बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने एनडीए और इंडी गठबंधन से भले ही दूरी बना ली हो, लेकिन अपनी ताकत बढ़ाने के लिए उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़ दूसरे राज्यों के क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावनाएं जरूर तलाश रही है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा जैसे राज्यों की पार्टियों से बसपा का गठबंधन तय माना जा रहा है। सीटों की संख्या तय होने के साथ ही गठबंधन की घोषणा कर दी जाएगी।
बसपा नेताओं के मुताबिक, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो), जबकि छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी (गोगपा) से गठबंधन की बात अंतिम दौर में है। गठबंधन कर बसपा हरियाणा की छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार सकती है। मायावती के भतीजे और पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद इस संबंध में विभिन्न क्षेत्रीय दलों से बात कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मायावती ने आकाश को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड छोड़कर दूसरे राज्यों में बसपा की ताकत बढ़ाने का जिम्मा सौंप रखा है। बसपा के इस समय कुल 10 सांसद हैं जो सभी यूपी से चुनाव जीते हैं। अन्य राज्यों से बसपा का एक भी सांसद नहीं है।
बसपा सुप्रीमो मायावती में एक और बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव मायावती के हाल के कई बयानों से भी साफ ज़ाहिर होता है। मायावती अब उन राजनीतिक नारों से पीछा छुड़ाती दिख रही हैं, जिनके सहारे वे उत्तर भारत में दलितों और अति पिछड़े वर्गों यानि बहुजन समाज की शीर्ष नेता और देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री भी बनीं। नब्बे के दशक में बसपा के चर्चित नारों से किनारा करते हुए अब मायावती कह रही हैं कि ये नारे तो समाजवादी पार्टी ने बसपा को बदनाम करने के लिए गढ़े थे। नारों की बात की जाये तो छह दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा ध्वंस के बाद 1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी के बीच ऐतिहासिक गठबंधन हुआ था। इस दौरान एक नारा ख़ूब चर्चित हुआ था, ’मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’। इस नारे का ज़िक्र करते हुए कुछ समय पूर्व मायावती ने ट्वीट किया कि वास्तव में उत्तर प्रदेश के विकास और जनहित की बजाय जातिद्वेष एवं अनर्गल मुद्दों की राजनीति करना समाजवादी पार्टी का स्वभाव रहा है।
वह एक अन्य ट्वीट में कहती हैं कि अयोध्या, श्रीराम मंदिर और अपर कास्ट समाज आदि से संबंधित जिन नारों को प्रचारित किया गया था वे बसपा को बदनाम करने की सपा की सोची समझी साज़िश थी। अतः सपा की ऐसी हरकतों से ख़ासकर दलितों, अन्य पिछड़ों और मुस्लिम समाज को सावधान रहने की सख़्त ज़रूरत है। पुराने नारों से पीछा छुड़ाने की मायावती की यह कोशिश दिखाती है कि वे भविष्य में बीजेपी में तरफ़ जा सकती हैं। ठीक उसी तरह जैसा वे पहले कर चुकी हैं, लेकिन अब उनके मुंह से ‘मनुवादी’ शब्द सुनने को नहीं मिलता जो पहले उनका प्रिय शब्द था। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि वे इस लाइन पर राजनीति करके अपनी पार्टी के लिए सफलता की उम्मीद कर रही हैं या उनके दिगाम में और कुछ चल रहा हैं।
उधर, जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, बसपा के नेताओं की बेचौनी बढ़ रही है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि उनकी पार्टी क्या करेगी और उन्हें क्या करना चाहिए। दरअसल, बसपा नेताओं, ख़ासकर पार्टी के सांसदों की परेशानी विधानसभा चुनाव के समय से बढ़ी हुई है।
-अजय कुमार