवरों के रहवास के लिए लाखों की संख्या में पेड़-पौधे हैं. इनमें एक ऐसा भी पेड़ है, जिसे जंगल का अभिशाप माना जाता है. कहा जाता है कि यह पेड़ जहां भी उगते हैं, वहां की जमीन बंजर हो जाती है. दरअसल, खजूर के पास अन्य पौधों का पनपना बंद हो जाता है. यही कारण है कि वन विभाग हर साल इसकी सफाई पर लाखों रुपए खर्च करता है. लेकिन, क्या आपको पता है कि जंगल के इस अभिशाप को वहां रहने वाले आदिवासियों ने अपने लिए वरदान बना लिया है. खजूर के पत्ते आदिवासियों की जीविका का मुख्य आधार है.
बगहा के लौकरिया की रहने वाली रानी खजूर के पत्तों से झाड़ू और अन्य सामान बनाने वाली महिलाओं की कम्यूनिटी को गाइड करती हैं. रानी बताती हैं कि आदिवासी महिलाएं मुख्य रूप से जंगल के अपशिष्ट का इस्तेमाल कर कारीगर वस्तुओं को बनाती हैं. इसकी डिमांड कई राज्यों में है. उन्होंने बताया कि झाड़ू बनाने के लिए सबसे पहले पुरुष जंगल से खजूर के पत्तों को काट कर लाते हैं. फिर महिलाएं उसे तीन से चार दिनों तक एक-एक घंटा छांव में सुखाती हैं. पत्तों को सुखाते हुए इनपर समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है. ताकि, वो सूखकर टूटने न लग जाएं. कुल मिलाकर यह प्रक्रिया 4 दिनों तक चलती है. इसके बाद उन्हें बांधकर फाइनली झाड़ू बनाया जाता है.
बनारस तक करती हैं सप्लाई
217 महिलाओं की कम्यूनिटी को सम्भाल रही रानी ने बताया कि झाड़ू बनाने में कोई खर्च नहीं आता है. खजूर के पत्ते जंगल से मिल जाते हैं. जिनसे रस्सी और झाड़ू तैयार किया जाता है. एक दिन में एक महिला लगभग 40 झाड़ू तैयार कर लेती है. इसके बाद इन महिलाओं के पति इसे बाजार में 5 रुपए प्रति पीस के हिसाब से बेचते हैं. इसके अलावा बनारस भी सप्लाई करते हैं.
.
FIRST PUBLISHED : October 22, 2023, 19:47 IST